गर्मी की छुट्टियां

By Piyush Yadav

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मई का महीना शुरू होने को था। आज से बंटी के स्कूल की छुट्टी भी हो गई थी, पूरे 2 महीने के लिए। गर्मी की छुट्टियां बंटी अक्सर अपने नाना नानी के घर बिताया करता था, मगर इस बार वो अपने गांव जा रहा था। पिताजी के गुजरने के बाद ये पहली बार था जब बंटी अपने गांव दादा दादी के पास जा रहा था। आज बंटी बहुत खुश था। और उसकी मां उदास। बंटी आज सुबह 5 बजे उठ गया, वैसे तो हर रोज़ उसकी मम्मी उसे जल्दी उठाती थीं, मगर वो 7 8 बजे से पहले कभी नहीं उठता था, बल्कि स्कूल के लिए हर रोज़ लेट हो जाता था। मगर आज रविवार था, और गांव भी जाना था। सो बंटी आज जल्दी उठ गया। अमूमन हिन्दुस्तान में बच्चे छुट्टियों के दिन जल्दी उठ ही जाया करते हैं बाकी दिनों की अपेक्षा में, सो ये कोई नई बात नहीं थी। नई बात तो ये थी कि आज वो अपनी दादी के पास जा रहा था। मां के बाद दादी ही थीं जिन्हें बंटी सबसे ज्यादा प्यार करता था। बंटी जब अपने गांव पहुंचा तो अपनी दादी से ऐसे लिपट गया मानो सदियों से ना मिला हो, और दादी ने भी बंटी को अपने आंचल में ऐसे छुपा लिया जैसे कोई बंदरिया अपने बच्चे को चिपका लेती है। गांव पहुंचे ही बंटी ने दादी से पूछा, दादी गुलाबो कैसी है, अब तो वो बहुत बड़ी हो गई होगी, है ना। हां बेटा और अब तो उसकी एक प्यारी सी बछिया भी हो गई है। दादी आपने उसका नाम क्या रखा। उसका नाम है सिताबो। हाहहाहा…. बंटी नाम सुनते ही हंसने लगता है? हंस क्यों रहे हो? दादी ने पूछा। कुछ नहीं दादी मैं तो बस ऐसे ही, पर अपना नाम बड़ा प्यारा रखा है, गुलाबो की बेटी सिताबो हाहाहाहाहा…! अरे ज्यादा मत हंस मेरे लाल नहीं तो पेट दर्द होने लगेगा फिर। ठीक है दादी, बंटी मुंह पर उंगली रख लेता है और फिर से हंसने लगता है, गुलाबो सिताबो हाहाहाहाहा………! शाम ढल चुकी थी, और रात भी होने को थी, दादी बंटी से कहती हैं कि चलो अब खाना खा लो, मेरा लाल थक गया होगा इतनी दूर से आया है भूख भी लगी होगी। दादी मैं इतनी दूर से पैदल थोड़ी आया हूं जो थक जाऊंगा, हाहाहाहाहा…….। चल अब हंसना बंद कर और मुंह हाथ धूल ले, तब तक मैं खाना लगाती हूं। बंटी हाथ मुंह धूल के आता है, और उसकी दादी उसके लिए चूल्हे की गरमा गरम रोटी घी में डूबी हुई, साथ में मूंग की दाल और आलू का चोखा लाती हैं। दादी ये सब आपने बनाया? बंटी पूछता है। हां ये सब मैंने अपने लाल के लिए बनाया है। तुम्हें ये घी डली मूंग की दाल और आलू का चोखा बहुत पसंद है ना इसलिए बनाए हैं तुम्हारे लिए। अच्छा दादी एक बात बताओ आप मुझे मेरे लाल मेरे लाल क्यों बुलाती हैं? क्योंकि तूं छोटे में इतना गोरा चिट्टा था कि धूप में एकदम लाल हो जाता था। सच में दादी! बंटी ज़ोर दे कर पूछता है। हां मेरे लाल। बंटी खाना खा के दादी