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यह तो हम सब जानते हैं कि श्रीकृष्ण सबसे बड़े लीलाधर हैं | उनकी लीलाओं को समझना असंभव सा कार्य है और जब मेरे साथ यह घटना घटी तो मुझे समझ ही नहीं आया कि यह लीला है या फिर कोई भ्रम है | अब आप सबका ज्यादा समय बर्बाद किए बिना मैं अपनी कहानी आरंभ करती हूँ ||

मुझे वृंदावन कान्हा से बड़ी मिन्नतों के बाद जाने का मौका मिला था, पर मुझे नहीं पता था कि वहाँ जाकर कुछ गजब सा होने वाला है…
वहाँ कुछ ऐसा होने वाला था जो भ्रम था या कुछ और मुझे नहीं पता….
तो कहानी आरंभ होती है जब मैं वृंदावन धाम पहली बार गई थी…

वृंदावन की पावन भूमि पर कदम पढ़ते ही राधे राधे की गूँज कानों में पड़ने लगी ,जैसे-जैसे श्री राधे-राधे सुनाई देता वैसे-वैसे ही एक अलग सी उमंग महसूस होने लगती |

मेरे साथ मेरे पूरा परिवार राधा कृष्ण के धाम आया था, हम लोग बांके बिहारी मंदिर के बाहर काफी दूरी पर खड़े थे  ,बड़े लोग पूजा का सामान लेने चले गए और हम बच्चों को कुछ सामान पकड़ाकर कर मंदिर से कुछ दूर छोड़ गए |
बच्चों में मेरे साथ मेरे दो भाई और एक बहन थी | बड़ों के जाते ही मेरे भाई लोग पास में घूमने निकल गए और तभी मेरी बहन का फोन आ गया और वह भी मुझसे थोड़ी दूरी पर जाकर बात करने लगी, अब मैं अकेली खड़ी बांकेबिहारी जी के मंदिर को निहारने लगी , उनके बारे में सोचने लगी थी |

मैं सोच ही रही थी तभी मेरी सामने एक लड़का आया,  पहले मुझे लगा कि वह किसी और को देख रहा है पर वह मुझे ही देख रहा था…| मैंने उसकी तरफ से आंखें  घूमा ली पर वह मेरे पास आया और बोला –
“सुनो !! “
मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी थी क्योंकि मुझे लग रहा था कही वह किसी और से तो बात नहीं कर रहा है |  पर वह फिर बोला – “सुनो!!”
मैंने हल्के से हां कहा ; क्योंकि इस बार पक्का था की वह मुझसे ही बात कर रहा है ,
फिर वह मुझसे पूछने लगा ” ये बांके बिहारी जी कहाँ मिलेगें मुझको !! “

उसका यह प्रश्न सुनकर मुझे बहुत अजीब लगा क्योंकि वह मंदिर की ही तरफ से आ रहा था और फिर बांकेबिहारी कहाँ है मुझसे ये पूछ रहा है? 
वह फिर बोलने लगा – तुम्हें पता है क्या !!

मैंने उसे कहा कि तुम वही से तो आ रहे हो ,उनके पास से !
लगाये सुनकर वो हँसा और कहने लगा –
” वह तो मूर्ति है !, मैंने तो सुना था की यहाँ सच में बांकेबिहारी जी रहते हैं !! कहाँ है वो आखिर ? ….
मैं तो उन्हीं को ही देखने यहाँ आया हूंँ !! “
ये कहकर वो चुप हो गया |

एक कृष्ण प्रेमी जो वृंदावन आने के लिए तड़प रहा हो, जब वह ऐसा प्रश्न सुनेगा तो आखिर क्या होगा उसका उत्तर … आप लोग ही बताइए |

खैर मैंने उसे वही उत्तर दिया जो मेरी जगह आप लोग भी शायद देते |
” कृष्ण तन की नहीं मन की आंखों से दिखाई देते हैं! “

यह सुनने की बाद वह फिर से मुस्कुराने लगा और मेरे चहरे को देखते हुए बोला – “क्या तुमने कभी देखा है उनको अपनी मन की आंखों से ? “
उसका ये प्रश्न सुनकर मुझे कुछ समझ नहीं आया मैंने झट से बोल दिया – ” मैं उन्हें महसूस कर सकती हूं!!”

