Rate this post

अभिरूचि प्रत्येक प्राणी की समस्त गतिविधियों में सबसे पसंदीदा गतिविधि मानी जाती है। अभिरूचि एक ऐसी गतिविधि है जो व्यक्ति को उसके खाली समय में आनंद तथा प्रसन्नता का अनुभव कराती है। रोजमर्रा की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी से जब हमें फुरसत मिलती है तब हम वह कार्य करना अधिक पसंद करते हैं जो हमारा मनोरंजन कर सके तथा हमें एक नई ऊर्जा प्रदान कर सके।
अभिरुचि किसी भी प्रकार की हो सकती है। कुछ अभिरूचियाँ ऐसी होती हैं जो हमें सिर्फ वर्तमान समय में ही आनन्द प्रदान करतीं हैं परन्तु कुछ ऐसी होती हैं जो न केवल वर्तमान में सुख प्रदान करतीं हैं बल्कि हमारे भविष्य पर भी उनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसी ही कुछ अभिरूचियों में से एक है ‘लेखन’।
लेखन एक ऐसी अभिरुचि है जो हमारे मन के हर प्रकार के विचारों को व्यक्त करने में सहायता प्रदान करती है। आधुनिक युग का मानव अपने अतीत, वर्तमान तथा भविष्य से जुड़ी चिन्ताओं के जाल में फँसा रहता है, इस कारण उसका मन अनेक प्रकार के विचारों से तृप्त हो जाता है, फिर वह किसी ऐसी चीज की तलाश करता है जिससे वह अपने मन के इस भार को हल्का कर सके। ऐसी स्थिति में लेखन एक लाभदायक अभिरुचि सिध्द हो सकती है। इसके अतिरिक्त भविष्य में यह आजीविका का उत्तम स्रोत भी बन सकती है।
अगर लेखन के अर्थ पर प्रकाश डाला जाए तो लेखन कल्पना, वास्तविकता आदि विचारधाराओं एवं वर्णमाला,विराम-चिन्ह जैसे प्रतीकों से सजा एक अति सुन्दर संसार है तथा पठन व वार्तालाप जैसे भाषा-कौशलों से अधिक ज्ञानवर्धक है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि-
“पठन किसी को सम्पूर्ण आदमी बनाता है, वार्तालाप उसे एक तैयार आदमी बनाता है लेकिन लेखन उसे एक अति शुद्ध आदमी बनाता है।“
लेखन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य बिना कुछ कहे ही अपने संवेगों को व्यक्त कर सकता है। जिन संवेगों को मनुष्य अपने मुख से व्यक्त नहीं कर पाता उन्हें वह अपने लेख के द्वारा व्यक्त कर सकता है। सामान्य शब्दों में, अपने मन की उथल-पुथल को शब्दों का रूप देकर श्वेत पन्नों पर उतारना ही लेखन है। लेखन मानव संचार का एक ऐसा माध्यम है जिसमें लिखित तौर पर संचार किया जाता है अथवा बोले जाने वाले शब्दों को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया ही लेखन कहलाती है।
अगर लेखन के जन्म पर प्रकाश डाला जाए तो ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि मानव-जाति द्वारा भाषा को बोलना तो लगभग दस लाख वर्ष पहले प्रारम्भ हो गया था परन्तु भाषा को लिखने की प्रक्रिया को लगभग पाँच हजार वर्ष पहले प्रारम्भ किया गया था। इस प्रकार लिखित संचार का प्रारम्भ मौखिक संचार के अपेक्षाकृत बाद में हुआ।
लेखन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के ‘लिख’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘लिखना’। लिखना भाव अभिव्यक्ति का एक साधन है। मनुष्य द्वारा लिखने का कोई भी उद्देश्य हो सकता है। वह चाहे तो किसी सूचना, विचार या स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए भी लिख सकता है।
संचार की दृष्टि से देखा जाए तो आज के युग में मौखिक संचार की अपेक्षा लिखित संचार का अधिक प्रचलन है। वाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर, टेलीग्राम, ट्विटर आदि ऐसी कितनी ही एप्लीकेशन हैं जिनके द्वारा व्यक्ति उन लोगों से भी संचार कर सकता है जो उसके सम्मुख उपस्थित नहीं हैं। इस प्रकार हर मनुष्य अपने आप में एक लेखक हो सकता है। परन्तु वास्तव में एक लेखक वह होता है जो अपने लेख से अपने पाठकों का मनोरंजन तथा ज्ञानवर्धन कर सके।
कहते हैं कि, “जिनकी जुबान नहीं बोलती उनकी कलम बोलती है।” परन्तु देखा जाए तो जिनकी कलम बोलती है अनकी जुबान को बोलने की आवश्यकता ही कहाँ पड़ती है। जिस प्रकार एक योद्धा का हथियार उसकी तलवार होती है उसी प्रकार एक लेखक का हथियार होती है उसकी कलम। एक लेखक अपनी कलम से समस्त संसार को बदलने की शक्ति रखता है।
कितने ही महान लेखक रहे हैं हमारे राष्ट्र में जिन्होंने अपने लेखों से एक नया इतिहास रचा है। आज भी उनके लेखों की वजह से उन्हें याद किया जाता है। हमारे धर्म-ग्रन्थ, वेद-पुराण आदि से हम प्रसिद्ध लेखकों की वजह से ही तो परिचित हो पाए हैं।
अगर ‘आदिकवि’ के रूप में प्रसिध्द महर्षि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ जैसे अनुपम महाकाव्य की रचना न की होती तो कौन अवगत हो पाता त्याग, तप और बलिदान की महिमा से या वेदव्यास जी ने ‘महाभारत’ जैसे महान ग्रन्थ की रचना न की होती तो कौन जान पाता धर्म व अधर्म के भेद को? इसी प्रकार के अनेक ग्रन्थ आज संसार में ज्ञान का एक स्रोत बन चुके हैं। ऐसे ही अनेक लेखक रहे हैं जिनके लेखों तथा लेखन शैली की वजह से पाठकों द्वारा उन्हें याद किया जाता है।
आज भी मुंशी प्रेमचन्द को उनकी रोचक कहानियों, उनके उपन्यासों में ग्रामीण किसान वर्ग की समस्याओं के वर्णन तथा उनमें उपयोग की गई सरल भाषा की वजह से जाना जाता है।
आधुनिक युग की मीरा’ के नाम से प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा को उनकी कविताओं में वेदना और विद्रोह की वजह से जाना जाता है।
जयशंकर प्रसाद को उनकी रचनाओं में खड़ी बोली तथा संस्कृतनिष्ठ भाषा की वजह से याद किया जाता है।
इसी प्रकार प्रत्येक लेखक का उसकी लेखन शैली की वजह से स्मरण किया जाता है। परन्तु इन सभी लेखकों की प्रसिध्दि के पीछे संघर्ष की एक कहानी छिपी होती है। कठिन परिश्रम तथा संयम रखने के बाद ही इस शिखर पर पहुँचा जा सकता है। लेखन का क्षेत्र जितना सरल लगता है वास्तव में उतना है नहीं। इसकी राह थोड़ी पथरीली होती है तथा अनेक उतार-चढ़ाव पार करने के बाद ही एक अच्छा लेखक निखर के आ पाता है। इसके लिए सर्वप्रथम कुछ महत्वपूर्ण गुणों का होना अति आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं :

