भारतीय बैंकिंग में राजभाषा का महत्व

By: Kamlesh Manchanda

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“अंकल जी, आप परेशान मत हों, मैं अभी आपको सब समझा देती हूँ, कहते हुए मुझे उसने सरल भाषा में समझाया, नहीं तो जाने क्या गिटर पिटर करते रहते हैं, हम जैसे लोग तो कुछ समझ ही नहीं पाते”। ये शब्द थे, संतुष्ट होकर बैंक की शाखा से निकल रहे एक ग्रामीण के। वास्तव में भाषा जब अपने मौलिक रूप में विषय के साथ न्याय करती है, तब प्रवाह और विशिष्ट अभिव्यक्तियों का जन्म होता है। यही है बैंकिंग का वास्तविक उदेश्य, अर्थात ग्राहकों से उनकी ही भाषा में बात करके उन्हें समझाना, बेहतर सेवा देना व अपने बैंक के साथ जोड़ना।

राजभाषा हिन्दी का शुभारंभ

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में राष्ट्रीयकरण के बाद राजभाषा अधिनियम 1963, यथासंशोधित 1967 व राजभाषा नियम 1976 के प्रावधान लागू हुए। राष्ट्रीयकरण से पूर्व बैंक क्लास बैंकिंग के रूप में कार्य कर रहे थे। बैंकों के ग्राहक सीमित थे। इनका प्रसार केवल नगरीय स्तर तक सीमित था। ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में तो बैंकों का प्रसार न के बराबर था। लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकिंग ग्रामीणों व जनसाधारण से जुड़ी। संभवत: इसका प्रमुख कारण था, राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी का महत्वपूर्ण प्रयोग। क्योंकि कामकाज के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता थी, जो आम लोगों की भाषा हो। बैंकों में राजभाषा हिन्दी के प्रयोग के लिए कार्यतन्त्र स्थापित किया गया और हिन्दी का प्रयोग आंतरिक कार्य व ग्राहकों के संपर्क बिन्दु पर शुरू किया गया। ग्राहकों को व्यक्तिगत स्तर पर हिन्दी भाषा में बैंक की विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया जाने लगा, जिससे वे अत्यधिक प्रभावित हुए। आज बैंकों में राजभाषा का प्रयोग ग्राहक स्तर पर और आंतरिक कार्यों के लिए दिन प्रतिदिन अधिक होता जा रहा है।

राजभाषा विभाग

अग्रेजों के शासनकाल में आधुनिक बैंकिंग की नींव पड़ी, अत: बैंकों में अंग्रेज़ी में कामकाज चलने की वजह से अभी तक कर्मचारियों में उसी भाषा में कार्य करने की प्रवृत्‍ति कायम है। कामकाज में हिंदी का प्रयोग बढ़ाने की बात कही जाए तो राजभाषा विभाग तथा वहां कार्य करने वालों के बारे में सोचने का अंदाज़ इस तरह होता है कि यह विभाग बैंक के लिए क्‍या हासिल करता है। मैं यहां यह स्‍पष्‍ट करना चाहूंगी कि बैंकिंग में राजभाषा हिंदी का प्रयोग सर्वोपरि कार्य अर्थात ग्राहकों को बैंक के साथ जोड़ना सिखाता है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में बैंकों के साथ ग्राहक को जोड़े रखना ही सबसे कठिन कार्य है। उनसे उनकी प्रिय भाषा में वार्तालाप करके व पत्र व्‍यवहार करके उन्‍हे बैंक की विभिन्‍न योजनाओं के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी जा सकती है। व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से उनकी ज़रूरतों को जान कर पूरा करने की कोशिश की जा सकती है व सुझाव दिए जा सकते हैं।  

बैंकों में हिन्दी का प्रयोग

भारत सरकार के विभागों व उपक्रमों से यदि हम बैंकों में राजभाषा के प्रयोग की तुलना करें, तो यह स्पष्ट होगा कि बैंकों ने राजभाषा के प्रयोग में अग्रणी कार्य किया है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में अपनी व्यावसायिक जड़ें मजबूत करने के लिए सबसे आवश्यक है,  ग्राहकों का संतोष और ग्राहकों के संतोष के लिए जरूरी है उनसे उनकी अपनी भाषा में बातचीत। हिन्दी इस कसौटी पर खरी उतरती है। बैंकिंग उद्योग में विशेषत: जहां ग्राहक ही बैंक की आत्मा एवं आधार है, हिन्दी भाषा अर्थात सबसे सरल भाषा का प्रयोग अति आवश्यक हो जाता है।  