उसने भी तुरंत प्रश्न किया ” मैं देखने की बात कर रहा हूँ मैडम ! “
पता नहीं मुझे उस वक्त क्या हुआ मैंने आज से पहले कभी ऐसा नहीं किया था , मैंने उस लड़के का हाथ पकड़ा और आगे की ओर जाने लगी , पर जैसे ही मैंने उसका हाथ पकड़ा !! मुझे कुछ अजीब सा लगने लगा… मैंने उसका हाथ झटके से छोड़ दिया और उसकी तरफ मुड़ी , उसकी आंखों में आंखें डाली |

उसकी आँखों में देखकर ऐसा लगा की जैसे मैंने पहले भी ये आंखे कही देखी है … ऐसा लगा कि मानो कोई तो रिश्ता है उन आंखों से मेरा… |

मैं तो उसकी आँखों में खो ही गई थी,
फिर उसकी आवाज सुनकर मै होश में आई |
वह कहने लगा –
” अरे आप कहाँ खो गई !! कहीं ले जा रही हो मुझको आप , कम से कम बोल कर तो ले जाओ ; हाथ ही पकड़ लिया मेरा!! “
यह सुनकर  मैं शरमा गई और कुछ ना बोल कर आगे बढ़ने लगी,
फिर वह पीछे से बोला – ” मुझे भी आना है क्या !!?”  यह सुनकर पता नहीं क्यों मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और मैं रुक गई, फिर वह भी मेरे साथ आकर चलने लगा |
पता नहीं क्यों बार-बार मेरा मन उसकी ओर देखने को कर रहा था, मुझे नहीं पता मुझे क्या हो रहा था! वह भी हल्के-हल्के मुस्कुरा रहा था|

हम लोग मंदिर के पास पहुंच गए पर वहाँ बहुत भीड़ हो रही थी, भीड़ देख कर वह बोला  –
” यहाँ से तो मैं अभी-अभी आया हूं , वापस यहाँ ले जा रही हो मुझे क्या !!  यहाँ पर बहुत भीड़ हो रही है |”
मैं भीड़ की तरफ देखने लगी तभी उसने मुझे कहा –
” मैं एक रास्ता जानता हूंँ अंदर जाने का जहाँ से भीड़ नहीं होती है !! “
वह यह कहकर आगे बढ़ने लगा, मैं अभी भी वही खड़ी भीड़ को देख रही थी, सोच रही थी क्या मुझे एक अनजान लड़के के साथ जाना चाहिए!!
ये ख्याल मेरे दिमाग में अभी चल ही रहा था कि उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे ले जाने लगा |
मैं उसको घूरने लगी , वह पीछे मुड़ा और हंँस कर बोला –
” मैडम जी आपको किडनेप नहीं कर रहा हूं,आपको आपके कान्हा के पास ही ले जा रहा हूं!! “
और मुस्कुरा दिया|
हाथ पकड़कर मेरा वह आगे-आगे चलने लगा |
लड़कों से ज्यादा बात करना मैं पसंद नहीं करती हूँ ,
मॉडर्न लव और लोगों में विश्वास नहीं करती हूं ,
पता नहीं फिर भी क्यों उसके साथ चलती दी थी  चुपचाप उस वक्त |
मुझे पता नहीं क्यों वह अपनी ओर आकर्षित कर रहा था , उसका स्पर्श अपनापन महसूस करा रहा था ,
मैं आस-पास नहीं उसकी ओर देखकर ही चल रही थी… बस चलती जा रही थी…पता नहीं उस समय किस ख्वाब में खो चूकी थी |