  • लेखन के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए सर्वप्रथम प्रसिध्द लेखकों के लेखों का अधिक से अधिक पठन करना चाहिए, जिससे कि एक अच्छा लेख लिखने का सुझाव आ सके।
  • एक उत्तम लेखक बनने के लिए भाषा पर पकड़ होनी अत्यन्त आवश्यक है। जिस भाषा में भी लिखना चाहते हैं उस भाषा का उचित ज्ञान होना चाहिए ताकि लिखते समय व्याकरण सम्बन्धी कोई त्रुटि ना हो पाए।
  • उचित व्याकरण के साथ-साथ शब्दों का चयन भी ठीक प्रकार से करना आवश्यक है। आम बोल-चाल की भाषा से थोड़ा परहेज कर ऐसे शब्द चुनने चाहिए जो पाठकों को पढ़ने में रोचक लगें।
  • किसी भी प्रकार का लेख लिखने से पहले उस लेख की रूप-रेखा पहले से ही तैयार कर लेनी चाहिए ताकि लिखते वक्त ज्यादा सोच-विचार करने की आवश्यकता न पड़े।
  • जिस विषय पर लेख लिखा जा रहा है उस विषय से सम्बन्धित उचित जानकारी होनी चाहिए व पूर्णतया ध्यान केन्द्रित करके ही लेख लिखना चाहिए।
  • लेख लिखते समय पूरी निडरता व स्वतंत्रता से लेख लिखना चाहिए एवं अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए। परन्तु साथ में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वह लेख किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए।
  • लेख लिखते समय संयम बनाए रखना अति-आवश्यक है। जल्दबाजी में लिखा गया लेख त्रुटिपूर्ण हो सकता है।
  • एक अच्छा लेखक बनने के लिए नियमित रूप से अभ्यास करना आवश्यक है। बिना अभ्यास किए अपनी त्रुटियों का पता लगाना सम्भव नहीं हो पाता है।