व्यावहारिक हिन्दी

बैंकों में हिन्दी के प्रयोग के दो पक्ष हैं, कानूनी व व्यावहारिक। कानूनी पक्ष में सरकार कानून बना कर किसी कार्य को जनसाधारण से करवा लेती है। कानूनी पक्ष में भले सर्वहित विद्यमान होता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि लोग उसे मन से स्वीकार करें। व्यावहारिक पक्ष का सीधा संबंध लोगों के हित और रूचि दोनों से जुड़ा होता है। अत: वे कानून व नियम प्राय: असफल रहते हैं, जहां व्यावहारिक पक्ष प्रधान न हो। आज प्रत्येक व्यवसाय में, वह चाहे बैंकिंग हो या कोई अन्य, अंग्रेजी पटरानी बन रही है और हिन्दी दसियों की तरह है। निश्चित रूप से अपनी भाषा लागू करना राष्ट्र का गौरव है और इसे किसी मजबूरी से नहीं अपितु स्वेच्छा से अपनाना होगा।

उत्तरदायित्व 

राजभाषा नियम 1976 के प्रावधान के अनुसार बैंकों में प्रशासनिक प्रधान का उत्तरदायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि राजभाषा नियम व अधिनियम के उपबंधों का समुचित रूप से अनुपालन हो रहा है। वास्तव में भाषा, संवाद, संपर्क और अभिव्यक्तियों का माध्यम होती है। यह केवल अभिव्यक्ति का साधन ही नहीं, राष्ट्र शक्ति, संपन्नता और संस्कृति का उदबोधक भी है। परंतु वस्तुस्थिति यह है कि राजभाषा का व्यावहारिक प्रयोग अपेक्षित स्तर तक अब तक नहीं हो पाया है। यह तभी संभव है जब कार्यपालक एवं वरिष्ठ अधिकारी राजभाषा नियम, अधिनियम, सरकारी आदेशों व प्रावधानों से भलीभाँति परिचित हों तथा उन्हें स्वेच्छा से कार्यरूप दें। बैंक का या किसी विशेष अनुभाग का प्रधान अकेले ही प्रयत्न करने के पश्चात भी पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसके लिए आवश्यकता है सभी कर्मचारियों के एकजुट होकर प्रयास करने की। परंतु जब तक उनमें नैतिक बोध जागृत नहीं होगा, तब तक वास्तविक रूप से राजभाषा का प्रयोग निष्ठापूर्वक नहीं हो पाएगा। इच्छा शक्ति बलवती होने पर असंभव भी संभव हो जाता है। अत: अब समय है कि सभी कर्मचारी अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाकर पूरा कामकाज स्वयं की जिम्मेवारी समझकर हिन्दी में करके राजभाषा हिन्दी को प्रतिष्ठित करने में अपना सक्रिय योगदान दें।

नवोन्मेष कार्य

बैंकों में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से कई नवोन्मेष कार्य प्रारंभ किए गए हैं। हिन्दी के प्रयोग के संबंध में अधिनियम, नियम व उपनियम बनाए गए। प्रत्येक वर्ष वार्षिक कार्यक्रम बनाया जाता है जिसमें सभी बैंकों के लिए पत्राचार एवं हिन्दी के प्रयोग के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। सरकार व बैंक अपने अपने स्तर पर हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाते रहते हैं, यथा:

राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ

बैंकों की विशिष्ट कार्य प्रकृति को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग ने देश के विभिन्न नगरों में अलग से राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया है। राजभाषा हिन्दी की प्रगति का मूल्यांकन करने तथा आवश्यक दिशा निर्देश देने के लिए केन्द्रीय सरकार के विभिन्न विभागों में हिन्दी सलाहकार समितियाँ व बैंकों में राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ और बड़े नगरों में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ गठित की गई हैं। यह समितियाँ समय समय पर विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित करवाती हैं। विजेताओं को पुरस्कृत भी किया जाता है। विशेष एवं उल्लेखनीय कार्यों के लिए भी पुरस्कारों की व्यवस्था की जाती है। व्यक्तिगत बैंक भी अपने स्तर पर हिन्दी की विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं। यह हिन्दी के प्रसार को बढ़ावा देने का एवं राजभाषा को व्यावहारिक रूप देने का एक सक्रिय साधन है।

