नकारात्मक व्यक्ति के साथ आचार-व्यवहार

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इस संसार में प्रायः दो प्रकार के मानव पाये जाते हैं. पहले वे जो किसी भी बुरी से बुरी बात या वस्तु  में कोई न कोई अच्छाई निकाल लेते हैं. इनको सकारात्मक व्यक्ति कहा जाता है. दूसरे वे, जो किसी भी अच्छी से अच्छी बात या वस्तु या जगह में एक न एक बुराई ढूंढ ही निकालते हैं. इन्हें नकारात्मक व्यक्ति कहा जाता है. ऐसे व्यक्तियों को ढूँढने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, वे आपके आस-पास ही मिल जाते हैं. सभी महसूस करते हैं कि ऐसे व्यक्तियों के साथ या आस-पास रहने पर दिली कोफ़्त होती है. लेकिन मानव के सामाजिक प्राणी होने के कारण, खुशियाँ नाते-रिश्तों से भी मिलती हैं. अक्सर नकारात्मक व्यक्तियों के साथ बातचीत, आचार-व्यवहार काफी कठिन होता है, जो किसी के भी मानसिक तनाव का सबब बन सकता है. नकारात्मक व्यक्तित्व अपने निराशापूर्ण व्यवहार, आशंका, वहम आदि के कारण किसी का भी मूड ख़राब कर सकने में समर्थ होते है. ऊपर से ऐसी सलाह देंगे कि फलां कार्य बहुत सारे लोग नहीं कर पाये, तो तुम कैसे कर लोगे? या यह काम कितना कठिन और जोखिम भरा है? परिणामस्वरूप किसी काम को करने का पूरा उत्साह मारा जाता है.

ठीक इसके विपरीत, यदि आपका साथ सकारात्मक व्यक्तियों से है, तो आपको सारा जहां सही, प्रसन्न दीखता है, सभी काम अच्छे लगते हैं, प्रकृति से प्रेम जाग उठता है. अपने जीवन में संतोष हासिल करना है, ज़िन्दगी को रुचिकर बनाना है, हमारा यह अनुकरणीय प्रयास है कि नकारात्मक व्यक्तियों के साथ आचार- व्यवहार कैसा करना है? – जानें, सीखें. विभिन्न उपाय/कदम इसी बारे में नीचे दर्शाने की कोशिश है जो आपके लिए मददगार साबित होंगे.

नकारात्मक व्यक्ति की पहचान:- नकारात्मक व्यक्ति की पहचान करना इस समस्या का बहुत बड़ा समाधान है. अपने अनुभवों एवं मेलजोल पर आधारित नकारात्मक व्यक्तियों के गुण सुविधा हेतु नीचे दिए जा रहे है, तथापि स्वानुभव के आधार पर कुछ भिन्नता अवश्यम्भावी है:-