पाठ्यक्रम की दृष्टि से देखा जाए तो लेखन एक स्वतंत्रता से परिपूर्ण क्षेत्र है। यह किसी भी प्रकार के पाठ्यक्रम के लिए बाध्य नहीं है। लेखन के क्षेत्र में जाने के लिए लेखन सम्बन्धी जानकारी तथा गुणों का होना अधिक आवश्यक है, न कि लेखन सम्बन्धी किसी विशेष शैक्षिक उपाधि का। फिर भी हमारे राष्ट्र में ऐसे कई संस्थान हैं जहाँ लेखन सम्बन्धित पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाते हैं। ऐसे ही कुछ विशेष पाठ्यक्रम निम्नलिखित हैं:

  • दिल्ली स्थित, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,
  • नई दिल्ली व कोलकाता स्थित, ब्रिटिश काउंसिल ऑफ इंडिया,
  • बैंगलौर स्थित, अर्ध-डिलक्स लेखन कार्यक्रम,
  • नई दिल्ली स्थित, जवाहरलाल नेहरू भाषा अकादमी,
  • बीर, हिमाचल प्रदेश स्थित, डियर पार्क संस्थान,
  • नैनीताल, उत्तराखंड स्थित, हिमालयन राइटिंग रिट्रीट,
  • दिल्ली स्थित, श्री अरबिंदो कला और संचार केंद्र,
  • मुंबई स्थित, सेंट जेवियर्स महाविद्यालय,
  • पुरी, उड़ीसा स्थित, पंचगनी राइटर्स रिट्रीट,
  • बैंगलौर स्थित, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय आदि।

इसके साथ ही हमारे राष्ट्र में कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाता है, जिनकी सहायता से लेखन में रूचि रखने वाले इन प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपने लेखन कौशल को और भी अधिक सुदृढ़ कर सकते हैं। ऐसी कुछ विशेष प्रतियोगिताएं निम्नलिखित हैं:

  • मन- ओ- मौसुमी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता,
  • अखिल भारतीय प्रतियोगिता,
  • अब्दुल कलाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता,
  • ढाई आखर लेखन प्रतियोगिता,
  • विक्रम साराभाई स्मृति प्रतियोगिता आदि।

            उपर्युक्त सभी प्रक्रियाओं की सहायता से लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है तथा अपनी अभिरुचि को अपना पेशा बनाया जा सकता है।

             इन सभी तथ्यों के बाद बारी आती है आजीविका प्राप्ति की। आजीविका की दृष्टि से देखा जाए तो लेखन का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत तथा प्रभावशाली है। आज हमारे राष्ट्र में लेखन के क्षेत्र में ऐसे अनेक पद हैं जिनमें कार्यरत होकर उचित आजीविका प्राप्त की जा सकती है तथा अपनी एक उत्कृष्ट पहचान बनाई जा सकती है। ऐसे ही कुछ पद इस प्रकार हैं:

संवाददाता, स्तंभ लेखक, अनुदान लेखक, प्रस्ताव लेखक, सामाजिक मीडिया प्रबंधक, संचार अधिकारी, संचार विशेषज्ञ, कापीराइटर, संचार निर्देशक, विज्ञापन प्रबंधक, कार्यकारी प्रबंधक, जनसंपर्क प्रबंधक, सामग्री बाजारिया, सामग्री रणनीतिकार, प्रोफेसर आदि।

            उपर्युक्त सभी संभावित पदों में कार्यरत होकर लेखन में रूचि रखने वाले अपनी छाप छोड़ सकते हैं तथा एक उच्च शिखर पर पहुँच सकते हैं।

           इस प्रकार लेखन एक अच्छी अभिरूचि तथा संचार की एक अच्छी प्रक्रिया होने के साथ-साथ आजीविका का एक अच्छा स्रोत भी सिध्द होती है। थोड़े परिश्रम व थोड़ी कठिनाइयों का सामना करके अपनी पसंदीदा गतिविधि को अपनी आजीविका में परिवर्तित किया जा सकता है तथा एक श्रेष्ठ लेखक के रूप में अपना व अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाया जा सकता है।

By Priya Sharma, Agra

SOURCEBy Priya Sharma
Previous articleलेखन – एक रूचि
Next articleआखिर क्यों ?
Avatar
''मन ओ मौसुमी', यह हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए, भावनाओं को व्यक्त करने और अनुभव करने का एक मंच है। जहाँ तक यह, अन्य भावनाओं को नुकसान नहीं पहुँचा रहा है, इस मंच में योगदान देने के लिए सभी का स्वागत है। आइए "शब्द" साझा करके दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाएं।हम उन सभी का स्वागत करते हैं जो लिखना, पढ़ना पसंद करते हैं। हमें सम्पर्क करें monomousumi@gmail.com या कॉल / व्हाट्सएप करे 9869807603 पे

7 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here