देवनागरी लिपि

बैंकों में सभी टंककों व आशुलिपिकों को हिन्दी का प्रशिक्षण देना अनिवार्य किया गया। हिन्दी भाषा को सरल व सुविधाजनक बनाने के लिए यह भी प्रावधान किया गया है कि जो शब्द हिन्दी रूपांतर के एकदम मानस पटल पर उभर कर नहीं आते, उन्हें देवनागरी लिपि में भी लिखा जा सकता है। बैंकों में यह भी निर्देश दिए गए हैं कि पत्राचार में हिन्दी में प्राप्त हुए पत्रों का उत्तर तो किसी भी अवस्था में हिन्दी में ही भेजा जाना चाहिए।

द्विभाषीकरण

बैंकों में व्यवसाय की तरह ही हिन्दी के प्रयोग में भी पूरी प्रतिस्पर्धा देखने में आ रही है। सभी बैंकों में हिन्दी के अधिक से अधिक प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। राजभाषा नियम व अधिनियम के अनुसार इन बातों को भी सुनिश्चित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि सभी फार्म व दस्तावेज, सामान्य आदेश एवं राज्य सरकारों को जाने वाले पत्रों का प्रेषण हिन्दी में हो अथवा द्विभाषीय हो। अधिनियम की धारा 3(3) में निर्दिष्ट दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी का दायित्व होगा कि वह इन्हें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में जारी करें।

सामान्य कार्य

 बैंकों के शाखा कार्यालयों में ग्राहकों को फार्म हिन्दी में भर कर दिए जाएं। पास बुक, ड्राफ्ट, सावधि जमा रसीद, नकदी आदेश, अंतरण भुगतान आदेश आदि बनाना व विवरणियाँ बनाना आदि कार्य तो बहुत सरलता से हिन्दी में किए जा सकते हैं। प्रेषण अनुभाग का पूरा कार्य हिन्दी में किया जा सकता है। पासबुक में प्रविष्टि होने पर यदि ग्राहक उसे पढ़ न सके, तो ऐसी बैंकिंग कहाँ तक सफल मानी जा सकती है। वस्तुत: किसी भी नए कार्य को आरंभ करने में थोड़ी सी कठिनाई तो अनुभव होती ही है, लेकिन यदि उसे लगातार निष्ठा से किया जाए तो कठिनाइयाँ स्वत: ही दूर हो जाती हैं। कठिनाइयाँ उन्हीं के सामने आती हैं, जो काम करते हैं। जिसने श्रीगणेश ही न किया हो, उसे भला क्या परेशानी हो सकती है। कठिनाइयों पर विजय पाने वाला ही सफल होता है।

आज कल में जाएगा टल, हिंदी की शुरूआत करेंगे इसी पल।

लक्ष्य प्राप्ति 

सरकार से प्राप्त वार्षिक कार्यक्रम को पूरा करने का लक्ष्य और बैंकों की निजी स्तर पर विभिन्न कार्य योजनाएं बहुत कुछ प्रशासनिक कार्य की प्रकृति के अनुसार विकसित हैं। आज सभी बैंकों की सभाओं में जब निरीक्षण रिपोर्ट देखी जाती है, तो उसमें यही पाया जाता है कि सभी बैंक लक्ष्य प्राप्ति के लिए होड़ लगा रहे हैं। कुछ बैंक तो लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं और बाकी लक्ष्य की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। परंतु जब तक इन्हें व्यवहारिक रूप नहीं दिया जाएगा, तब तक ये निरर्थक रहेंगे।

राजभाषा अधिकारी

 प्रत्येक प्रशासनिक कार्यालय में राजभाषा अधिकारी भी नियुक्त किए गए हैं ताकि राजभाषा कार्यान्वयन को व्यवहारिक बनाने के लिए कोई भी समस्या आड़े न आए और वे कर्मचारियों को हिन्दी का ज्ञान व प्रशिक्षण भी देते रहें।

पत्रिका प्रकाशन

बैंकों में राजभाषा के प्रसार के लिए व्यक्तिगत बैंक अपनी कार्यप्रणाली के अनुसार त्रैमासिक अथवा छ:माही पत्रिकाएं भी प्रकाशित करवा रहे हैं। इन पत्रिकाओं के माध्यम से कर्मचारियों का ज्ञान बढ़ता है। वे लेख, कहानियाँ व कविताएं इत्यादि पत्रिका में प्रकाशन हेतु भेज कर अपनी कला का प्रदर्शन तो करते ही हैं, साथ ही दूसरों को भी प्रभावित व उत्साहित करते हैं ताकि वे भी आगे आएं और अपने ज्ञान व रूचियों को दूसरों से बांटें। अपनी लेखनी उठा कर जिस रूप में भी चाहें, राजभाषा हिन्दी का प्रयोग करें, इससे हिन्दी के प्रसार को पर्याप्त बढ़ावा मिलता है। राजभाषा कार्यान्वयन को व्यावहारिक रूप देने का यह अद्वितीय स्रोत है।