  1. नकारात्मक व्यक्ति को हर बात, वस्तु या जगह में हमेशा शिकायत बनी रहती है – मौसम या काम-धंधा हो अथवा नौकरी या दुर्भाग्य हो.
  2. दुनिया को देखने का उनका दृष्टिकोण सदा नेगेटिव होता है. उनको न किसी व्यक्ति या किसी बात पर भरोसा होता है और न कोई  चमत्कार दिखाई पड़ता है. अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा है- “ जीवन जीने के दो तरीके होते हैं _ एक तो यह कि जीवन में कोई चमत्कार नहीं हो सकता या फिर यहाँ सब कुछ चमत्कार है.”
  3. ऐसे लोगों को जो भी प्राप्त है वो बुरा और ख़राब ही है. उनका यही मत होता है कि वे हमेशा सावधान रहें, सदा सुरक्षित रहें ताकि सामनेवाला उनका कुछ बुरा न कर डाले. यदि दुर्भाग्यवश ऐसा कुछ हो भी गया तो वे गाते फिरेंगे- ‘देखो, मैं न कहता था.’
  4. स्वयं को हमेशा दुर्भाग्य का शिकार होना जतलाते रहते हैं. उनके द्वारा कुछ गलत काम हो गया, या उनका कोई काम गलत हो जाये तो आत्मतरस  का भाव उनके चेहरे पर बना ही रहता है. संघर्ष करने में पीछे रहते हैं और अतिशीघ्र आशा का दामन छोड़ बैठते हैं.  सामान्यतः लोग पराजय के बाद कुछ समय सदमे में रहते हैं और पुनः उठकर प्रयासरत हो जाते हैं. ठीक इसके विपरीत नकारात्मक लोग-बाग ऐसा कुछ भी नहीं कर पाते. 
  5. सभी को मनचाहा नहीं मिलता, न ही सबकी उपलब्धियां (अचीवमेंट ) बड़ी- बड़ी होती हैं, किन्तु यह तो निश्चित है कि नकारात्मक व्यक्तियों को कम या नगण्य उपलब्धियां हासिल होती हैं. एक तो वे स्वयं को कम स्मार्ट, शक्तिहीन और कमजोर समझते हैं. दूसरे सभी की आलोचना करते-करते हर बार सिद्ध कर देते हैं कि उनके साथ काम करना कितना कठिन होता है.
  6. जिसके साथ भी रहेंगे उसकी उर्जा, उत्साह और उम्मीद को सुखा डालते हैं. खुद सकारात्मक उर्जा उत्पन्न नहीं कर पाते, ऊपर से लगे हाथों आपको आगाह करते चलेंगे – आने वाले खतरों, तकलीफों , तनाव से सावधान रहना.
  7. कोई भी अच्छे से अच्छी खबर  में नेगटिव कुछ न कुछ बता देने में विशेषज्ञ होते हैं. उनको अच्छे समाचारों में नकारात्मकता का पुट देना बहुत अच्छे तरीके से आता है. बेहतर होगा कि अपनी क्षमता, भावना, स्थिति का परीक्षण करें और अपना ध्यान अपने कार्य पर केन्द्रित करें.
  8. नकारात्मक व्यक्तियों के व्यवहार का प्रभाव उनकी साख पर भी पड़ता है, जिसे उनके आस-पास वाले समझ जाते तथा धीरे-धीरे किनारा कर लेते हैं.
  9. ऐसे लोग कतई स्नेही नहीं होते हैं. हम सभी जानते हैं कि सामान्य व्यक्ति अच्छाई और बुराई का मिश्रण होता है, जबकि नकारात्मक व्यक्ति हमेशा सामने वाले की मात्र कमियों, बुराइयों पर ही ध्यान देते हैं और उनसे कह भी डालते है जो समय के साथ घातक सिद्ध होता है.
  10. हमेशा बुरे एवं ख़राब समाचार पर ध्यान देते हैं, उसे अपने साथ चिपकाकर घूमते रहते हैं जो गहराई में भीतर जाकर उनके अन्दर अवसाद, चिंता, घबराहट को जन्म देती है. फलस्वरूप उनके पूरे व्यक्तित्व में बदलाव हो जाता है.
  11. किसी के भी मन में पोजिटिव टिप्पणी देकर आशा जागते हैं, लेकिन  फिर किन्तु/परन्तु/but लगाकर सब कुछ मटियामेट कर डालते हैं. जैसे- फलां जगह बहुत अच्छी है, लेकिन अधिक भीड़-भाड़  के कारण शोर बहुत है, शांति नहीं है.
  12. नकारात्मक लोग बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं. उनकी बेईज्ज़ती बड़ी जल्दी और आसानी से हो जाती है, विशेष तौर पर उनकी आलोचना के समय. अपनी बुराई, या उस पर व्यंग्य या मासूम टिप्पणी को नहीं समझ पाते और दिल से लगा कर बैठ जाते हैं. ऐसी हरेक बात को अपना अपमान समझते है. इसके विपरीत सकारात्मक व्यक्ति हर बात, टिप्पणी को खिलाडी भावना से स्वीकार करके आगे बढ़ जाते हैं.
  13. उनमें न कोई भावना होती है और न ही मानवीय भावनाओं को समझने की क्षमता होती है. ऐसे लोग न किसी से प्यार कर सकते हैं एवं न सहायता कर पाते हैं. कभी भी शौक, उत्साह, ख़ुशी को समझने में नाकामयाब रहते हैं.
  14. नकारात्मक व्यक्ति शिकायतों, बुराइयों, कुंठाओं का बहुत बड़ा स्त्रोत और अनवरत झरना होते हैं. ऐसे लोग अपने जीवन की हर परिस्थिति, पहलू, हर रिश्ते से असंतुष्ट होकर आलोचना, शिकायत, बुराइयों की गठरी खोलकर हर मिलने जुलने वाले को बताते फिरते हैं. बात छोटी से छोटी हो, जैसे कोई चीज़ कहाँ रखी है? या बड़ी से बड़ी हो जैसे बॉस ने सबके सामने खिंचाई की हो. यह क्यों हुआ?, समझने में असफल रहते हैं कि ऐसी शिकायतें उनकी नकारात्मकता एवं असंतोष को बढ़ा ही रहे होते हैं .    
  15. ऐसे व्यक्ति अपने अलावा सभी को नकारा, गलत और बेवकूफ सिद्ध करने में माहिर होते हैं. ज़रा गौर कीजिये, हर समय दूसरा व्यक्ति गलत या मूर्ख कैसे हो सकता है? इनमें समझ और विवेक का अभाव पाया जाता है कि उनके आसपास का हर शख्स गलत है एवं वे उसको सुधार नहीं पाते तो काम कैसे होगा? मतलब काम न करने का एक नया बहाना!

