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पर्यावरण बहुत व्यापक शब्द है। इसमें वह सब सम्मिलित है, जो हमारे ऊपर नीचे और आसपास है। पर्यावरण वह सब है जो हमारे चारों ओर उपस्थित है। यह मानव जीवन और साथ ही समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानव जाति प्रकृति का ही अंग है और प्रत्येक जीवन प्राकृतिक व्यवस्था के अवैध रूप से कार्य करने पर निर्भर है। यह प्रकट तथ्य है कि आज विश्व का लगभग प्रत्येक देश पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या का सामना कर रहा है।

पर्यावरणिक प्रदूषण का अर्थ है पर्यावरण में ऐसे किंही भी प्रदूषक तत्वों की उपस्थिति जो प्रदूषण या ह्वास उत्पन्न कर रहा है या जिससे इनके उत्पन्न होने की संभावना है। इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ है वायु, जल और भूमि आदि की गुणवत्ता का बिगड़ना। मनुष्य का सबसे विनाशकारी शत्रु वह स्वयं है क्योंकि वह जिस पर्यावरण में रहता है उसी को प्रदूषित करता है। इस प्रकार व स्वयं अपने होने के अभिप्राय को नर्क बना देता है। 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उचित ही कहा था “पृथ्वी के पास प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत कुछ है, किंतु प्रत्येक मनुष्य के लालच को पूरा करने के लिए नहीं है”।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषण वायु में ऐसे पदार्थों की उपस्थिति है, जो मनुष्य और उसके पर्यावरण के लिए हानिकारक है। वायु प्रदूषण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है – धुआं, धूल, धुंध आदि जैसे प्रदूषण और कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन आदि जैसे गैसीय प्रदूषक तत्व।

कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि जैसे औद्योगिकी आगत मनुष्य द्वारा चलाए गए जीवाश्म ईंधनों से घरेलू प्रदूषण, ऑटोमोबाइल एक्जास्ट या वाहनों द्वारा प्रदूषण, औद्योगिक कचरा या अपशिष्ट, महीन धूल जैसे हवा में झूलते अति सूक्ष्म कणिका पदार्थ और औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्सर्जित धूम्रकण, ये सभी वायु को प्रदूषित करते हैं। 

पृथ्वी परिसीमित है और परिसीमित पृथ्वी केवल परिसीमित जनसंख्या को ही सहारा दे सकती है। तथापि आज जनसंख्या का विस्फोटक हो चुका है। प्रत्येक मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर नया बोझ उत्पन्न कर रहा है। शहरीकरण का अर्थ है कि लोग नौकरियों की खोज में शहरी जीवन के आकर्षण आदि के कारण शहरी क्षेत्र में प्रवास कर रहे हैं। शहर जंकिन हो गए हैं। उद्योग, वायु प्रदूषण के मुख्य कारण है। उद्योगों को कच्चा माल चाहिए होता है तथा जिसके कारण भूमि वनों की बेधड़क कटाई की जा रही है। औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न अशोधित और उपचारित अपशिष्ट जल को भूमि, वायु और जल में छोड़ दिया जाता है, जिससे वह क्षेत्र के परिस्थितिक तंत्र को क्षति पहुंचती है और प्रदूषण होता है। हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह नाना विद प्रकारों से प्रदूषित हो जाती है। ग्रामीण लोग अपना खाना पकाने के लिए गाय के गोबर, जलाऊ लकड़ी और खेतों के कचरे का उपयोग करते हैं। जिससे कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक तत्वों में बढ़ोतरी होती है। शहरी क्षेत्र विशेष रूप से दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहर निगम के प्रदूषित के प्रदूषण के लिए उत्तरदाई हैं। मोटर वाहन बिजली संयत्र और रिफाइनरी भी कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि के साथ-साथ धूल करते हैं। यह धूल के कण हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। धूल में विषैले और भारी धातु ऑक्साइड होते हैं जो पाचन तंत्र के कैंसर से अनेक रोगों का कारण बनते हैं। वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, अम्लीय वर्षा उत्पन्न करते हैं जो पेड़, पौधे, जीव जंतु और मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करती है। और जंतुओं के लिए भी हानिकारक होती है। कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड में प्रवेश करती है तब समानता के कारण हीमोग्लोबिन की ओर आकर्षित होती है। और आशी हिमोग्लोबिन में ऑक्सीजन की विस्थापित कर देती है।  और इस प्रकार रक्त में कार्बन की स्थापित कर देती है। और इस प्रकार रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड का संकेत बढ़ जाता है जिससे सिर दर्द, सांस की कठिनाई उत्पन्न करती है। और इसके कारण मृत्यु तक हो जाती है। जो स्वयं की धूल कोहरा उत्पन्न करती है पौधे की वृद्धि के लिए चालू होती है और मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंचाती है। कार्बन डाइऑक्साइड वैश्विक तापन उत्पन्न करती है हमने देखा कि यह वर्षा संगमरमर से बने हमारे स्मारकों और मूर्तियों को प्रभावित करती है, आशंका व्यक्त की जाती है कि प्रसिद्ध ताजमहल मथुरा तेल रिफाइनरी से सल्फर डाइऑक्साइड लेकर आने वाली हवाओं से इस सीमा तक प्रभावित हो सकता है कि उसे फिर पूर्व अवस्था में नहीं लाया जा सकेगा। ओजोन की परत सूर्य से आने वाली हानिकारक युवी अल्ट्रावायलेट या पैरा मेंगनी विकिरण को सोख लेती है ओजोन परत के साथ छेड़छाड़ के परिणाम स्वरुप बचा के अनुसार आंख के रोग प्रतिरोधक प्रणाली की क्षति की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है जनसंख्या जियो जियो जियो जियो उत्तरोत्तर वृद्धि अंकित कर रही है मनुष्य नए नगर और उद्योग स्थापित करने के लिए अधिक वृक्ष की कटाई करने तथा वनों का सफाया करने में व्यस्त है परिणाम स्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बढ़ता जा रहा है इसका परिणाम पृथ्वी के गर्म होने और वर्षा की अत्याधिक हानि के रूप में पहले ही सामना सामने आ चुका है वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कार पुलिंग, ऑटोमोबाइल की संख्या में कमी या नियंत्रण, ऐसे कुछ उपायों हैं जो अपनाए गए हैं। इसके साथ ही उत्पादों का पुनर्चक्रण, पटाखे फोड़ने पर रोक स्वास्थ्य योगिक को आरंभ और प्रदूषण नियंत्रण विधि विधानों का कड़ाई से पालन आवश्यक है। शहरी  योजना को आवासीय व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्र में आयुक्त स्थानों पर स्थापित या पुनर्स्थापित करना ही चाहिए। क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर समस्याओं की पहचान करके उसी के अनुसार उनका समाधान करना चाहिए। सूर्य से प्राप्त उर्जा में निर्मित सौर बिजली भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी के हुए आंतरिक विद्रोह द्वारा विभाग द्वारा उत्पादित प्राकृतिक रूप से मिलने वाली ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। जनसाधारण को पर्यावरण की शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए। लोगों को इसके कारण और खतरनाक प्रभाव से अवगत होना ही चाहिए, अन्यथा में प्रदूषण को कम करने के प्रयास नहीं करेंगे। 