पुस्तकालय

राजभाषा नियमों के अनुसार बैंकों के पुस्तकालयों में कुल पुस्तकों का कम से कम 50% पुस्तकें हिन्दी भाषा की होनी चाहिए। ऐसी पुस्तकें भी बनाई गई हैं, जिनके प्रयोग से बैंक कर्मचारी हिन्दी भाषा में अपना सम्पूर्ण कार्य आसानी से कर सकते हैं, यथा बैंकिंग शब्दावली, हिन्दी अनुवाद एवं हिन्दी टिप्पणी आदि।

वित्तीय समावेशन

जन जन तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाना बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का मुख्य उदेश्य था। अब इसे पूरा करना समय की मांग है। क्रेता बाजार व अत्यधिक विकल्प होने के कारण नए ग्राहक बनाना तो कठिन है ही, वर्तमान ग्राहकों को बनाए रखना भी टेढ़ी खीर हो गया है। वित्तीय समावेशन की अवधारणा अर्थात दूर दराज के क्षेत्रों में घर घर जाकर व्यक्तिगत रूप से वार्तालाप करके ग्राहक बनाना ही एक विकल्प है। यह विशेष कार्य किसी मशीन से नहीं, बल्कि मानव शक्ति से ही सम्पन्न हो सकता है। इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दे सकती है तो केवल सरल व सामान्य भाषा। यदि हम ग्राहक से ग्राहक की ही भाषा में बात करेंगे, तभी वे हमारी बात को समझेंगे व अपनी आवश्यकताओं व समस्याओं को हमारे साथ बांटेंगे।

ग्राहक संतुष्टि

प्रत्येक उद्योग की मूलभूत कड़ी ‘ग्राहक’ होता है। आज ग्राहक केवल वहीं जाना पसंद करता है, जहां उसे विनम्र व्यवहार, आदर और समय की बचत का अवसर मिलता हो। यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगी कि एक संतुष्ट ग्राहक बैंक के लिए सर्वोपरि विज्ञापन होता है। इस कार्य में हिन्दी भाषा की अहम भूमिका है। सरल सा एवं व्यावहारिक उदाहरण देना चाहूँगी। अंग्रेजी भाषा में प्रत्येक ग्राहक को ‘यू’ कहकर संबोधित किया जाता है और हिन्दी भाषा में बात करेंगे तो आयु वर्ग के अनुसार ‘आप’, ‘अंकल जी’, ‘भाई साहब’, ‘बेटा जी’, ‘माता जी’, व ‘बहन जी’ कहकर संबोधित करेंगे। इससे ग्राहक निश्चित रूप से अनुभव करेंगे कि उन्हें आत्मीयता से व सम्मानपूर्वक संबोधित किया गया है तथा इस बात का उनके मन पर अवश्य ही सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

प्रशिक्षण

बैंकों में समय समय पर नई नई योजनाएं लागू की जाती हैं। ग्राहकों को नवीन योजनाओं की जानकारी देने के लिए आवश्यक है कि कर्मचारियों को पूर्णरूपेण ज्ञान हो। हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण की आवश्यकता इसलिए है कि अंग्रेजी में सभी कर्मचारी प्रशिक्षण या अनुकरण की सहायता से कितना भी काम कर लें, उसमें उनकी सहजता नहीं हो सकती। अत: आज नहीं तो कल, उन्हें जन जन की भाषा हिन्दी को अपनाना ही होगा। विशेषकर उस स्थिति में जब बैंक अपने विशिष्ट ग्राहकों की छवि से निकलकर आम आदमी के बीच पहुँच गए हैं। ज्यों ज्यों व्यापार में आम आदमी की सहभागिता और योगदान बढ़ रहा है, हिन्दी का प्रयोग भी बढ़ रहा है। अत: ग्राहक सेवा के संदर्भ में भी हिन्दी में प्रशिक्षण अति आवश्यक है।