प्रेरणादायक नकारात्मकता:-  कभी नकारात्मकता में सकारात्मकता पर भी एक दफा विचार किया जा सकता है. कभी-कभी ऐसे लोग प्रेरणादायी भी सिद्ध हो सकते हैं. जब आपका जीवन काफी समय तक शांत, समतल राह पर एकसार स्थिरता के साथ चल रहा हो, तो ईश्वर नकारात्मक लोगों को आपके पास भेजता है, ताकि सावधान हों, एवं आलस छोड़कर क्रियाशील बन जाएँ. उक्त दशा में नकारात्मक व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्होंने हमारे सुख-चैन क्षेत्र से बाहर निकालकर कुछ बड़ा काम करने हेतु उकसाया, क्रियाशील बनाया.

स्वयं सकारात्मक बनें:– अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद जब भी आपको समय मिले तो अपने शौकों की ओर अवश्य ध्यान दें. शौक संगीत-प्रेम का हो या चित्रकारी का या बागवानी अथवा रचनात्मक लेखन, कवि बनना  आदि कुछ भी हो सकता है- एक न एक शौक अवश्य पालना चाहिए. यह अनजाने ही आपके भीतर की सकारात्मकता को उभार देते हैं. प्रेरणा और शौक की खातिर उत्तम पुस्तकें पढ़ें जो हर समय के लिए सर्वश्रेष्ठ मित्र होती हैं, प्रेरणादायी भाषण सुनें, गुनें एवं अच्छी बातें अपनाने की कोशिश करें. 

किसी को नकारात्मकता से बाहर लाने में सहायक बनें:– सभी के जीवन में कुछ मित्र, नाते-रिश्तेदार ऐसे भी होते हैं जिनकी आप सहायता करना चाहेंगे, क्योंकि आप ऐसा करने में सक्षम हैं. अपने नकारात्मक मित्रों , रिश्तेदारों के साथ दयालुता से पेश आयें. किसी को कुछ उपहार दें. हमें मालूम है कि मुस्कराहट संक्रमित होती है. एक हसीन मुस्कराहट के साथ जादू की जफ्फी (आलिंगन) ज़रूर करें ताकि वे आश्वस्त हो जाएँ कि आप उनके साथ है. उनको यह भी जतला दें कि आपके लिए वे कितने महत्वपूर्ण हैं. यह न केवल कहें वरन आपके व्यवहार में झलकना भी चाहिए. उनको यह अहसास भी दिलाने का प्रयत्न करें कि आप उनके साथ कितने खुश हैं, उनको सम्मान दें, उम्मीद जगाएं, तारीफ करें, सहायक हों उनके स्थान पर अपने को रखकर बातचीत करें. यदि आपके पास उनकी किसी समस्या का हल है तो अवश्य शेयर करें. ये समस्त क्रियाएं आपके मित्रों , रिश्तेदारों की नकारात्मकता दूर करने में सहायक हो सकती हैं. साथ ही  आप अपनी सकारात्मकता पर गर्व कर सकते हैं.

