ग्रामीण विकास की आवश्‍यकता और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के तरीके

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किसी भी देश की अर्थव्‍यव्‍स्‍था को तभी विकसित माना जा सकता है जब उस देश के भिन्‍न-भिन्‍न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक विकास के लाभ पहुँचे हों और इससे उनके अपने जीवन-स्‍तर में भी सुधार आया हों । इस दृष्टि से अंगर हम अपने भारत देश को देखें तो हम पाएंगे कि हमारे देश के लगभग 65% प्रतिशत से अधिक आबादी गाँवों में ही निवास करती है, इसलिए, हम गाँवों में विकास के सभी लाभों को पहुँचाकर और गाँव के लोगों के अपने जीवन स्‍तर को ऊपर उठाकर ही इस देश को सही अर्थों में विकसित राष्‍ट्र बना सकते हैं । गाँवों में विकास के सभी लाभों को पहुँचाने और गाँव के लोगों के अपने जीवन-स्‍तर को ऊपर उठाने के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि हमारी सरकार ग्रामीण विकास की आवश्‍यकता के महत्‍व को समझें ।

आज हमारा यह पूरा देश ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच बंट गया है और हम आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अपने बहुत से गाँवों में बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं कर पाएं हैं । इसके अलावा मानवीय विकास के लिए जरूरी स्‍कूल व अस्‍पताल जैसी सुविधाएं हमने बहुत सी गाँवों में उपलब्‍ध तो करा दी है किन्‍तु ये अधिक कारगर ढंग से अपना काम नहीं कर रही है, जिसकी वजह से गाँव के लोगों के अपने जीवन स्‍तर में कोई  सुधार नहीं हो पा रहा है । आज हमारे ग्रामीण जन कृषि व्‍यवसाय पर ही अत्‍यधिक निर्भर है और हमारी सरकार उन्‍हें कृषि के लिए जरूरी पानी व सिंचाई की सुविधा भी उपलब्‍ध नहीं करा पा रही है । इन्‍हीं सब कठिनाईयों के चलते आज लोग गाँव छोड़कर शहरों की ओर पलायन  कर रहे हैं जिससे शहरों में जनसंख्‍या का घनत्‍व बढ़ गया है और शहरों में मूलभूत सुविधाओं का संकट उत्‍पन्‍न हो गया है । इसलिए, आज देश को सही अर्थों में विकसित व समृद्ध बनाने के

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लिए यह बहुत ही जरूरी है कि हम न केवल ग्रामीण विकास की आवश्‍यकता के महत्‍व को समझें वरन् इसके सम्‍बन्‍ध में एक प्रभावी रणनीतिक कार्यक्रम तैयार कर, इसे अधिक कारगर रूप में पूरे देश में लागू करें ।

ग्रामीणविकासकीप्रभावीरणनीति

ग्रामीण विकास की रणनीति को तैयार करते समय हमें गाँव की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए, गाँव से जुड़े विभिन्‍न व्‍यवसायों जैसे कृषि व कृषितर व्‍यवसाय जैसे दुग्‍ध उत्‍पादन, मछली पालन आदि तथा लघु, कुटीर व हस्‍तकला उद्योगों के लिए देश में एक अनुकूल माहौल तैयार करना होगा । मेरे अपने विचार से जब हम ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े इन व्‍यवसायों के लिए देश में एक अनुंकूल माहौल तैयार करेंगे तो ये व्‍यवसाय हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक संख्‍या में फलेंगे-फूलेंगे । इससे हमारे ग्रामीण क्षेत्र जहाँ स्‍वयंमेव ही विकसित हो जाएंगें और वहीं इससे गाँव के लोगों के अपने जीवन-स्‍तर में भी सुधार आएगा । 

