कोविद १९ के बाद ज़िन्दगी: एक आकलन

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सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक हमारे क्रियाकलाप एक सुनिश्चित निर्धारित संरचना के अंतर्गत चलते रहते हैं, जिसे आदत का नाम दिया गया है. ये सारे क्रियाकलाप मिलकर हमारे विभिन्न परिणामों को तय करते हैं. ये सभी आदतें अवचेतन मन के द्वारा नियंत्रित एवं गतिशील होती हैं. व्यक्ति के व्यवहार पर इनका प्रभाव ४५% से ९०% तक रहता है. इसी वज़ह से बड़े बुजुर्गों द्वारा सही व पवित्र आदतें अपनाने की सलाह दी जाती है, जिनसे किसी के लिए भी मन-मस्तिष्क की अवधारणा समझ आ सकती है. आज वास्तविक युद्ध कोविद १९ से है, जिसके लिए दूर रहकर ( सामाजिक दूरी) , मास्क पहनकर और हाथ धोकर एक जुटता के साथ सामना करना ही उचित है. अब हमारी ज़िम्मेदारी बन गई है कि समस्त कोरोना योद्धाओं की मेहनत, त्याग, तकलीफों, समस्याओं को समझें और उनके प्रयासों को सफल बनायें. फिर भी एक बात तो मानना ही पड़ेगी कि ये लम्हे, ये क्षण बरसों तक याद रहेंगे. यहाँ सब कुछ कोरोना के लिए न होकर, कोरोना के कारण उपजे जीवन जीने के नए अंदाज़ के बारे में अवश्य है.

अब समय आ गया है कि किनारे के करीब आ गये लगते हैं, जहाँ गहराई, लहरें और खाई है. इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो इस कालावधि को घर में नज़रबंदी मानकर कष्ट का अनुभव करते होंगे. उनने घर को एक धर्मशाला से अधिक न समझा होगा, जहाँ वे खाना-पीना, सोना और भोग-विलास के लिए आते होंगे. स्वामी रामतीर्थ ने कहा है – “ भागती फिरती थी दुनिया तब तलबगार थे हम! अब बेमतलब हो गये हम तो दुनिया मिलने को बेक़रार है!!” कई दार्शनिक यह भी मानते हैं कि कभी-कभी परमात्मा को हासिल करने के लिए पारिवारिक जम्पिंग बोर्ड से एक छलांग ही काफी रहती है. तभी शांति, आनंद, सहजता, सरलता- कोई भी नाम लेलें- वह परम शक्ति मिलेगी. धर्म अध्यात्म पर विश्वास करने वाले इस महामारी को नियति का खेल मानना चाहेंगे लेकिन मनुष्य तय कर डाले तो कुछ अप्रिय प्रसंग टाले जा सकते हैं. घर पर रहकर बहुत सी बातों, हादसों से बच पाये हैं अन्यथा तमाम धर्म गुरुओं, संत-महात्माओं, पंडित-मौलवियों के लिए यह सब एक खयाली पुलाव था जिसे कोरोना वायरस ने संभव करवा डाला.

हाल ही में हमारे प्रधान मंत्री जी ने कहा है- “अग्नि शेषं, ऋण शेषं, शत्रु शेषं, पुनः- पुनः प्रवर्धेत ( आग को जलता छोड़ना, पूरा ऋण न चुकाना और शत्रु को जीवित छोड़ देना हानिकारक है- वे फिर बढ़ जाते हैं. अतः अति आत्मविश्वास के कारण भूल से भी कोई गलती हो न- लॉक डाउन रहेगा, भले ही जीवन की गति को बनाये रखने के वास्ते चरण बद्ध ढील दी जा सकती है.” यह एक कड़वा किन्तु कठोर सत्य है की तालाबंदी अनंत काल तक नहीं रखी जा सकती. सरकार भी एक निश्चित समय तालाबंदी रख पायेगी जो धीरे-धीरे समापन की ओर बढ़ेगी, क्रमशः सख्ती भी कम होगी. सरकार ने जनमानस में इस महामारी की चेतना जगा दी है, उससे बचने के उपाय- सामाजिक दूरी, सेनेटाईजेशन , हाथ धोना वगैरह समझा दिया है. जो समझदार हैं, वे अपने दैनंदिन कार्य-कलापों के तरीके समझकर अपना लें क्योंकि अब शायद सरकार हर पल निगरानी न कर पायेगी. लॉक डाउन हटते ही सबको अपने काम धंधों में लगना होगा. 

