गुड टच

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सुबह 9 बजे, दिन शनिवार,

सेवा गैंग को सर्वोच्च सम्मान

“सेवा गैंग का नाम तो आप सभी जानते ही होंगे क्योंकि समाज की सोच में बड़ा बदलाव लाने वाली यह 6 विद्यार्थियों द्वारा चलाई जा रही संस्था को उनके सराहनीय योगदान के लिए 15 अगस्त को जिला कलेक्टर द्वारा उन्हें सम्मानित किया जाएगा।

सेवा गैंग ने समाज के कई जटिल पहलुओं को जगह-जगह जाकर सुलझाया है और समाज को ज्ञान की एक नई दिशा दिखाई है। उनके उल्लेखनीय योगदान की सराहना मुख्यमंत्री जी भी कर चुके हैं।”

आज के दैनिक अखबार में यह खबर पढ़कर मैं और मेरे साथियों को बहुत ज्यादा खुशी हुई और हमारे काम करने का जुनून और ज्यादा तीव्र हो गया ।आज का दिन हमारे लिए बेहद खास था ।

आज विक्रम, प्रियंकाऔर प्रशांत ने डेमोंसट्रेशन के लिए प्रयोग में आने वाले उपकरण भी खरीद लिए हैं ताकि प्रोजेक्टर के माध्यम से लोग समाज की समस्याओं को अच्छे से समझ सकें।

यह सब हमारी बचत और स्कॉलरशिप के पैसों से एवं पार्ट टाइम जॉब के पैसों से ही संभव हो पाया था।

शाम 6:00 बजे कलेक्टर ऑफिस से फोन आया और उन्होंने हमें कल सुबह मीटिंग के लिए बुलाया ।

सुबह 9:00 बजे ,दिन रविवार

हम अपनी पूरी टीम के साथ कलेक्टर ऑफिस पहुंच गए। कलेक्टर साहब अपने साथ एक अखबार लेकर आए और उन्होंने एक खबर प्रशांत से पढ़वाई जिसमें लिखा था कि एक बच्चे (उम्र 13 साल) ने अपनी आपबीती पुलिस थाने में जाकर बताई और कुकर्म करने वाले अपराधी को पॉक्सो एक्ट के तहत कड़ी सजा दिलवाई अपराधी ने अपना जुर्म कबूला और ऐसे कई बच्चों के साथ पहले कुकर्म करने की बात स्वीकारी बच्चे ने बताया कि वह एक इंग्लिश मीडियम स्कूल का छात्र है और उसे उसके स्कूल टीचर ने गुड टच और बैड टच के बारे में सिखाया था, जिसे समझकर उसने अपनी आपबीती अपने टीचर को बताया और टीचर ने उसके माता-पिता को बताया और उन्होंने पुलिस थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई और मुजरिम को सजा दिलवाई।

अचानक यह खबर सुनते ही मेरा धड़कन तेज हो गई और मैं सहम गया क्योंकि इस खबर ने मुझे मेरे अतीत के काले अंधेरे में धकेल दिया था। शरीर कांप रहा था। प्रियंका के स्पर्श से मैं और डर गया और होश संभाला मैंने फिर उसे सब कुछ ठीक है बोलकर मैं उस खबर पर होने वाली चर्चा में शामिल हो गया। कलेक्टर साहब ने बताया कि ऐसी घटनाएं ग्रामीण इलाकों और अनेकों जगहों में बढ़ती जा रही हैं वजह है जागरूकता और ज्ञान की कमी उन्होंने कहा कि सेवा गैंग को हमारे जिले के लोग और अन्य जगहों के लोग भी अपना मानते हैं उन्हें सुनते हैं उनका सम्मान करते हैं और उनसे ज्ञान अर्जित कर समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने में सहयोग करते हैं इसीलिए मैं सेवा गैंग से अनुरोध करता हूं कि वह जगह-जगह जाकर लोगों को जागरूक करें बच्चों को गुड टच, बैड टच का पाठ सिखाएं ; उनकी आपबीती सुने और हमें बताएं। इस प्रकार हम और आप मिलकर एक बेहतर समाज की स्थापना कर पाएंगे ।

हमारी सेवा गैंग समाज में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है ।हमने उनके इस प्रशंसनीय कैंपेन में अपना सहयोग देने के लिए हामी भर दी और हम सभी गुड टच, बैड टच के लिए जरूरी रिसर्च करने के लिए अपने अपने घर लौट आए।