की गोद में लेट जाता है। दादी कोई कहानी सुनाओ ना, जैसे बचपन में सुनाती थी बहुत पहले, नहीं आज नहीं, आज बहुत देर हो गई है बेटा अब आराम कर लो कल पक्का कहानी सुनाऊंगी। ठीक है दादी। गुड नाईट दादी। और फिर आसमान में तारे गिनते गिनते बंटी एक गहरी नींद में सो जाता है। अगली सुबह जब चिड़ियों ने चहचहाना शुरू किया, तो बंटी की आंख खुल गई। रात भर एक गहरी नींद के बाद बंटी सुबह की ताज़ी ठंडी हवाओं को महसूस कर रहा था। उठने के बाद वो सबसे पहले बाड़े में गया, अपनी गुलाबो के पास। वहां बाड़े में बंटी के दादाजी गुलाबो का दूध निकाल रहे थे। बंटी गुलाबो को देखकर बड़ा ख़ुश हुआ। दादाजी वो गुलाबो की मां गंगा कहां गई, बंटी ने पूछा। वो गंगा तो बेटा मर गई। कब मर गई दादाजी बंटी ने फिर से पूछा। 3 4 महीने हो गए उसे तो। वो कैसे मर गई दादाजी। कितने सवाल करते हो तुम, बताओ ना दादाजी, वो बीमार हो गई थी बहुत ज्यादा तो इसलिए मर गई। जैसे पापा रहते थे बीमार वैसे ही। इस बात पर दादाजी की आंखें भर आईं, मगर पोते के सामने रो ना सके। फिर तो दादाजी वो गंगा भी भगवान जी के पास चली गई होगी है ना। हां बेटा। तो दादाजी अब तो पापा उसके लिए सानी बनाते होंगे वही दूध भी निकलते होंगे है ना। दादाजी ने कोई जवाब ना दिया, वो बस चुप चाप ख़ामोशी से बंटी की बातें सुने जा रहे थे, और उसकी हां में एकाध बार हम्म और हां में सिर हिला देते थे। कुछ देर बाद दादा जी बोले कितनी बातें करते हो बंटी, थोड़ी सांस तो ले लो बेटा। चलो अच्छा ये दूध पी लो। दादाजी खटिया पर से एक ग्लास उठाते हैं और उसमें गाय का ताज़ा ताज़ा दूध भर के बंटी को देते हैं। दूध पीने के बाद बंटी दादाजी से कहता है, दादाजी देखो मेरी भी मूंछें बन गईं बिल्कुल आपके जैसी सफेद सफेद, ये कहते हुए बंटी हंसने लगता है, फिर बंटी अपनी मूंछों को जीभ से चाटकर साफ कर लेता है। दादाजी एक टूटे हुए कटोरे को ज़मीन पर रख के बजाने लगते हैं। ये आप क्या कर रय दादाजी, इतना कहते ही बंटी देखता है कि बिल्ली के दो छोटे छोटे बच्चे दौड़ते हुए उस कटोरे के पास आते है जो दादाजी बजा रहे थे, दादाजी उसमें थोड़ा सा दूध डालते है, तो बिल्ली के बच्चे सरपट सरपट दूध पीने लगते हैं। ये देख बंटी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दादाजी ये बिल्ली के बच्चे कहां से आए, और इनकी मां कहां है। इनकी मां तो भगवान जी के पास चली गई, इसलिए आप इन्हें दूध पिला रय। हां बेटा। दादाजी जब मेरे स्कूल खुल जाएंगे तब मैं इन्हें अपने साथ ले जाऊंगा अपने घर। ठीक है ले जाना, अब घर चलो नहीं तो तुम्हारी दादी सारा घर अपने सर पे उठा लेंगी, अभी रुको थोड़ा इनको देखने तो दो ये कैसे दूध पी रय। अरे फिर देख लेना शाम को अभी चलो नहीं तो तुम्हारी दादी मुझसे नाराज़ हो जाएगी, ये कहते हुए दादाजी बंटी को गोद में उठा