तालाबंदी के बाद की ज़िन्दगी, उसके पूर्व के जीवन से निश्चित रूप से अलग होगी, कम से कम तब तक अवश्य ही जब तक कि कोविद१९ की वैक्सीन बनकर बाज़ार में नहीं आ जाती. अभी इसकी भविष्यवाणी करना असंभव है. हालाँकि यह तो निश्चित है, बाद में संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा ज़रूर होगा. दस्ताने, मास्क पहनना ड्रेस का एक भाग बन जायेंगे. हाथ मिलाने की जगह नमस्कार करना श्रेयस्कर होगा.  हमने जाहिल, गंवारों, नासमझ लोगों का व्यव्हार देखा,परखा है. तदनुरूप ही अपनी सुरक्षा व्यवस्था आवश्यक होगी जो खुद पर निर्भर रहेगी- यानि बाद की लड़ाई वैयक्तित आधार पर होगी तथा मुश्किल हो सकती है. सर्वप्रथम व्यापारी वर्ग को लें, जो बाज़ार में सामान को सजाने वाले हैं. वह सामान न जाने कितने हाथों से गुज़र कर ग्राहक को प्राप्त होगा- निर्माता एवं उनका स्टाफ, प्रदायकर्ता तथा उसके कर्मचारी, ट्रांसपोर्टर, दुकानदार- उनका स्टाफ, तत्समय अन्य ग्राहक व अन्य व्यक्ति वगैरह. फिर बारी आती है इन सबके बीच रूपये पैसे का लेन- देन की. कहने का तात्पर्य यह कि सामान एक बहुत बड़ी श्रृंखला से गुजरेगा जिसमे संक्रमण होने की बहुत सम्भावना है. अतः उसका सर्वोपरि हल आत्म बचाव ही है.

विंस्टन चर्चिल ने कहा था- “ एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति अदृश्य को देखने में सक्षम होता है, अमूर्त को महसूस करता है और असंभव को पा लेता है. यही तो नज़रिए का कमाल, चमत्कार है. सकारात्मकता एवं स्वेच्छाचारिता से विश्वास और निष्ठा के साथ सोचिये- तब जीवन और भी सुरक्षित रहेगा. गतिविधियों से परिपूर्ण, उपलब्धियों और अनुभवों से भरा  रहेगा. इसमें जितना गहरा उतरेंगे, उतना ही गूढार्थ समझ पाएंगे.” इसी आधार पर यदि विचार किया जाये तो पाएंगे कि इस तालाबंदी के अनेकानेक फायदे हैं. वक़्त की तासीर होती है वो एक सा नहीं रहता, निरंतर परिवर्तनशील है.

दुनिया में हत्या, बलात्कार, चोरी-डाका, अपहरण, लड़ाई-झगड़े आदि अपराध तालाबंदी की कालावधि में न के बराबर हैं, जिसे भारत के प्रधान न्यायाधीश ने भी स्वीकार किया है. रेल-सड़क दुर्घटना के कारण होनेवाली मौतों की संख्या नगण्य सी हो गई है.

घर पर रहेंगे तो, कोरोना वायरस का प्रसारण रोकने के लिए, उसकी लम्बी कड़ी को तोड़ने के लिए, किन्तु घर में रहना परिजनों की आपसी समझ को विस्तार दे रहा है. घर किसे कहते हैं? घर की अहमियत, परिजन-परिवार के मायने- इन सबका अहसास और अनुभूति हर इन्सान को पूर्ण तालाबंदी के कारण ही संभव हो पाई  है. पुरुष व्यंजन बना रहे हैं, महिलाएं ऑन लाइन भुगतान कर रही हैं. बच्चे घर की साफ-सफाई में मददगार हैं. ये वो सारे काम हैं जिनको करने-करवाने में वाद-विवाद रूपी युद्ध होते थे. पति गृहकार्य में सहायक हों, महिलाएं स्वतंत्र बने तथा बच्चे घर की जिम्मेदारियां समझें, इस नए दौर में एकसाथ, एकबारगी सारे विवाद ख़त्म हो गये. यह नवीन समझदारी सिर्फ अभी के लिए नहीं है कि दौर बदलने के साथ महफ़िलों, किटी पार्टियों के किस्से बनें, बल्कि एक दूसरे का सहयोग करने के भरपूर भावनात्मक जुडाव के साथ आया है.      