श्री एम सी मेहता द्वारा दायर की गई एक पीआईएल के उत्तर में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह पर्यावरण अध्ययन को अनिवार्य बनाए। यह लोगों के बीच जागरूकता उत्पन्न करने के पर्यावरण प्रदूषण को यथेष्ट सीमा तक लगाम लगाई जा सकती है। वायु प्रदूषण अधिनियम सम्मेलन से ली गई प्रेरणा का परिणाम है यह वायु प्रदूषण को रोकने के लिए राज्य और केंद्र की स्थापना अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन के लिए किए गए अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता हैं। इसी प्रकार नगर पालिका ठोस कचरा नियम, घरेलू और चिकित्सा अपशिष्ट को समुचित व्यवस्था करते हैं। पर्यावरण प्रभाव आकलन वह कार्य है जिसमें पर्यावरण पर बौद्धिक गतिविधि के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है। सामाजिक प्रभाव आकलन में किसी भी विकास परियोजना को आरंभ करने से पहले जनता को सम्मिलित किया जाता है। यह पर्यावरण की गलती का परिणाम हो सकता है समस्याओं से आसानी से निपटने के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं। यह उपाय अपने स्वरूप को निवारक रोकथाम के उपाय है सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में प्रदूषण सिद्धांत का समावेश किया है। पर्यावरण को पहुंचाई गई क्षति और हानि के लिए क्षतिग्रस्त परिस्थितिक तंत्र को वापस मूल स्थिति में लाने के लिए प्रदूषण की पूर्णता उत्तरदाई है किसी भी विधि विधान की सफलता उसके क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। पर्यावरण प्रदूषण के प्रत्येक पहलू को सम्मानित करते हुए उनका समाधान निकालने के लिए अंतरराष्ट्रीय वार्ताएं आयोजित की गई हैं। अनुसंधानकर्ता पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इस ग्रह को बचाने के लिए पद्धतियां निकालने के कार्य में जुटे हुए हैं। लोगों को भी प्रदूषण के खतरे का बोध होना चाहिए और पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार के परियोजनाओं के साथ जुड़ना चाहिए।

इस संदर्भ में 1973 उत्तर प्रदेश के हिमालय की चोटियों के आंदोलन को लोगों द्वारा कार्यवाही के रूप में और की आवश्यकता है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए एक जनांदोलन संगठित किया जाए । परंतु प्रकृति गीत संपदा को बढ़ाने के प्रत्येक व्यक्ति के प्रयासों को कम करने नहीं आना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम अर्थात यूएनडीपी ने सही ही कहा है।

By VISHAL KUMAR SINGH

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