पहला दिन पाठशाला का

By KISHOR SHRIKANT KELAPURE

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पहला दिन पाठशाला का आज मेरे बेटे का पहला दिन था पाठशाला का। पहले ही दिन स्कूलबैग , यूनिफार्म और जूते पहनके तैयार था। हम मेरे स्कूटर से पहुंचे पाठशाला में। कुछ बच्चे स्कूल में जाने के लिए बड़े उत्साही थे , कुछ थोड़े नाराज थे , कोई बच्चे इधर-उधर देख रहे थे। जितने बच्चे उतने ही पेरेंट्स। बड़ी भीड़ थी वहा। दो घंटे के बाद बच्चोंकी छुट्टी हुई। मई फिर से पंहुचा वहा। वहा का दिखावा बड़ा मजेदार था। सब बच्चे मानो एक जैसे ही लग रहे थे। दौड़े आते और रुक के इधर उधर अपने मम्मी पापा को देखते। वो दिखे तो फिरसे दौड़के उनके पास पहुंचते। मेरा बेटा भी आया मेरे पास। हम लोग घर पहुंचे। “और , कैसा रहा पहला दिन पाठशाला का “? मैंने पूछा। “यस्स , बहुत मज्जा आया। एक मैडम आयी। उन्होंने खुद का नाम बताया। फिर एक एक करके हम सबसे नाम पूछते गए और पापा क्या करते है ये भी बताना पड़ा। पापा , मालूम है ? कुछ बच्चे पापा के साथ साइकल से आये। मैंने बोला उनको की मेरे पापा देंगे आपको पैसे फिर ख़रीदलेना स्कूटर नयी ” बेटा बता रहा था। बहुत खुश नजर आ रहा था। गैलरी में बैठे बैठे कब मै अतीत में चला गया पता ही नहीं लगा। याद आया मेरा पहला दिन पाठशाला का। थोड़े से ही अंतर में थी हमारी पाठशाला। स्कूल के पहले दिन हम सात – आठ दोस्त पैदल पहुंचे स्कूल में। प्रार्थना होने के बाद अपने अपने कक्षा में बैठे। थोड़ी देर बाद एक मैडम आयी। “नमस्ते मैडम ” हम सब बोले। “नमस्ते। बैठ जाओ ” टीचर बोली। फिर उन्होंने खुद का नाम बताया और बोली “एक एक बच्चा अपना नाम बताये और रोज सुबह क्या पिके आता है मतलब दूध , चाय , कॉफी – ये बताना है । एक एक बच्चा बताने लगा। कोई दूध पीता था कोई कॉफी। अब मेरी बारी आयी। मैंने बताना शुरू किया। “मेरा नाम किशोर। “। टीचर बोली ” अरे सुबह क्या पिके आते हो ? चाय कॉफी , बिस्किट ?”। “कुछ नहीं ” मै बोला। पूरी कक्षा हसने लगी। टीचर बोली “पाठशाला के पहलेही दिन झूट बोल रहा है ? अपने मम्मी पापा को बुलाऊ क्या ? खड़े रहना सुब का परिचय होने तक”। मुझे पनिशमेंट मिली। मै बड़ा नाराज हुआ। घर पहुंचने के बाद मम्मी और बहने राह देख रहे थे। उन्होंने पूछा कैसा रहा पहला दिन पाठशाला का। मै कुछ नहीं बोला। “अरे कुछ तो बोल ” एक बहन चिल्लाई। “कुछ नहीं , सिर्फ नाम पूछा ” मै बोला। “बस ? और कुछ नहीं”?। बहन बोली। “और पूछा की सुबह क्या पीते हो चाय या कॉफी”। मै बोला। “तो फिर क्या बताया आपने”?। “कुछ नहीं पीता करके बताया”। बहन फिरसे चिल्लाई ” क्या ? ऐसा बताया तूने ? अरे बोल देना था कुछ भी चाय – कॉफी। कौन आ रहा था देखने ? क्यों बताई अपनी गरीबी सब के सामने” ? मै बोला ” मम्मी मैंने कहा झूठ बोला ? कहा कुछ पीते है हम सब ? सच बोलने के बाद भी पनिशमेंट हुई मुझे। बताओ न मम्मी, मेरा क्या गलत था” ? मम्मी बोली ” बेटा तू बिलकुल सही था। लेकिन समाज से टकराना धीरे धीरे सिख जायेगा तू”। कौन सही था? अपनी बिकट परिस्थिति दूसरों को न बताने को कहने वाली मेरी बहन सही थी या सच बताने वाला मै ? ऐसा रहा मेरा पाठशाला का पहला दिन। बाद में मानो ऐसे ही दिन गए। दूसरे बच्चो के अच्छे कपडे देखते और अपनी फटी प्यान्ट को छुपाते दोनों हाथ पीछे रख के। कॉलेज के दिन में लगा की अब सब बड़े हो गए तो सोच भी बड़ी होगी। नहीं हसेंगे मेरे मेरे कपडे पे। लेकिन नहीं। साल भर एक ही शर्ट प्यान्ट पहने पे बहुत ताने सुने। मानो गरीबी कोई स्टेटस ही नहीं है। कोई समझने को तैयार नहीं किसी की बिकट परिस्थिति। हे दुनिया वालो। क्यों बर्बाद किये मेरे हँसीन साल। मुझे भी जीना था स्कूल कॉलेज के दिन मजे से। लेकिन चप्पल और कपडे पे तोला सबने स्टेटस । क्या गरीबोंको कोई हक़ नहीं कॉलेज के सुनहरे दिन जीने का ? क्या कोई वापस लौटा सकते है फिरसे वे स्कूल कॉलेज के दिन ? क्या फिर से आ सकता है पहला दिन पाठशाला का ?

By KISHOR SHRIKANT KELAPURE

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