रात 10:00 बजे

आज रात की चाँदनियाँ ज्यादा टीम टिमा रही थी और मेरे अतीत के अंधियारे को रोशन कर रही थी , रात का सन्नाटा आज मेरे अतीत की सवारी के लिए तैयार बैठा था। रह रहकर वहीं खबर मेरे कानों में गूंज रही थी ,दिल उस बच्चे के हौसले को सलामी दे रहा था लेकिन अतीत की कुछ झलकियां आंखों के सामने जीवंत होकर मुझे उलाहने दे रही थी। मेरा मन अतीत के पन्ने धीरे-धीरे पलटने लगा रोम रोम में डर समा गया था , धडकने तेज होती जा रही थी। बार-बार मन अतीत के दरवाजे में लाकर मुझे पटक रहा था ।इंसाफ दिलाने की आवाज अतीत के कुएं में गूंजने लगी ।

खुद को मैंने किसी तरह संभाला और मैंने रिसर्च के लिए लैपटॉप खोला लेकिन मन आज हठी हो गया था। अचानक सुध बुध खोकर मै कुर्सी से उठ गया और चाल अपनी तेज करअपनी पुरानी अलमारी के सामने खड़ा हो गया। यह वही अलमारी थी जिसमें मैंने बचपन की चीजें संभाल कर रखी थी वह बचपन जिसे मैंने सिर्फ डर के अंधेरे में जीया था । हाथ ने त्वरित होकरतुरंत दरवाजा खोल दिया; अंगुलियों ने अपनी रफ्तार तेज कर दी और हृदय की गति नियंत्रण खोने लगी और मन की खोज उस पेटी में रखे पॉलिथीन और तीन चार कपड़ों से लिपटे पत्र पर खत्म हो गई। उस वक़्त मै  11 या 12 साल का था जब इस पत्र कोमैंने अपने मम्मी पापा के लिए लिखा था ।अपना कड़वा अनकहा अनुभव लिखा मैंने इस पत्र में, लेकिन उस डर ,धमकी ने बालमन पर ऐसा असर किया था कि मैं यह पत्र कभी उन्हें दे ही नहीं पाया ना ही अपनी आपबीती कभी किसी को बता पाया ।वह पत्र बक्से में पड़े पड़े मुझ से बाहर निकलने की गुहार कर रहा था। पत्र को खोलते ही शब्दों की शिकायतों का सिलसिला शुरू हो गया शब्द जुबान पर आने के लिए दौड़ लगाने लगे। उस पत्र को देखकर सारे अतीत के दृश्य जीवंत हो उठे ।हर शब्द मेरे दर्द को बयां कर रहा था। पत्र खोलते ही पत्र मुझसे शिकायत करने लगा ,शब्द शोर मचाने लगे ।लेकिन ,यह शोर और शिकायतें जायज भी थी। पत्र खोल दिया मैंने अचानक निगाहें सरपट दौड़ने लगी उस पन्ने पर शब्दों की गति तेज हो गई जुबां पर शब्द फिसलने लगे और हाथ थरथर कांपने लगे अतीत का दृश्य आंखों के सामने तुरंत जीवंत हो उठा । वह मेरी जिंदगी का सबसे घिनौना दिन मेरे सामने एक चलचित्र की तरह चलने लगा यह वह हादसा था जिसके बाद से मैं डरा डरा सहमा सहमारहने लगा था।बचपन मेंकिसी का भी स्पर्श मुझे असहज लगने लगा था ।उस हादसे के बाद मुझे लोगों से डर लगने लगा था ।उस हादसे ने मुझसे मेरी हंसी ,मेरा बचपन छीन लिया था औरकच्ची उम्र में अवसाद से घिर गया था अकेले में बहुत रोना आता था , मेंटल ट्रॉमा की चपेट में मै धीरे धीरे कब आने लगा था पता ही न चला। ना किसी से ज्यादा बात ,ना ज्यादा हंसना ,ना ही बाकी बच्चों कि तरह खेलना । मेरे इन बदलावों को कोई समझ ना पाया और ना ही मै किसी को कुछ समझ पाया । शरीर से घृणा होने लगी थी जब मुझे उस खेल की सच्चाई का पता बड़े होने पर लगा ।