जैसे ही ख्वाब टूटा मैं देखती हूं की वह मुझे बांकेबिहारी मंदिर केे गर्भ ग्रह के पीछे ले आया था,
वहाँ पर मैं और सिर्फ वो थे |
फिर उसने मुझसे कहा – ” आप यहीं तो लाना चाहती थी मुझको! लो हम आ गए … मूर्ति आगे की तरफ है, अब बताओ कहाँ है आपके बांकेबिहारी जी?!! “
उसकी बातें सुनकर मानो मैं सोई हुई नींद से जाग गई थी अपने आसपास का वातावरण देखने लगी फिर उसकी ओर देखा और कुछ सोच कर बोली –
” सुनो आप अपनी आंखें बंद करिए और अपने दिल पर हाथ रखिये और मंदिर के वातावरण में खो जाइए, उन्हें महसूस करिए आपको वो जरूर देखेंगे !! | “

वह लड़का आंखें बंद करता है और दिल पर हाथ रख कर रखता फिर थोड़ी देर की शांति के बाद कहने लगता है, कि उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा और ना ही कुछ महसूस हो रहा है |
“अपने दिल की धड़कन तो महसूस की ही होगी !” मैंने उससे पूछा |

अरे बोला न ! मैंने कुछ नहीं सुना , ना ही महसूस किया, तुम्हें यकीन नहीं है तो खुद ही सुन लो मेरी धड़कन वह बोला |
मैंने हैरानी से उसकी आंखों में देखा , ऐसा लगा मानो वो सच कह रहा है और फिर अपना सर उसके सीने में रखकर उसकी धड़कन सुनने लगी ….
पर यह क्या हुआ !!! धक-धक की जगह मुझे राधे-राधे सुनाई दे रहा था | मैं डर कर पीछे हट गई ,
मैं जोर से बोलने लगी
” मुझे राधे-राधे सुनाई दे रहा है….राधे-राधे …”
वो हँस दिया और बोला ” तुम पागल हो गई हो”

मैंने उससे कहा की फिर मैं दुबारा से सुनकर देखती हूंँ एक बार |
मैं सुनने जा ही रही थी कि वह बोला –
” मेरे करीब ना आओ तुम! माना कि मैं अच्छा दिखता हूं !! और यह बात ध्यान रखना मैं ब्रह्मचारी लड़का हूं कोई ऐसा वैसा नहीं हूँ | “
यह बोलकर वह हँसने लगा |

मुझे समझ में ही नहीं आया मैं क्या बोलूं , फिर मैंने गुस्से वाला मूहँ बना लिया |
मेरा मूहँ देखकर वह फिर से हंसने लगा और बोला –
“बुरा मत मानो मैं मजाक कर रहा हूं !! अच्छा अब बाहर चलते हैं नहीं तो यहाँ कोई आजाएगा | “
मैंने बिना कुछ सोचे हां कहा, पर मेरे कानो में अभी भी राधे-राधे की गूँज ही चल रही थी |
मैं उसके पीछे चल दी आवाज के बारे में सोचते-सोचते | हम लोग दूसरे रास्ते से मंदिर के बाहर पहुंचे जहाँ पर कोई भी नहीं था , मुझे रोक कर वह बोला ” मेरे पीछे-पीछे आओगी क्या अब भी “
मैं मुस्कुरा कर दूसरी ओर जाने लगी |
वह फिर पीछे से बोला ” तुमने मुझे बांकीबिहारी जी से तो  मिलवाया ही नहीं!!” 
यह सुनकर मैं जैसे ही पीछे मुड़ी वैसे ही मैंने देखा वहाँ कोई नहीं था ….कोई भी नहीं ….एक आदमी भी नहीं…. पर मुझे ज्ञात हो गया की…..
“उसे नहीं पर शायद मुझे  जरूर मिल गए थे बांकेबिहारी ||”


By HARSHITA JOSHI

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