नवीन पीढ़ी को घर पर बने रहने की आदत सी हो गई है. ये वही पीढ़ी है जो घर पर कम से कम रहना चाहती थी, ताकि एकाकी, एकरूपता, कुंठा, अवसाद की शिकार न हो जाये. इन दिनों सभी घर से काम ( वर्क फ्रॉम होम) कर रहें हैं. एक उल्लेखनीय किस्सा ये भी मालूम हुआ कि पति के दूसरे शहर स्थानांतरण हो जाने पर तालाबंदी के पूर्व कुकिंग क्लासेज द्वारा बेहतर खाना बनाना सीखकर पति की मजबूर कर दिया कि वह तालाबंदी के दौरान घर का खाना खाए, न कि ऑन लाइन बाहर से खाना मंगाए. यह लॉक डाउन का सामाजिक लाभ है. तकनीक और विज्ञान की उन्नति के कारण वर्क फ्रॉम होम की एक नई कार्य-संस्कृति का आविर्भाव हुआ. सरकारी आदेश है कि किसी को आप न नौकरी से निकल सकते हैं, अवकाश का पूरा भुगतान भी कर्मचारी को करना होगा. परिणामस्वरूप विभिन्न संस्थानों ने काम करवाने नयी विधि निकली – घर पर रहकर वो सभी कार्य करो जो कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल के माध्यम से करना संभव है. विडिओ कालिंग के जरिये सामाजिक दूरियों का पालन करते हुए निर्देश, कार्य-भार दिया जाने लगा. हालाँकि इस कारण ऐसा समय न आ जाये कि कर्मचारी को दफ्तर जाना भार लगने लगे. मालिक, नियोक्ता के दृष्टिकोण से देखें तो ऑफिस स्पेस छोटे हो जायेंगे, यानि किराया, बिजली का खर्च कम होगा, स्थापना व्यय कम होगा. सामाजिक नज़रिए से देखें तो सड़कों पर यातायात का भार कम यानि प्रदुषण भी कम.

पारिवारिक सौहार्द्र निश्चित रूप से बढेगा. एकल तथा संयुक्त परिवार के प्रति नज़रिए में फर्क आएगा. अभी तक होता यही है कि कमाऊ पूत घर को धर्मशाला समझकर आते और चले जाते हैं. पत्नी, बच्चों के साथ सातों दिन चौबीसों घंटे निरंतर ४०-५० दिन रहने से एक विशेष किस्म की प्रतिबद्धता की अनुभूति हुई. माता-पिता, बच्चों, नाते-रिश्तेदारों के साथ बैठकर घरेलु खेल ताश, लूडो, शतरंज, कैरम आदि खेलने से आपसदारी में आशातीत वृद्धि हो रही है. 

बाज़ार करने की कार्य-प्रणाली एवं दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव हो रहा है. सामान लाने वाला बाज़ार तक के सफ़र के लिए मास्क, दस्ताने पहनेगा. तमाम व्यापारी स्टाफ मास्क पहनकर हाथ सेनेटाइज करके सामान देगा.  रूपये-पैसे के लेन-देन में, घर आया सामान, थैला, घरेलु नौकरों पर पैनी नज़र रखकर सेनेटाइज करना होगा. सारी सावधानियां अपनाकर ही जीवन नैय्या चलाना होगी.