उस दिन पापा- मम्मी ,दादा- दादी मुझे शिवम भैया के घर छोड़कर बुआ से मिलने अस्पताल चले गए थे। चूंकि मैं स्कूल में था उस वक्त तो उन्होंने शिवम भैया को भेज दिया था मुझे स्कूल से लेने। मेरे घर पहुंचते हीआंटी ( शिवम भैया की मम्मी) मेरे लिए मेरी फेवरेट डिश बनाने में जुट गई और शिवम भैया अपने कमरे में मुझे ऊपर ले गए ताकि मैं स्कूल ड्रेस चेंज कर सकूं और खाना खा सकूं। उस वक्त जो हुआ था वह मेरे दिल को आज भी दहला देता है आज भी उस दिन दिन के लिए मुझे खुद पर गुस्सा आता है और उस हैवान पर भी ।जब भी वह दिन का तनिक भी विचार आता है तो खुद से नफरत हो उठती है ,खुद को कोसता हूं किक्यों नहीं मैं जोरों से चिखा उस वक्त? क्यों नहीं मम्मी पापा को बताई वह बात ?मैंने क्यों नहीं उस हैवान को सजा दिलवाई ? यह बात मैं बरसों से भुलाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन शायद न्याय होना अभी बाकी था । हां! मुझे जब उसके घिनौने खेलकी सच्चाई पता चला तब मैंने कोशिश की बताने की सबको लेकिन कई बार पारिवारिक रिश्ते टूटने का डर तो कई बार समाज का डर सतानेलगता ,तो कभी बदनामी की डर सताता इसलिए मैंने इस हादसे को अपने अंदर दफन करना ही वाजीब समझा और यह बात मै भुलाने की कोशिश करने लगा ।

सेवा गैंग के नोबल प्रोजेक्ट करते हुए ,मेरी पढ़ाई के प्रति प्यार और दोस्तों के बीच रहते हुए मुझे मेरा अतीत मुझे कभी याद ही नहीं आया लेकिन वो अतीत मैं सिर्फ कुछ वक़्त के लिए दफन कर पाया था ,भुला नहीं पाया था ।

उसदिन स्कूल में मेरी टीचर जी ने हमें हिंदी की कक्षा में अनौपचारिक पत्र लिखना सिखाया था और काफी अच्छे से उसकी महत्ता बताते हुए कहा था कि यदि आप कभी अपनी खुशी या समस्या या अपनी कोई भी बात किसी से कहना चाहते हो और यदि आपको किसी के सामने अपनी बात रखने में झिझक महसूस हो तो आप पत्र के माध्यम से अपनी बात दूसरों को बता सकते हो और आपकी बात दूसरों तक आसानी से पहुंच जाएगी ।यही तो पत्र की खासियत होती है जादुई कलम पन्ने पर घुमाओ और खुल जाएंगे दिल के राज सारे । चूंकि शिवम भैया ने मुझे धमकाया था तो मैंने अपनी सारी आपबीती इस पत्र में लिख डाली थी ।मैंने अपने मम्मी पापा को यह पत्र लिख दिया था लेकिन अफसोस उस हैवान ने यह पत्र किसी को ना देने के लिए मुझे फिर धमकाया था ।बालमन और ज्यादा डरने के लिए बिल्कुल तैयार ना था इसलिए उस वक्त मैंने चुप्पी साध ली और यह पत्र इस पेटी में दुबक कर सहम कर छिप गया । आज तक वह खामोशी ,चुप्पी मुझे प्रताड़ित करती है। अपना दर्द पन्ने में शब्दों के माध्यम से बयां कर थोड़ी राहत जरूर पाई थी। मेरे साथ उस वक्त जो हुआ था वह मैंने इस पत्र में लिखा था ।

पत्र..