लेते हैं और एक हाथ में दूध की बाल्टी लिए घर को निकल पड़ते हैं। दादाजी जब तक मेरी छुट्टियां खत्म होंगी तब तक तो ये बिल्ली के बच्चे बहुत बड़े हो जाएंगे है ना। हां बेटा, दूध पी पीके मोटे हो जाएंगे हाहाहा…. यह कहते हुए दोनों हंसने लगते हैं। अब बंटी को सिर्फ शाम का इंतजार था कि कब शाम हो और बंटी फिर से उन बिल्ली के बच्चों को खिलाय। जैसे तैसे दोपहर कटती है, शाम होते ही बंटी सीधे बाड़े में जाता है और सबसे पहले बिल्ली के बच्चों को ढूंढता है। मगर उसे बिल्ली के बच्चे कहीं नजर नहीं आते, तभी बंटी वो टूटा हुआ कटोरा उठाता है जिसमें बिल्ली के बच्चों ने सुबह दूध पिया था और जमीन में पटक कर बजाने लगता है बिल्ली के दोनों बच्चे न जाने कहां से दौड़े हुए आते हैं जिन्हें देख बंटी बहुत खुश होता है। गाय दुलने के बाद बंटी थोड़ा सा दूध उस टूटे हुए कटोरे में डालता है और बिल्ली के बच्चों को दूध पीते हुए देखता है, और मन ही मन मुस्कुराता रहता है। पता है दादाजी मैंने ना इनके नाम सोच लिए हैं, एक नाम किटी और दूसरी का लूसी। ये सुनकर दादाजी की आंखें नम हो गईं। उन्हें अपने बेटे की याद आ गई, वो कभी जानवरों को उनकी नस्ल से नहीं बुलाते थे, वो उनके कुछ ना कुछ नाम जरूर रख देते थे। दादाजी आप रो रहे, नहीं तो मैं तो बड़ा खुश हूं, तुमने इनके इतने प्यारे नाम जो रखे हैं। चलो अब घर चलते हैं, बंटी दादाजी की पीठ पर सवार हो गया, दादाजी ने दूध की बाल्टी उठाई और घर को चल दिए। बंटी का अब यह रोज का काम हो गया था वह सुबह शाम किटी और लूसी को दूध पिलाता और उन्हें घंटों खिलाता। अब तो बंटी किटी और लूसी को घर भी ले जाने लगा, वहीं दिनभर खिलाता रहता था। गर्मियों के ये दिन कब हंसते खेलते गुज़र गए पता ही नहीं चला, अब बस कुछ हफ्ते ही बचे थे बंटी के स्कूल खुलने को। किटी और लूसी अब बड़ी हो गईं थीं, और घर से बाहर निकलने लगीं थीं आपस में लड़ती थीं खेलती थीं। जिसे देख बंटी को बड़ा मजा आता था। एक शाम बंटी जब बिल्ली के बच्चों को दूध पिलाने के लिए बाड़े में गया तो उसने वो टूटा हुआ कटोरा बाजाया, कटोरेे की आवाज सुनते ही किटी भागती हुई आई और दूध पीने लगी, मगर लूसी कहीं दिखाई नहीं दी, बंटी ने उसे हर जगह ढूंढा मगर वो कहीं नहीं मिली, बंटी उसे ढूंढते हुए बाड़े के बाहर चला गया, उसके कुछ ही दूर एक गली में लूसी खून में लिथड़ी हुई पड़ी थी जिसे देख बंटी एकदम सन्न रह गया, और भागते हुए अपने दादाजी के पास आया, बंटी को सहमा हुआ देखकर दादाजी ने बंटी से पूछा कि क्या हो गया? वो लूसी लूसी के मुंह से खून निकल रा है, एक ठिठुरी और डरी हुई आवाज़ में बंटी ने कहा। दादाजी जाते हैं और देखते हैं कि लूसी मर चुकी है, वो लूसी को उठा कर बाड़े के अंदर लाते हैं। दादाजी इसे क्या हो गया, किसी कुत्ते ने इसे काट लिया। क्या ये भी भगवान जी के