इस महामारी ने आभासी कक्षाएं (वर्चुअल क्लासेज) के ज़रिये ऑन लाइन पढाई आरंभ करवा दी है. पहले स्कूल/कोलेजेस में मोबाइल फोन को हिकारत की नज़र से देखा जाता था. टीवी देखने पर नियंत्रण था. अब वे ही पढाई के स्त्रोत बन बैठे हैं. चलते – फिरते वाय-फ़ाय स्टेशन भी अस्तित्व में आ सकते हैं. हालाँकि एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग ६७% से ७५% ने कक्षा में बैठकर आमने-सामने की जाने वाली पढाई को बेहतर माना है. संभवतः इस प्रकार की ऑन लाइन पढाई को कम उम्र के बच्चों के लिए उपयुक्त न माना जाये, लेकिन सामाजिक दूरियों के इस माहौल में यह चलन बढ़ सकता है. यह नौकरीपेशा, गृहणियों के लिए अवश्य उपयोगी रहेगा. तथापि एक जटिल एवं पेचीदा तकनीकी ढांचे की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता.

एक बात परेशानी का बायस हो सकती है कि छोटे बच्चों के अभिभावकों ने बड़ी कठिनाई के बाद अपने लाडलों को स्कूल भेजा होगा. यदि ऑन लाइन आभासी कक्षाओं में वे पढेंगे तो उनको स्कूल/कोलेज भेजना एक समस्या न खड़ी हो जाये. बच्चे जिन बसों,वाहनों से स्कूल/कोलेज जायेंगे, उनका सैनेटाइजेशन, साथ बैठे बच्चों में संक्रमण न होना, शिक्षक, अन्य स्टाफ, सामान्य हायजिन वगैरह पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक होगा.

धरती पर आवागमन कम होने से उस पर पड़ने वाला भार पक्की तौर पर कम हुआ है. बोरिंग, उत्खनन बंद होने से पृथ्वी का पेट चिरना बंद है. भूकंप की संख्या एवं उनकी तीव्रता भी कम हुई है. ये सभी कुदरत की नेमते बनकर ही इन्सान को हासिल हो पाया है.    

सन २००८ में चीन में मंदी के कारण कल-कारखाने बंद हुए थे , तब कुछ वायु प्रदुषण में कमी आई थी. आजकल तालाबंदी के कारण स्वच्छ पर्यावरण, हवा तथा ध्वनि प्रदूषण का निर्धारित मापदंडों में होना एक उपलब्धि है. रात में साफ वातावरण में सितारों की झिलमिलाहट का स्पष्ट दर्शन आज के बच्चों, किशोरों के लिए एक नया ही अनुभव है. इसको कम नहीं आंका जाना चाहिए. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने बताया कि नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा अन्य ज़हरीली गैसेस यातायात में कमी, कारखानों की बंदी की वज़ह से अत्यंत आश्चर्यजनक रूप से कम हो गई हैं. ओजोन, सल्फर-डाई- ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, मीथेन आदि गैसों की मात्रा में भारी कमी पाई गई है. सड़कों के किनारे लगे पौधे फल-फूल रहे हैं. ट्रैफिक का दमघोंटू वातावरण, शोरगुल उनको फूलने ही नहीं देता था. प्रकृति भी तो यही कह रही है. वर्तमान तालाबंदी को प्रकृति का बदला माना जाना चाहिए. देश की नदियाँ खुद-ब-खुद साफ हो गईं. वन्य प्राणी आबादी वाली जगहों पर घूम रहे हैं. प्रकृति अपना कार्य कर चुकी है- अब हमारी बारी है. पैसे का घमंड, धर्म-सम्प्रदाय की बुराई छोड़कर इन्सान होने का फ़र्ज़ अदा करें ताकि नफरत ख़त्म हो और कोरोना वायरस का नामो-निशान समाप्त हो.

