सत्य -एक अलौकिक शक्ति

नीलू गुप्ता

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सत्य वास्तव में एक अलौकिक शक्ति है और यह एक मनुष्य के लिए महाशक्ति तब बन जाता है जब मनुष्ये इस सत्ये को खुद से बोले। सत्य हर जगह है ,हर आत्मा में है , हर दिल में है । हर इंसान की ईमानदारी, कर्मनिष्ठा ,उसका दायित्व उसके आचार,विचार और उसकी सोच इस बात पर निर्भर करती है की वो अपनेआप से कितना सच बोलता है।

इंसान अपने सिद्धांतो को अपने सच बोलने और सोचने की शक्ति पर निर्धारित करता है । मनुष्ये एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने के लिए उसे कई प्रकार से अपने आप को बदलना पड़ता है, जिसमे वो कई बार सामने वाले को बुरा न लग जाये ,इसलिए वह झूठ भी बोलता है ,समाज में उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे इस लिए भी वह समाज के दूसरे लोगो की हाँ में हाँ मिलता है चाहे वो सही हो या न हो ,अपने फायदे के लिए यह जानते हुए भी की वह गलत कर रहा है, वह झूठ का सहारा लेता है ।

लेकिन झूठ बोलकर, गलत सहारा लेकर और डींगे हाँककर भी वह अपने जमीर से चाहकर भी झूठ नहीं बोल सकता । उसे उसकी आत्मा,उसका दिल हमेशा याद दिलाता रहता है की उसने गलती की है । इंसान चाहकर भी अपने आप से झूठ नहीं बोल सकता, यही भगवान की सबसे बड़ी माया है ।

सच बोलना खुद से और समाज से इस दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्तियों में से एक है । सच बोलने के लिए सही आचरण का होना, अपनी शिक्षा में सक्षम होना और अपनी चादर में ही अपने पैर फैलाना बहुत आवश्यक है । जो इंसान सच बोलता है उसको कभी किसी के सामने झुकना नहीं पड़ता अपितु उस इंसान को सामने वाला कहाँ झूठ बोल रहा है इस बात की समझ होती है । सच बोलने वाले को कोई भय नहीं होता व् वह शांति से परिपूर्ण होता है । सच बोलने वाले के पास प्राकर्तिक रूप से अपने आसपास के वातावरण और लोगो को पहचानने की समझ होती है । सच बोलना अपनेआप में एक अलौकिक कला है । सच बोलना और उस पर टिके रहना बहुत हिम्मत का काम होता है ।

सच पहले खुद से बोलना चाहिए , इस से मन में विश्वास आता है ,आचरण में दर्ढ़ता आती है । इंसान जो सोचता है अगर वही बोलता है और वही करता है तो वह अपने आप से ईमानदार होता है । सच बोलना और सच को स्वीकार करना मनुष्ये की सबसे बड़ी शक्ति है । सच वह यंत्र है जो उस ईमानदार व्यक्ति की आत्मा में वास करता है जो सच को हिम्मत से स्वीकार करता है ।जो व्यक्ति सच बोलता है वह अपने परिवार को भी सच की राह पे चलाने की ताकत रखता है और ऐसे कई परिवार मिलकर एक सशक्त समाज का  निर्माण करते है । जो सच बोलता है वह हमेशा ऊर्जा से और अच्छे भाव व् गुणों से भरा रहता है । उसका चेहरा सदैव मुस्कान से और पूर्णता से दमकता रहता है, सच बोलने वाले को कभी चिंता नहीं सताती और वह रात को चैन की नींद सोता है ।

सच शांति से और सही तरीके से बोला जाये तो वह सामने वाले पर गहरा असर छोड़ता है । सच की लड़ाई लम्बी और कठनाइयों से भरी होती है लेकिन अंत में जीत सुखमये होती है । सच सभी वर्गों को और सभी विषयो को छूता है । सच बहुत ही सरल और सीधा होता है परन्तु बहुत लोगों को यह कड़वा लगता है क्योंकि वह उनके अनुकूल नहीं होता ।

सच सुनने में बुरा व् कहने में  डर लगता है। सत्यवादी व्यक्ति को कभी किसी के आगे झुकना नहीं पड़ता अपितु पीठ पीछे लोग उसकी बड़ाई ही करते है, और धूर्त और मुर्ख व्यक्ति उनसे दूर ही रहते है । सत्ये कहाँ और कैसे कहा गया है इस बात का फर्ख लोगों को पड़ता है । सच अगर विनर्मता से कहा जाये तो शांति लाता है और अगर सच क्रोध से कहा जाये तो विध्वंश का कारण बन जाता है ।

सच वहाँ पनप्ता है जहाँ माता पिता के उच्च संस्कार बचपन से दिए गए हो , जहाँ अच्छे और गुनी लोगों की जीवनियाँ व् उदहारण सुनने को मिलती हो और उनके आदर्शो पे चलने की प्रेरणा मिलती हो, जहाँ अपने कर्मो व् गलतियों का आंकलन मनुष्ये ईमानदारी से स्वीकार करता हो ,जहाँ विद्या का समान होता हो, जहाँ वेद ,पुराण व् अन्य ग्रंथो के पढ़ने से ज्ञान का बोध होता हो, सच का वहाँ वास होता है ।

सत्य एक व्रत है जो बुराई के खिलाफ है । सत्य की नीव इंसानियत ,प्रेमभाव, सदाचार व् आत्मसम्मान पर रखी जाती है । सत्य वह बहुमुल्ये शक्ति है जिसमें दुसरो के लिए द्वेषभाव ,क्रोध और प्रतिशोध के लिए कोई जगह नहीं है ।

जय हिन्द

नीलू गुप्ता

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