आज हमारे देश के 35% से अधिक आबादी सीधे तौर पर कृषि के साथ जुड़ी हुई हैं और कम पूँजी व मानसून पर अत्‍यधिक निर्भरता के कारण आज हमारे गाँव के लोगों के लिए कृषि का यह व्‍यवसाय अधिक लाभकारी नहीं रह गया है । इसके लिए हमारी सरकार को चाहिए कि वह विभिन्‍न उद्योगपतियों को वृहत स्‍तर पर सहकारिता के तर्ज पर गाँवों में कृषि व्‍यवसाय को करने के लिए अभिप्रेरित करें । यही नहीं सरकार को भी प्रायोगिेक तौर पर पहल करते हुए, पहले कुछ चुने हुए गाँव की सभी जमीनों को अपने कब्‍जे में लेकर इनमें वृहत स्‍तर पर वैज्ञानिक तौर पर उच्‍च तकनीकों का प्रयोग करते हुए कृषि व्‍यवसाय को करना चाहिए और उसे इन जमीनों के मालिकों व किसानों को इसमें अंशधारक की तरह जोड़़ते हुए, उन्‍हें इसी कृषि जमीन पर मासिक मजदूरी/वेतन पर नियुक्‍त करना चाहिए । इस तरह हमारी सरकार वृहत पूँजी के फलस्‍वरूप, उच्‍च तकनीकों का प्रयोग करते हुए, विपरीत मानसून की स्थितियों से अधिक कारगर ढंग से निपटते हुए, इस कृषि व्‍यवसाय को अधिक सफलता के साथ पूर्ण करेगी और इससे हमारे देश के प्रति हेक्‍टेयर कृषि उत्‍पादन में भी वृद्धि हो जाएगी । सरकार के इन प्रयासों के फलस्‍वरूप देश में कृषि व्‍यवसाय एक लाभकारी व्‍यवसाय के रूप में जहाँ बदल जाएगा, वहीं इससे देश के किसानों को मासिक वेतन/मजदूरी के रूप में निश्चित रकम मिलने के फलस्‍वरूप उनके अपने जीवन में खुशहाली आ जाएगी और इससे उनकी अपनी क्रय शक्ति  बढ़ जाएगी । 

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इसके फलस्‍वरूप गाँवों में भी शहरों की तरह पक्‍के आलीशान मकान जहाँ निर्मित होंगे वहीं सुख-सुविधा व ऐशो आराम के तमाम साधन जैसे फ्रिज, ए.सी., वाशिंग मशीन आदि की बिक्री गाँवों में बढ़ जाएगी । इस तरह हमारे गाँव कुछ ही दिनों में शहरों की तरह सभी प्रकार की सुविधाओं से लैस होकर, शहरों की तरह ही विकसित हो जाएंगे ।

वर्ष 1964 में देश के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्‍त्री व बाद में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व में और डाँ वर्गीज कुरियन के मार्गदर्शन में, सहकारिता के अंतर्गत गाँव के दुग्‍ध पालकों के दूधों को इकठ्ठा किया गया । फिर इन दूधों को पैकटों में बेचकर, ‘श्‍वेत क्रांति’ के नाम से इस दुग्‍ध उत्‍पादन को एक ‘वृहत व्‍यवसाय’ का स्‍वरूप प्रदान किया गया, इससे जहाँ गाँव के दुग्‍ध पालकों की आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक सुधार आया, वहीं इससे देश के कुल दुग्‍ध उत्‍पादन में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई और आज हम विश्‍व के दूसरे सबसे बड़े दुग्‍ध उत्‍पादक देश बन गए हैं । मेरे अपने विचार से कुछ इसी तरह के प्रयोग कृषि से जुड़ी अन्‍य सहायक गतिविधियों यथा मुर्गी पालन, मतस्‍य पालन के क्षेत्र में भी किया जाना चाहिए । हमें अपने मुर्गी पालकों व मछुआरों से मुर्गी (चिकन हेतु), अंडे व मछलियों को इकट्ठा कर, उसे पैकेटों में ब्राण्‍डेड कम्‍पनियों के नाम से बेचने का एक वृहत व्‍यवसाय शुरू करना चाहिए, इससे गाँव के मुर्गी पालकों व मछुआरों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा और देश में मतस्‍य उत्‍पादन व मुर्गी उत्‍पादन के क्षेत्र में भी बहुत अधिक वृद्धि होगी । 