हिन्दी शिक्षण योजना

राजभाषा विभाग द्वारा प्रशासित हिन्दी शिक्षण योजना के तहत हिन्दी में प्रशिक्षण देश के विभिन्न भागों में स्थित लगभग 230 केंद्रों में प्रदान किया जा रहा है। केन्द्रीय अनुवाद ब्युरो की स्थापना विभिन्न गैर वैधानिक साहित्य, हस्तपुस्तिकाओं/संहिताओं, प्रपत्रों आदि के विभिन्न प्रकारों के अनुवाद हेतु की गई थी। इस ब्युरो को अनुवाद कार्य के साथ जुड़े अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए अनुवाद प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को आयोजित करने के दायित्व सौंपे गए हैं।

पुरस्कार योजना

वर्ष 1986-87 से इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार योजना प्रचलनरत है। प्रत्येक वर्ष बैंकों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र प्रतिष्ठानों तथा नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों को संघ की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में असाधारण उपलब्धियों के लिए पदक दिए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा हिन्दी में मूल पुस्तकें लिखने वाले कार्यरत/सेवा निवृत्त कर्मचारियों को नकद पुरस्कार दिए जाते हैं।

ज्ञान विज्ञान पर मूल पुस्तक लेखन के लिए एक राष्ट्रीय पुरस्कार योजना को आधुनिक विज्ञान/प्रौद्योगिकी तथा समकालीन विषयों की सभी शाखाओं में हिन्दी भाषा में पुस्तकें लिखने को प्रोत्साहन देने के लिए इसे राजीव गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार योजना का नाम दिया गया है। यह योजना भारत के सभी नागरिकों के लिए खुली है। क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय राजभाषा पुरस्कार प्रति वर्ष संघ की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन और हिन्दी के प्रगामी उपयोग को आगे बढ़ाने में असाधारण उपलब्धियों के लिए दिए जाते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी

वर्तमान युग सूचना के विस्फोट का युग है। प्रौद्योगिकी के विकास ने सूचना के आदान प्रदान के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। सूचना के आदान प्रदान का सशक्त माध्यम भाषा होती है। राष्ट्रीयकरण के बाद हिन्दी के प्रयोग में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी थी कि तभी सूचना प्रौद्योगिकी ने क्रांति का रूप धारण कर लिया। देखते ही देखते मशीनें मानव के विकल्प के रूप में सामने आने लगीं। अत: हिन्दी का प्रयोग मशीनों और कम्प्यूटरों के आगमन से बाधित होने लगा। परंतु समय के साथ साथ हिन्दी भाषा के विकास में आने वाली ये बाधाएं भी दूर हो गईं। विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयरों की सहायता से केवल हिन्दी में ही नहीं, अपितु अनेक भारतीय भाषाओं में कंप्युटर पर कार्य किया जा सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘कंप्युटर परिभाषा कोष’ प्रकाशित किया है, जो कंप्युटर के क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग की दिशा में एक ठोस उपलब्धि है। अंग्रेजी से हिन्दी में मशीनी अनुवाद ‘आंग्ल भारती’ और द्विभाषिक अनुवाद सॉफ्टवेयर अनुवाद की समस्या का समाधान करने के लिए उपलब्ध है। हिन्दी शब्दावली नामक पुस्तक भी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई है, जिससे बैंक कर्मचारियों को पत्र व्यवहार करने में सुविधा हो।

व्यापकता की तलाश में राजभाषा कार्यान्वयन

हमारे देश में राजभाषा का दौर राजभाषा नीति के अंतर्गत अस्सी के दशक से आरंभ हुआ तथा तब से अब तक राजभाषा कार्यान्वयन में कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है। यदि मैं कहूँ कि यांत्रिकी, प्रौद्योगिकी को छोड़कर कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। अत: राजभाषा कार्यान्वयन में नएपन की आवश्यकता है। यह नयापन कहीं और से नहीं लाना है अपितु नवीनता संस्था विशेष की कार्यशैली में ही छुपी रहती है, बस उससे राजभाषा को जोड़ने के कुशल प्रयास की आवश्यकता है। राजभाषा को व्यापकता प्रदान करने के लिए कार्यान्वयन की शैली में संस्था के दायरे के अंतर्गत अभिनव परिवर्तन लाना चाहिए। राजभाषा को केवल राजभाषा नीति और भारत सरकार, गृह मंत्रालय के अतिरिक्त कर्मचारियों से भी जोड़ कर देखना चाहिए। एक ऐसा वातावरण निर्मित करना चाहिए जिससे राजभाषा कार्यान्वयन की नई धड़कनों का अनुभव समस्त कर्मचारियों को होता रहे।

By: Kamlesh Manchanda

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