पास चली गई दादाजी। हां बेटा, ये कहते हुए दादाजी उसी बाड़े में एक जगह गड्ढा खोदने लगते हैं, आप ये गड्ढा क्यों खोद रय दादाजी। लूसी के लिए दादाजी ने जवाब दिया, अब लूसी इसी में रहेगी हमेशा, बंटी के पूछने पर दादाजी ने हामी भर दी। गड्ढा खोदने के बाद दादाजी ने लूसी को उस गड्ढे में एक कपड़े में लपेट कर लिटा दिया और ऊपर से मिट्टी दाल दी। आपने लूसी को कपड़े में क्यों लपेटा दादाजी, वो इसलिए कि उसे ठंड ना लगे दादाजी ने जवाब दिया, पर अभी तो गर्मी है ना, हां पर जब पानी बरसेगा तब तो उसे ठंड लगेगी ना, हां ये तो मैंने सोचा ही नहीं दादाजी। बात करते हुए दोनों दूध की बाल्टी लिए घर को निकल पड़ते हैं। मगर किटी दूध पीने के बाद उसी जगह बैठी रही जहां उसने आखिरी बार कपड़े में लिपटी लूसी को देखा था, वो रात भर उसी मिट्टी पर सोई जिसके नीचे लूसी सो रही थी। अगली सुबह जब बंटी बाड़े में आया तो किटी एकदम शांत थी वो ना खेलती थी ना ही उसने आज दूध पिया, वो हमेशा उसी जगह बैठी रहती थी जहां लूसी को दफनाया गया था। बंटी उसे घर ले आया, उसे भूख लगी तो उसने थोड़ा सा दूध पी लिया, मगर वो सारा दिन उदास इधर उधर डोलती रही। बंटी ने अब बाड़े में जाना बंद कर दिया वो किटी को भी नहीं जाने देता था, वो किटी को यहीं घर पर ही खिलाता था, मगर किटी हमेशा ही उदास घूमती रहती थी, कुछ दिनों के बाद वो बंटी के साथ थोड़ा खेलने कूदने लगी। एक रात तेज़ बारिश होने लगी तो किटी भागते हुए बाड़े में चली गई उसी जगह जहां लूसी थी, वो उसी मिट्टी के ऊपर ऐसे लेट गई मानो वो उस जगह को भीगने से बचा रही हो, वो शायद लूसी को भीगने से बचाना चाहती थी। उस रात बहुत तेज़ बारिश हुई मगर किटी वहां से नहीं उठी। वो वहीं लेटे लेटे सो गई। अगले दिन जब बंटी बाड़े में आया तो किटी अब भी उसी जगह लेती हुई थी। बंटी ने उसे उठाया मगर वो नहीं उठी, बंटी उसी जगह जहां लूसी दफ़न थी एक गड्ढा खोदने लगा। दादाजी जब बाड़े में आए तो बंटी को डांटते हुए बोले ये क्या कर रहे हो, दादाजी वो किटी भी लूसी के साथ भगवान जी के पास चली गई, इस बार बंटी की आवाज़ में कुछ गीलापन था। जिसे देख दादाजी की आंखें भी बहने लगीं दादाजी ने बंटी को अपने कलेजे से लगा लिया। फिर दादाजी ने लूसी के ठीक बगल में ही किटी को भी दफना दिया। उसी रात मौसम फिर से बिगड़ गया तेज़ बारिश होने लगी बंटी भागते हुए बाड़े में आया और उसने एक बर्सादी उठाई और उस जगह को ढक दिया जहां लूसी और किटी सो रहे थे, ताकि वो बारिश में भीगे ना, मगर तेज़ आंधी की वजह से वो बर्सादी उड़ रही थी, तो बंटी खुद ही उस बर्सादी को ले कर उसी जगह बैठ जाता है ताकि लूसी और किटी भीगने ना पाएं। बारिश में ठिठुरते ठिठुरते बंटी वहीं सो जाता है लूसी और किटी के पास।

By Piyush Yadav

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