नकारात्मक व्यक्ति के साथ सीमायें:– सदैव दूसरों की मदद करने को तैय्यार रहें किन्तु नकारात्मक लोगों के साथ मेलजोल की सीमायें निर्धारित कर लें. उनकी किसी बात को , कितनी मात्रा में, कितनी देर तक सुनना है- इसकी सीमायें मन ही मन में तय कर लें. ताकि तत्पश्चात, वहां से हटकर अपना मन और ध्यान निर्धारित क्रिया-कलापों में लगा सकें. यह मानकर चलना होगा कि नकारात्मकता का असर आपकी भावनाओं, विचारों, व्यक्तित्व पर निश्चित तौर से पड़ता है. अतः आपको अधिकार है- नकारात्मकता के सानिध्य की हदें तय करके अपनी सकारात्मकता को अक्षुण्ण बनाये रखें. ऐसे व्यक्तियों को पक्के तौर पर  अपनी सीमायें जता भी दें, भले ही उनको अजीब लगे लेकिन खुद का प्रसन्न, सकारात्मक, क्रियाशील बने रहना अतिआवश्यक है, जो दीर्घकाल में फायदेमंद रहता है. 

तेरी समस्या मेरी नहीं:– किसी के कोई भी मसले में इतना नहीं डूबना चाहिए कि स्वयं समस्या ग्रस्त होने लगें और नकारात्मकता आपको ही आक्रांत कर डाले; क्योंकि आपके ऊपर दुनिया को सुधारने की ज़िम्मेदारी नहीं है. इस बारे में मन में किसी किस्म का अपराध बोध पालने की भी कोई आवश्यकता नहीं है. समानुभूति आप पर इतने वज़न डाले, उसके पूर्व उस जगह से, उस मसले से सुरक्षित, निश्चित दूरी बना डालना श्रेयस्कर है.

जिव्हा नियंत्रण:– गीता में बताया गया है कि यदि मानव मात्र ने अपनी जिव्हा पर नियंत्रण करना सीख लिया , चाहे वह खाने के बारे में हो या बोलने के विषय में . मानव बहुत सारी दैहिक, मानसिक परेशानियों से निजात पा सकता है. इस प्रकार वह अपनी समस्त इन्द्रियों को काबू में रख पायेगा. नकारात्मक लोगों से बात करते समय कई बार लगता है कि उसकी बेतुकी बातों की कुंठा के कारण उसे फटकार दिया जाये. इस प्रकार हमारा अपना नियंत्रण खो जाने पर नकारात्मक व्यक्ति के मनचाही बात हो सकती है. अतः स्वयं की आन्तरिक शक्ति के लिए जीभ पर नियंत्रण रखते हुए, ख़ामोशी से सुन लें एवं किसी भी किस्म की प्रतिक्रिया व्यक्त न करें. जहाँ तक संभव हो व्यक्तिगत अभद्र टिप्पणी करने से बचें और बिना मूल्यांकन के उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनने का प्रयत्न करें. कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है, वह व्यक्ति आपको कोई उचित बात या तर्क दे दे जो आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. इस वज़ह से भी अपनी बात सावधानी से विवेक का उपयोग करके, विचारपूर्ण तरीके से रखें तथा उसे समझाने का प्रयास करें ताकि आपको भी नकारात्मक व्यक्ति से बात करने का पश्चाताप न हो.

व्यक्तिगत जीवन में सकारात्मकता:- अपने स्वयं के जीवन में सौहार्द्रपूर्ण- सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें, जो आपके मूड को खुशनुमा बनाये रख सकता है. घर पर या कार्य स्थल पर अपने आस-पास सकारात्मक लोगों को रखें, ऐसे ही लोगों के साथ मेलजोल रखें. आप जैसा वातावरण चाहते हैं, हर परिस्थिति में वैसे ही वातावरण के निर्माण का प्रयास करते रहें. जिसने भी आपकी छोटी से छोटी सहायता की है, आपका छोटा-मोटा काम सम्पादित किया है, उनके साथ खुशियाँ बांटें, कृतज्ञता ज्ञापित करें, हरेक से प्रसन्नतापूर्वक और चिंतामुक्त बातें करें. घर में भी तनावमुक्त वातावरण बनाकर रखें. जब भी वार्तालाप करें तो सामने वाले की बातें धैर्यपूर्वक, ध्यानपूर्वक सुनना, सद्विचार कर सटीक और सही जवाब देना भी सकारात्मकता के अंतर्गत आता है.

