भारत और पाकिस्तान लोकतंत्र शासन में तुलना

1
1725
hindi.siasat.com
Rate this post

भारतमेंलोकतंत्र

1947 में ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त होने के बाद भारत में लोकतंत्र का गठन किया गया था। इससे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का जन्म हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभावी नेतृत्व के कारण ही भारत के लोगों को वोट देने और उनकी सरकार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त हुआ।

           इस समय भारत में सात राष्ट्रीय पार्टियाँ हैं जो इस प्रकार हैं – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (एनसीपी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्क्सिस्ट (सीपीआई- एम), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा)। इन के अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियां राज्य विधानसभा चुनावों के लिए लड़ती हैं। भारत में संसद और राज्य विधानसभाओं का चुनाव हर 5 सालों में होता है।

भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांत

भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांत इस प्रकार हैं:

संप्रभु

संप्रभु का मतलब है स्वतंत्र – किसी भी विदेशी शक्ति के हस्तक्षेप या नियंत्रण से मुक्त। देश को चलने वाली सरकार नागरिकों द्वारा एक निर्वाचित सरकार है। भारतीय नागरिकों की संसद, स्थानीय निकायों और राज्य विधानमंडल के लिए किए गए चुनावों द्वारा अपने नेताओं का चुनाव करने की शक्ति है।

समाजवादी

समाजवादी का अर्थ है देश के सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता। लोकतांत्रिक समाजवाद का अर्थ है विकासवादी, लोकतांत्रिक और अहिंसक साधनों के माध्यम से समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त करना। धन की एकाग्रता कम करने तथा आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

धर्म निरपेक्षता

इसका अर्थ है कि धर्म का चयन करने का अधिकार और स्वतंत्रता। भारत में किसी को भी किसी भी धर्म का अभ्यास करने या उन सभी को अस्वीकार करने का अधिकार है। भारत सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है और उनके पास कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। भारत का लोकतंत्र किसी भी धर्म को अपमान या बढ़ावा नहीं देता है।

लोकतांत्रिक

इसका मतलब है कि देश की सरकार अपने नागरिकों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित हुई है। देश के लोगों को सभी स्तरों (संघ, राज्य और स्थानीय) पर अपनी सरकार का चुनाव करने का अधिकार है। लोगों के वयस्क मताधिकार को ‘एक आदमी एक वोट’ के रूप में जाना जाता है। मतदान का अधिकार किसी भी भेदभाव के बिना रंग, जाति, पंथ, धर्म, लिंग या शिक्षा के आधार पर दिया जाता है। न सिर्फ राजनीतिक बल्कि भारत के लोग सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र का भी आनंद लेते हैं।

गणतंत्र

राज्य का मुखिया आनुवंशिकता राजा या रानी नहीं बल्कि एक निर्वाचित व्यक्ति है। राज्य के औपचारिक प्रमुख अर्थात् भारत के राष्ट्रपति, पांच साल की अवधि के लिए चुनावी कॉलेज (लोकसभा तथा राज्यसभा) द्वारा चुने जाते हैं जबकि कार्यकारी शक्तियां प्रधान मंत्री में निहित होती हैं।

पांच साल पहले पाकिस्तान का लोकतंत्र ग्लोबल रैंकिंग में 108 से फिसलकर 112 वें स्थान पर आ गया l यह गिरावट बताती है कि केवल चुनाव कराना लोकतंत्र नहीं है l पाकिस्तान का लोकतंत्र अभी तक फौजी अफसरों और कठमुल्लों से आजाद नहीं हो पाया है l

 पाकिस्तान में लोकतंत्र बनाम फौजी शासन का चुनाव

मीडिया पर हमले काफी खुल कर हो रहे हैं l बिना वर्दी के पाकिस्तानी फौज ने समूचे देश पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है और व ह आगामी चुनाव का संचालन भी अपने हाथ में रखने मैं सफल हो गया है .यदि पाकिस्तान की आवाम ने 25 जुलाई को फौज विरोधी शक्तियो को वोट नही दिया और ऐसे पाटियों को वोट दिया जिन्हें फौज का समर्थन प्राप्त है तो पाकिस्तान एक बार फिर अप्रत्यक्ष फौजी तानाशाही में चला जायगाl

          यद्यपि यह पाकिस्तान का तीसरा चुनाव है जो निर्धारित समय पर हो रहा है और इससे पहले की दोनों संसदो ने अपना कार्यकाल पूर किया था, इसलिए यह माना जा सकता है कि अब चुनाव कराना हर सत्ता के लिये आवश्यक हो गया है और बिना इस प्रक्रिया के उसे जनता से मान्यता नही मिलेगी l इसलिये अब सीधे फौजी शासन का समय गुज़र चुका है अब फौज को भी शासन करने के लिये नागरिक शासन का कवच पहनना आवश्यक हो गया है l फौज ने इसे प्राप्त करने की समुचित तैय्यारी कर रखी है और य्ह मुशररफ के( 2008) हटाये जाने के साथ ही शुरु कर दी गई थी और नवाज़ शरीफ के कार्यकाल में इसने नवाज़ के विरुद्ध राज नेताओं को एकत्रित करना शुरु कर दिया था l

