तुम्हारा आत्मीय सौंदर्य

By: Brijlala kumar

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तुम्हारा आत्मीय सौंदर्य
तुम्हारा आत्मीय सौंदर्य
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“तुम्हारा आत्मीय सौंदर्य”

तुम्हारा आत्मीय सौंदर्य मेरे सोच से भी परे है ,

तुम्हारा मेरे प्रति सम्पूर्ण समर्पण मेरे समझ से भी परे है, 

तुम्हारी एकनिष्ठता मेरे अंतस् की अनुभूति से भी व्यापक है। 

तुम्हारी सरलता, तुम्हारी निश्छलता, तुम्हारी माधुर्यता मेरे अंतरात्मा के बहुत करीब होती है !

फिर भी मेरी अनुभूति सीमा से कहीं व्यापक है!

मैं तुम्हें अभी तक समझ नहीं पाया हूँ, 

कि कोई तुम्हारे जैसा भी मुझे प्रेम कर सकता है क्या ?

और मुझे पता है इसका जवाब तुमसे बेहतर शायद मुझे कोई नहीं दे सकता है!

मैं तुम्हें समझने की कोशिश जरूर करता हूं ,

यद्यपि मुझे पता है की मैं तुम्हें जिंदगी भर समझ नहीं पाउंगा!

और मेरे लिए इससे बड़ी सौभाग्य की बात हो ही नहीं सकती!

क्योंकि जो आनंद तेरे साथ जीते हुए तुझे समझने की सतत् प्रयास करने में है, 

और अंततः ना समझ पाने में है!

उससे बड़ा आनंद इस दुनिया में मेरे लिए दूसरा कोई भी नहीं!

 सचमुच तुम्हारा आदमी सौंदर्य अनुपम है, अद्वितीय है ।

By: Brijlala kumar

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