आपका विचार तथा रवैया (एटीट्युड) इस प्रकार का हो कि जो आपसे बात कर रहा हो, उसकी बात को सही एवं सच्चा माना जाना चाहिए ताकि उसका अभिप्राय और प्रयोजन सही ढंग से कम्युनिकेट हो सके; साथ ही स्वविवेक न छोड़ें. रचनात्मक आलोचना का स्वागत करें, परखकर अमल में लाने पर भी विचार किया जा सकता है. कोई दान, जरूरतमंद की सहायता, कोई सामाजिक कार्य आदि, बिना प्रतिफल की आशा के, अवश्य करें. यह आपके जीवन में सकारात्मकता भर देने की कोशिश है. कुछ भी ऐसा करके ईश्वर को अर्पण कर दें, तो तय मानिए प्रतिफल ईश्वर ही देगा, क्योंकि वह जानता है कि आपके लिए सर्वोत्कृष्ट, सर्वोचित क्या हो सकता है.

उपेक्षा :-  नकारात्मक लोगों की उपेक्षा उनसे बचने का सबसे बढ़िया साधन है. जब आप इस नतीजे पर पहुँच जाएँ कि किसी की सहायता करना अथवा बदलना नामुमकिन है तो उनसे किनारा करना या कम मेलजोल रखना श्रेयस्कर होता है. इसमें किसी भी प्रकार का अपराध बोध पालने की ज़रूरत नहीं है. इसे एक प्रकार का ज़हर मानें जिसे आपने अपने स्वास्थ्य के लिए निकाल फेंका है. ऐसे किसी भी अवसर को वरदान मानकर चलें, क्या पता ईश्वर का विधान हो और आपको कोई बेहतर सकारात्मक मित्र मिलने वाला हो. ऐसा करके शारीरिक और मानसिक रूप से बेहतर, तरोताजा, तनाव रहित महसूस करेंगे जो उत्तरोत्तर उन्नति में सहायक होगा.

जीवन को सुखमय, आनंदित बनाने के लिए बहुत आवश्यक है कि अपने आसपास के वातावरण से नकारात्मकता हटाना चाहिए या कम से कम उसकी उपेक्षा तो करना ही चाहिए. अक्सर नकारात्मक व्यक्ति एक कचरे वाले ट्रक की मानिंद होते हैं. वे अपने भीतर क्रोध, कुंठा, अवसाद, विफलता, निराशा का कचरा लेकर घूमते रहते हैं. जब उनका दिमाग यानि ट्रक लबालब भर जाता है, तब वे उसको खाली करने का स्थान ढूंढना शुरू कर देते हैं. यदि आपने उनको अनुमति दे दी, तो वे पूरा भरा ट्रक आपके ऊपर ही पलटा देते हैं. जैसे ही आपको लगे कि कचरे का ट्रक वाला आप पर कचरा डालने की तैय्यारी में है, तत्काल मुस्कुराकर, शुभकामना देकर चलता कर दीजिये. भरोसा रखिये, आप शांत और सुखी हो जायेंगे. यह आपका अधिकार भी है.

उपरोक्त सारी अथवा कुछ सलाहों पर अमल करते हुए सकारात्मकता बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा. आपका हक़ है कि आप अपना समय किन मित्रों, किन नाते-रिश्तेदारों के साथ व्यतीत करना चाहते है. सबसे अहम् बात – नकारात्मकता की पहचान करें एवं तदनुसार आचार व्यवहार की सीमा, उपेक्षा आदि स्वयं निर्धारित कर लें. इस रीति से ख़ुशी के स्तर में वृद्धि होगी, मानसिक तनाव में आशातीत ह्रास होगा. एक बात सदा याद रखना चाहिए कि नित कुछ नवीन सीखना, अध्ययन करना, गीत-संगीत का आनंद लेना, बाग में नव पुष्प का पल्लवित होना आपके जीवन स्तर में असीमित वृद्धि कर नकारात्मकता का अंत कर डालेंगे.

हर्ष वर्धन व्यास, गुप्तेश्वर , जबलपुर (म.प्र.)

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