काश तब कैमरा होता
पहले न जाने हम दिन में अनगिनत बार हंसते थे।
खुश हम बेवजह भी रहते थे, थोड़े से में खुश रहते थे। नाराज़गी और दुश्मनी को कभी न निगलते थे।
काश तब खुश रहने के कारणों को सहजने कैमरा होता।
चारपाई जब आंगन में सजती थी ,बत्तीगुल होने पर पड़ोसियों की आंगन में महफिल सजती थी। बच्चो की धमाचौकड़ी मचती थी और हंसी ठिठोली खुब होती थी।
काश तब इन फुर्सत के पलों को सहजने कैमरा होता।
चूल्हे में सिकी रोटियां घी में डुबोकर; बाड़ी से टूटी ताजी सब्जियों की तरकारी और दाल संग चाव से खाते, चूल्हे के आस पास बैठकर न जाने कितनी ही यादें हम बनाते। रसोई में बीमारी का इलाज और खुशियों का मसाला होता जिसे हम रोज खाने में मिलाते ।
काश तब रसोई की यादों को सहजने के लिए कैमरा होता।
बच्चे कभी इस घर तो उस घर।
संयुक्त परिवार में पता नही बच्चे कब बड़े हो जाते थे?
नहलाता कोई ,खिलाता कोई और पढ़ाता कोई। प्यार और परवाह सब जताते बच्चों को अकेलेपन से बचाकर खूब प्यार लुटाते,लड़ाई झगड़े बड़े बखूबी सुलझाते। बच्चे बड़े होकर यही रीत बखूबी निभाते।
काश तब परवरिश की यादें सहजने कैमरा होता।
बच्चे रोज धूल ,पसीने से नहाते ,मीठी नींद रात को सो जाते, गर्मियों में ननिहाल जाते,बारिश में कागज की नाव तैराते, क्लास में मुर्गा बन जाते।गलती करने पर छड़ी पड़ती और कान खिंचाई और धुलाई भी खूब होती बच्चे नाराज न होकर सबक सीख जाते ।
काश तब बचपन की यादों को सहजने कैमरा होता।
तस्वीरें यादों का आइना है काश तब सुनहरी यादों को सहजने कैमरा होता तो आज हम उन्हीं यादों को देखकर मुस्कुराते।
By: Ashish Rahangdale
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