फौज का राजनीतिक मोर्चा

सब से पहले इस के आशीर्वाद से इमरान खान और कनाडॅ स्थित तहीरुल कादरी ने कराची से इस्लामबाद तक एक मोर्चा निकाला जिसे लौंग मार्च का नाम दिया गया था l इस ने कई दिनों तक राजधानी इस्लामाबाद मैं आधिकतम सुरक्षा के क्षेत्र में घुस कर धरना दिया था l फौज ने उन्हें सुरक्षा के अलावा और कई सुविधाएं प्रदान की थी और जब उन्हें वहां से हटाने के आदेश दिये गये तो फौज ने उसे लागू करने से इंकार कर दिया. बाद में उन्हें प्रोत्सहित कर के ही हटाया जा सका .इस प्रकार फौज ने यह दिखा दिया कि बिना उस के पाकिस्तान में राज करना सम्भव नही है l फौज ने एक ओर अपना राजनैतिक मोर्चा बना लिया था और दूसरी ओर यह साफ कर दिया था कि उसने राजनीति से सन्यास नही लिया है बल्कि वह हमेशा की तरह एक सक्रिय हिस्सेदार है l नवाज़ शरीफ को भी साफ कर दिया कि या तो वह फौज के साथ तालमेल बना कर चले अथवा संघर्ष के लिये तैय्यार रहे l

             इसी प्रकार जब डॉन अखबार ने य्ह रह्स्योद्घाटन किया कि नागरिक और फौजी अधिकारियों की बैठक में फौजी अधिकारियों को पाकिस्तान की मौजूदा दशा के लिये जिम्मेवार माना जिससे दोनो पक्षों में तेज़ बहस हुई l लेकिन जब यह खबर अखबारो में छप गयी तो फौजियो ने मुहिम छेड़ दी और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बताया औरं अंत में एक अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ा l

लोकतंत्र पर ग्लोबल रैंकिंग में छुपा है पाकिस्तान का आतंकी कैरेक्टर

पिछले 5 साल में पाकिस्तान में लोकतंत्र और कमजोर हुआ है और जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों में 177 फीसदी की तेजी आई है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले 5 साल में पाकिस्तान के डेमोक्रेसी इंडेक्स में दस फीसदी की गिरावट हुई है. दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान में भले ही चुनाव हुआ और इमरान खान प्रधानमंत्री बने लेकिन इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) की डेमोक्रेसी इंडेक्स बताती है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र पहले से ज्यादा कमजोर हुआ है l

 हमने पिछले पांच साल के पाकिस्तान के डेमोक्रेसी इंडेक्स (किसी भी देश में लोकतंत्र की स्थिति) का मिलान सालाना आतंकी घटनाओं से किया और पाया कि जब-जब पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर हुआ है कश्मीर में आतंकी वारदात बढ़े हैं l

           कमजोर पड़ते लोकतंत्र और आतंक के रिश्ते को समझने के लिए हमने 2014 से लेकर 2018 तक के डेमोक्रेसी इंडेक्स की तुलना की. डेमोक्रेसी इंडेक्स एक सूचकांक है जो भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के डेढ़ सौ देशों में लोकतंत्र की स्थिति को बताता है. अलग-अलग पैमाने के हिसाब से हर देश को एक से लेकर दस तक के बीच नंबर दिया जाता है. कम नंबर वाला खराब और अधिक नंबर पाने वाला बेहतर लोकतंत्र माना जाता है l

भारत लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर विकास की बुलदियों की ओर, मगरपाक……….

 पाकिस्तान का कठपुतली लोकतांत्रिक शासन अथवा सैनिक तानाशाह शासन पाकिस्तान के तथाकथित विकास की लाख कहानियां गढ़ें मगर पाकिस्तान के लोग भ्रमित नहीं हो रहे हैं। इस सच्चाई को नि:संकोच स्वीकार कर रहे हैं कि जहां भारत अपने यहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर विकास की बुलंदियों की ओर अग्रसर है वहीं पाकिस्तान में सेना और राजनेताओं के बीच आज भी सत्ता की छीना-झपटी चल रही है।

       इन पाकिस्तानियों ने अंग्रेजी ‘दैनिक डॉन’ ने संपादक के नाम पत्र में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा है कि पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद से ही सेना की भूमिका धोखेबाजी और सरकार के आदेश की अवहेलना की रही है। भारत-पाक के बीच 1965 की जंग में पाकिस्तान की शर्मनाक हार सैनिक शासक अयूब खान और याहिया खान की असफलताओं की कहानी है।  पाकिस्तान का यही दुर्भाग्य है कि सेना के बार-बार के हस्ताक्षेप से पाकिस्तान में न तो लोकतंत्र मजबूत हो पाया है और न पड़ोसी देशों विशेषकर भारत और अफगानिस्तान से संबंध सुखद हो पाए हैं।पूर्वी पाकिस्तान जो आज बंगलादेश के रूप में विश्व मानचित्र में सिर उठाए खड़ा है, में भी आज लोकतंत्र की जड़ें मजबूत से मजबूत होती जा रही है और उसकी तुलना में भी पाकिस्तान आज दूर-दूर तक पिछड़ा हुआ है। 

निष्कर्ष

भारत के लोकतंत्र को दुनिया भर से प्रशंसा मिली है। देश के हर नागरिक को वोट देने का अधिकार उनके जाति, रंग, पंथ, धर्म, लिंग या शिक्षा के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना दिया गया है। देश की विशाल सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता अपने लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। लोगों के बीच यह मतभेद गंभीर चिंता का कारण है। भारत में लोकतंत्र के सुचारु कार्य को सुनिश्चित करने के लिए इन विभाजनकारी प्रवृत्तियों को रोकने की आवश्यकता है।

Author Bio: Priti Verma, 20 years old students from U.P, India. She is a participant of International Essay Competition, April, 2019.

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here