मनमौजी

By: Rajeev Kumar

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परेशानी का शवब, उदासी के शवब से कहीं छोटा है, यह बात मनमौजी किसी को समझाए तो कैसे, वो समझा तो दे, मगर समझने वालों के मुँह से आह निकलेगी और नासमझों के मुँह से वाह निकलेगी। मनमौजी ने इसलिए चुप रहना मुनासिब समझा। मन की करता रहता, कभी घुटता तो कभी खिलखिलाता रहता। मनमौजी का असली नाम तो शायद किसी को याद भी नहीं हो मगर सब उसको मनमौजी ही बुलाते हैं।

अनाथ मनमौजी का पालन-पोषण करने वाली उसकी मौसी ने एक दिन कहा ’’ तुम्हारी नज़र में कोई लड़की है तो बता जाकर बात करती हुँ, नहीं तो मेरी पसंद की लड़की से तुम्हें शादी करनी पड़़ेगी। ’’

’’ जबरदस्ती ? ’’

’’ हाँ, हाथ-पैर बाँध कर। ’’

मौसी की इस बात पर मनमौजी ने कहा ’’ ऐसा कर मौसी तु घर से ही निकाल दे, चला जाउंगा। ’’

दिल पे लगी तीर को सहन कर मौसी ने मसखरी अंदाज में कहा ’’ आ हा हा, तेरे जन्मने से अब तक चुल्हा फुँक रही हूँ और अपना हाथ जला रही हूँ, तुम्हारा यही बकवास फैसला सुनने के लिए ? ’’

’’ और नहीं तो क्या मौसी, अभी शादी करने की कोई उम्र है ? ’’

’’ नहीं तो क्या दाढ़ी बाल सफेद कर लेगा तब ब्याह करेगा ? ’’ मौसी की अँगुलियां, मनमौजी के कान को ऐंठ रही थी और कान की एंेठन से मनमौजी के मन का नियंत्रण मौसी के हाथ में चला गया और मनमौजी ने शादी के लिए हाँ कर दी।

मनमौजी ने महसूस किया कि परेशानी का शवब बढ़ने वाला है और उदासी का शवब छँटने वाला है। रोटी जुटाने में दर-बदर तो होना ही होगा मगर तन्हाई की उदासी छँट जाएगी।

नयना के आ जाने से मनमौजी के जीवन मंे दो प्यार करने वाले हो गए। मौसी की ममता का आँचल तो हमेशा मनमौजी के सिर पे ही रहा मगर नयना के खुशबूदार और रंगीन एहसास के लिवाज ने मनमौजी के बदन को बदन को ढंक दिया।

जनगणना वाला आया और आवाज लगाई ’’ ओ मनमौजी। ’’ तो नयना ने बाहर आकर कहा ’’ यहाँ मनमौजी कोई भी नहीं रहता है। ’’

जनगणना करने वाले ने कहा ’’ नहीं मनमौजी तो वहीं रहता है। ’’

’’ नहीं, उनका नाम महेश लिख लीजिए। ’’

मनमौजी ने बाहर निकल कर कहा ’’ हाँ हाँ, महेश लिख लीजिए, क्योंकि अब मैं अपने मन की कर ही नहीं पाता हुँ। ’’ मौसी मुस्करा दी थी मगर नयना थोड़ी झल्ला गई थी।

तीन दिन मनमौजी ने कोई भी काम नहीं किया, आठ बजे तक सोया ही रहा, गली मंे दोस्तों के साथ गोली और गुल्ली डंडा खेला, बच्चों के साथ तीतली के पिछे भागा, बच्चों के सथ रामदीन काका के बाग में आम चुराए।
विस्तर पे मनमौजी ने नयना से कहा ’’ तुम मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करती हो। ’’

नयना ने फटी आँखों मनमौजी को एकटक देखा और कहा ’’ आपको आपके मन की करने दे रही हुँ, और कैसा प्रेम चाहिए । ’’

मनमौजी ने कहा ’’ प्रेम वो नहीं कि हमको छुट दो, प्रेम वो कि तुम रोको-टोका, हिसाब रखो चाहे रूपए का चाहे समय का। ’’

अब नयना और मनमौजी दोनों एक दुसरे की बात मानते हैं।

By: Rajeev Kumar

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