यदि हम इस महामारी को सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो पाएंगे कि तालाबंदी कुछ लोगों के मन में निराशा, हताशा भरकर मानसिक रोग/संकट का कारण बन सकती है. विशेषकर कश्मीरियों में अवसाद के लक्षण देखने में आते हैं क्योंकि कोरोना वायरस के पूर्व भी उनका जीवन अस्त-व्यस्त था. अब तालाबंदी ने उनकी कठिनाइयों में इजाफा ही किया है. वहां पर अवसाद, बेचैनी, मानसिक बीमारी, सनकपन के मामलों में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है. आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि देखने में आ रही है. साथ-साथ घरेलु हिंसा की दर भी बढ़ी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम पाएंगे कि मानसिक स्वास्थ्य वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से सुधारा जा सकता है. आभासी पर्यटन, विडियो गेम्स, से भी अवसाद, निराशा दूर हो रही है. विश्व स्वास्थ संगठन (डब्लू एच ओ) ने इसे अपनाने की अनुशंसा भी की है. एक इटालियन रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि वर्चुअल रियलिटी, विडियो गेम्स तनाव और चिंता कम करने में सहायक हैं. यु ट्यूब एवं गूगल के कला और संस्कृति मंच की मदद से कला दीर्घाएं, संग्रहालय, ऐतिहासिक इमारतों को आभासी पर्यटन के माध्यम से घुमा रहे हैं, वह भी घर बैठे. इजराइल की एक कंपनी एक्स आर हेल्थ ने एक विशेष हेल्थ एप बनाई है जो विशेषज्ञों को घर बैठे जोड़कर चिंता, अवसाद जैसी समस्याओं से निबटने के साथ व्यायाम करने में भी मददगार है. तथापि पुरानी  मान्यताओं के अनुसार समय ही इसका सर्वश्रेष्ठ मलहम है. जब वो समय नहीं रहा तो यह भी नहीं रहेगा, क्योंकि समय सदा परिवर्तनशील है.     

अंत में यही कहना उचित होगा कि घर में बंद रहकर इस तालाबंदी को एक अवसर मानिये जो फिर कभी मिले न मिले. अपने भविष्य की योजनायें बनाकर उनके क्रियान्वयन की योजना भी लगे हाथों बना डालें. बच्चों के मसलों पर परिवार जनों के साथ मिल बैठकर चिंतन-मनन कर डालिए. घर-परिवार की छोटी – छोटी बातें, मामले जिन्हें समय की आपाधापी में नज़र अंदाज़ कर दिया हो, उन पर सपरिवार  गौर फरमाने का इससे बेहतर मौका फिर न  मिल पायेगा. हम एक ऐसी नवीन दुनिया बनाने का सद्प्रयास करें जिसमें अपराध एकदम न के बराबर, आबोहवा- वातावरण अपेक्षाकृत साफ-सुथरा हो. परस्पर समन्वय, सद्भाव और सामंजस्य न केवल बना रहे वरन बढे. एक दूसरे के साथ इंसानियत का रिश्ता बनाकर मदद का जज्बा भी बढ़ाना होगा. तकनीक के मामले में उन्नति के लिए आभासी कक्षाएं आने वाला कल निर्माण कर सकेंगी. हमारा ये प्रयास हो कि आने वाले समय में कोई वायरस या कोई जैव रासायनिक हथियार, किसी साजिश के तहत इस्तेमाल करने से पहले सौ दफा सोचे. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

१९५६ में डोरिस डे ने अल्फ्रेड हिचकोक की एक फिल्म के लिए –“के सेरा-सेरा” गीत गया था जिसका संगीत जय लिविर स्टोन ने तैयार किया था और लिखने वाले थे रे इवान्स. इतने पुराने उस गीत के कुछ शब्द इस महामारी के बीच मानव को सांत्वना दे सकते हैं जिसका सपने में भी किसी को ख्याल न आया होगा. वे शब्द हैं- “जो भी होगा, होगा, चिंता किये कुछ हासिल न होगा.” यदि मानव मात्र जीवन भर एक छात्र बना रहे तो प्रत्येक स्थान, परिस्थिति, हादसा, घटना, बीमारी कोई न कोई सबक अवश्य सिखाकर जाती हैं. ज़रूरत है उस सबक को सीखकर भविष्य में वह गलती न दोहराने का.

हर्ष वर्धन व्यास, गुप्तेश्वर ,जबलपुर (म.प्र.)

                     मोबाइल नं. ९४२५८०४७२८                 

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  1. ‘हमारे प्रधान मंत्री जी ने कहा है- “अग्नि शेषं, ऋण शेषं, शत्रु शेषं, पुनः- पुनः प्रवर्धेत ( आग को जलता छोड़ना, पूरा ऋण न चुकाना और शत्रु को जीवित छोड़ देना हानिकारक है- वे फिर बढ़ जाते हैं. अतः अति आत्मविश्वास के कारण भूल से भी कोई गलती हो न’
    Above is very impacting lines from the write up, though entire write up is very much worth reading and giving a thought.
    Best wishes.

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