समस्याओं की जड़ तक

To the root of the problems, By: Ansuman Bhagat

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हम जो देखते हैं और महसूस करते है उसे सही मायने में देखा जाए तो केवल अपने अंदर ही छुपा कर रखते हैं और जो हमारे मन के भीतर होता है वह कभी भी एक दूसरे या समाज के सामने नहीं ला पाते। हम बातें तरह तरह की करते हो किंतु सामने खड़ा व्यक्ति को यह अंदाजा तक नहीं होने देते कि हमारे मस्तिष्क (दिमाग) में क्या चल रहा है। यही वजह है कि आज लोग एक दूसरे से ज्यादा नहीं जुड़ पाते भले ही वह साथ होते हैं। समाज वक्त के साथ-साथ एक ऐसे बदलाव की तरफ झुकता जा रहा है जहां तरह तरह की समस्याओं से लोग खुद को उलझते पा रहे हैं। वक्त के बदलते स्वरूप में हर मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने को लेकर परेशान है और इसे ही सबसे ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है।

अगर सच कहे तो समस्याएं हमें जीवन में एक दिशा देने का काम करती है। विकास और संसाधन तो एक बहाना है प्राकृतिक से हमें वह सब कुछ मिल जाता है जो हमारे लिए आवश्यक है हम अपनी उलझनों को खुद बुलावा देते हैं जरूरत से ज्यादा सोच कर और कुछ ना करके। दिन प्रतिदिन हमारी इच्छाएं बढ़ती जाती है क्योंकि यही मनुष्य का स्वभाव होता है।

कोई भी समस्या चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, हमारे जीवन में तब तक साथ रहेगी, जब तक की हम उसका सामना न करें और उसके बाद भी जीवन में समस्याएं न आए यह तय नहीं है। समस्याओं का सामना आपको तब तक करना होगा जब तक हम जीवित है। समस्याएं सभी के जीवन में होती है और आती रहेंगी, जब हम इसका सामना करते है तो जीवन में खुद को आगे बढ़ते हुए पाते है।

आपने देखा होगा कि रोजमर्रा की जिंदगी में चाहे वह कुशल बिजनेसमैन हो, एक जॉब करने वाला व्यक्ति हो या एक रिक्शा चालक ही क्यों न हो, सभी की अपनी-अपनी जरूरतें होती है एक बिजनेसमैन अपने डील को लेकर परेशान रहता हैं एक जॉब करने वाला व्यक्ति अपने बॉस से और एक रिक्शा चलाने वाला व्यक्ति अपने दिन भर में ना होने वाले कमाई से। उनकी रोजमर्रा की जरूरतें तो पूरी होती है किंतु और ज्यादा पाने की कोशिश में बेवजह परेशान होते हैं जिससे उन्हें शारीरिक रूप से तो नहीं किंतु मानसिक तौर पर तनाव जरूर होती है और यह पहले के मुकाबले आज के व्यक्तियों में ज्यादा पाया जाने लगा है।

आज के समय में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं सोचता कि जितना मेरे पास है उतना काफी है और कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि हमारे आसपास ही ऐसे कई लोग हैं जो हर रोज अपनी जिंदगी से लड़ते हैं तब जाकर एक समय की रोटी नसीब होती है यदि आप गौर करे तो ऐसे व्यक्ति अपने मेहनत और अपने काम को दिखाने तक कोई कसर नहीं छोड़ते और केवल एक वक्त की रोटी में ही खुश रहते हैं और दूसरी तरफ वह लोग जिनके पास सब कुछ पहले से ही होता है बस थोड़ा और पाने के लालच में खुद को तनाव ग्रसित करते चले जाते हैं और यही परेशानी डिप्रेशन में कब तब्दील हो जाती है यह किसी के लिए जान पाना मुश्किल होता है।

By: Ansuman Bhagat

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