आज देश के भिन्‍न-भिन्‍न शहरों में ऑटोमोबाइल, कम्‍प्‍यूटर, एयरकंडीशनर, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों को बनाने वाले बहुत सारे कारखाने कार्यरत हैं और इन कारखानों में इन उपकरणों के छोटे-छोटे कलपुर्जें अलग-अलग इकाईयों में निर्मित हो रहे हैं । मेरे अपने विचार से देश के गाँवों में लघु, कुटीर व हस्‍त-कला उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकार को चाहिए कि वह इन बड़े स्‍थापित उद्योगों से यह अनुरोध करें कि वह हर वर्ष अपने कारखानों के पास स्थित गाँव के कुछ युवकों के समूह को इन छोटे-छोटे कलपूर्जों को निर्मित करने के सम्‍बन्‍ध में प्रशिक्षित करें और बाद में सरकार को चाहिए कि वह सब्सिडी की सहायता से गाँव में ही इन कलपूर्जों को निर्मित करने का लघु उद्योग स्‍थापित कर, उसे इन युवकों को  दे दें । इससे देश के गाँवों में लघु, कुटीर व हस्‍त-कला उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और हमारे देश के कुल औद्योगिक उत्‍पादन में भी वृद्धि होगी । इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जो आय की असमानता है, उसे घटाने में भी हम कामयाब होंगे । यहीं नहीं इससे गाँवों में रोजगार के भी बहुत सारे अवसर उपलब्‍ध होंगे, जिससे काम की तलाश में गाँव के लोगों का शहरों की ओर पलायन पूर्णत: खत्‍म हो जाएगा और हमारे गाँव देश के महानगरों की तरह पूर्णत: विकसित व समृद्ध हो जाएंगे ।   (4 )

इस तरह जब हमारी सरकार गाँवों में चल रही विभिन्‍न व्‍यावसायिक गतिविधियों यथा कृषि, कृषि से जुडी सहायक गतिविधियां जैसे मतस्‍य पालन, मुर्गी पालन आदि और लघु, कुटीर  व हस्‍तकला उद्योगों पर उपरोक्‍त नीतियों का अनुसरण करेगी तो यह अधिक प्रभावकारी व असरकारक होगा । इससे गाँव के लोगों की अपनी आमदनी में जहाँ इजाफा होगा वहीं इससे हमारी सरकार को गाँवों से मिलने वाला राजस्‍व भी बढ़ जाएगा । गाँवों से मिले बढ़े हुए इस राजस्‍व की राशि को, गाँवों में ही विभिन्‍न बुनियादी सुविधाओं के विकास यथा पुल बनाने, सड़कें, पानी, बिजली, स्‍कूल, अस्‍पताल आदि के निर्माण में हमारी सरकार को खर्च कर देना चाहिए । इस तरह इन बुनियादी सुविधाओं के विकास से गाँवों में चल रही विभिन्‍न व्‍यावसायिक गतिविधियों को और बढ़ावा मिलेगा तथा इससे देश के कुल औद्योगिक उत्‍पादन में भी वृद्धि होगी । यही नहीं इससे देश का सकल घरेलू उत्‍पाद भी बढ़ जाएगा और देश की प्रति व्‍यक्ति आय में भी इजाफा होगा । इस तरह कुछ ही दिनों में हमारे गाँव सभी प्रकार की सुविधाओं से लैस होकर, अधिक समृद्ध व खुशहाल बन जाएंगे । 

उपसंहार :

संक्षेप में आज हमारे गाँव कम पूँजी, प्रशिक्षण, ठीक तरह की व्‍यावसायिक सोच आदि के अभाव में ही गरीबी और दरिद्रता में जीने को मजबूर हैं और अगर हमारी सरकार उपरोक्‍त नीतियों का अनुसरण करते हुए, गाँव के लोगों को उनके द्वारा किए जा रहे विभिन्‍न व्‍यावसायिक गतिविधियों में उन्‍हें सहयोग प्रदान करें तो इससे उनके द्वारा किए जा रहे ये व्‍यवसाय अधिक समृद्ध व विकसित होंगे और हमारे देश के कुल औद्योगिक उत्‍पादन में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्‍वरूप हमारे गाँव सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्‍त होकर, पूर्णत: विकसित, समृद्ध व खुशहाल हो जाएंगे । उम्‍मीद हैं हमारी सरकार ग्रामीण विकास की ऐसी ही कुछ ठोस नीतियों को निर्मित कर, उसे पूरे देश के गाँवों में लागू करेगी जिससे कुछ ही समय में हमारे देश के गाँव अधिक समृद्ध, विकासित व खुशहाल बन जाएंगे । 

लेखक परिचिति :श्रीनिवास कृष्‍णन,  अहमदाबाद – गुजरात

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