प्यारे मम्मी पापा,

आज जब आपने मुझे शिवम भैया के घर छोड़ा था तो आज शिवम भैया ने मुझे एक गेम के बारे में बताया जब मैं कपड़े बदल रहा था तब उन्होंने शुरू में कहा कि मैं दूसरे कपड़े ना पहनूं और उन्होंने भी खुद के कपड़े उतार लिए मुझे शुरू में बहुत हंसी आई और शेम भी क्योंकि शिवम भैया और मैं दोनों ही बिना कपड़ों के थे । लेकिन फिर गेम की नेक्स्ट लेवल में वह डरावने हो गए पता नहीं क्यों उन्होंने मेरे प्राइवेट पार्ट को छुआ तो पहले मुझे बहुत गुदगुदी हुई लेकिन बाद में दर्द होने लगा था मम्मी । भैया नेउनके प्राइवेट पार्ट को भी टच करने को कहा । छी! कितना गंदा गेम था ना मम्मी ? फिर आखरी में पता नहीं पीछे क्या किया उन्होंने कि मुझे बहुत तेज दर्द हुआ और मैं रोने लगा जब ज्यादा दर्द होने लगा तो मैं चीखने ही वाला था कि उन्होंने मेरा मुंह दबा दिया और गेम ओवर कह कर मुझे बिस्तर में धकेल दिया और जल्दी से कपड़े पहनने को कहा और खुद भी कपड़े पहन कर बाहर चले गए क्योंकि आंटी ने आवाज लगा दी थी खाना खाने के लिए । पता नहीं कौन सा गेम था ?मम्मी मुझे बहुत दर्द हुआ आज ।बहुत रोया मै आज । आप आज मुझे क्यूं छोड़कर चले गए थे आप भी भौत गंदे हो । उन्होंने मुझे कल फिर से गेम को आगे खेलने के लिए बुलाया है मैं नहीं जाऊंगा अब यह गेम खेलने फिर से उनके घर। उन्होंनेमेरी बिना कपड़े वाली फोटो ले ली है जो वह बोलते हैं कि अगर मैं दूसरों को इस गेम के बारे में बताऊंगा तो वो सब को मेरी फोटो दिखा देंगे ।मेरे स्कूल में और हमारे मोहल्ले में सबको । आप भी बहुत गंदे हो आप मुझे अकेला छोड़कर चले गए। भैया बहुत डर्टी है उन्होंने आज बहुत गंदा गेम खेला है मेरे साथ । कभी नहीं खेलूंगा यह गेम ,अब मैं कोई भी गेम नहीं खेलूंगा किसी के भी साथ और आप कभी मुझे अकेले मत छोड़ना किसी के साथ वह बहुत डर्टी है, वह बहुत गंदे हैं।वह डेविल हैं। उन्होंने मुझे आज बहुत रुलाया आप उनको बोलना कि वह मेरी फोटो डिलीट कर दें। मैं किसी को नहीं बताऊंगा इस गेम के बारे में आई प्रॉमिस प्लीज आप भी मत बताना इस गेम के बारे में किसी को ।

आपका बेटा

अक्षांश

वो हैवान घिनौना गेम खेलने बार बार मुझे बुलाता रहा, डराता रहा और मै छिपता रहा उससे,डरता रहा उससे ।कमरे की खिड़की से बच्चों को खेलते देखता था । बाहर निकलने में डर लगता था जब को आस पास होता था।हैवान बार बार वह घिनौना गेम खेलने के लिए बुलाता रहा लेकिन मै हमेशा उससे छिपता रहा तब तकजब तक वो आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर नहीं चला गया । बंद कमरे में सिर्फ किताबों से ही दोस्ती हो पाई और डर को दूर भगाने में मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गई । बचपन बाकी बच्चों के बचपन काफी अलग बीता था।

पत्र पढ़कर अश्रु धारा बहने लगी। उस बच्चे की लाचारी और बेबसी ने मुझेदहला कर रख दिया। मेरा सीना जो आज सम्मान पाने कि खबर से चौड़ा हुआ था वह इस पत्र को पढ़कर फटने लगा था । मै खुद को धिक्कारने लगाकि मैंने यह पत्र क्यों नहीं दिया उस वक्त किसी को ?शिवम भैया की धमकी ने मुझे बांधे रखा था लेकिन यह धमकी बाल मन में ऐसा असर कर गई थी कि आज तक कभी हिम्मत ही नहीं हो पाई यह बात किसी और से कहने की। यह पत्र पढ़कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए मेरा दिल चीख चीख कर रोने लगा। इंसाफ की ज्वाला धधक उठी मेरे सीने में ।मेरे अंदर दफन पीड़ित बच्चा इंसाफ मांगने लगा ।

कल के डेमोंसट्रेशन के लिए जो मुझे रिसर्च करनी थी वह रिसर्च इस पत्र को पढ़कर पूरी हो चुकी थी।

आज रात को नींद कहां आने वाली थी क्योंकि कल इंसाफ को पाने की जंग की पहली लड़ाई जो मैं लड़ने वाला था।

सुबह 8:30 बजे

हमारी ग्रुप की बस जोरों से हॉर्न दे रही थी ऐसा लग रहा था मानो मेरे युद्ध का बिगुल बज रहा हो मेरे लिए । आज मैं एक महान काम करने जा रहा था । एक योद्धा की तरह मै आगे बढ़ रहा था कई सालों से यह टीस थी कि मुझे किसी ने गुड टच और बैड टच क्यों नहीं सिखाया ? क्यों मुझे मेरे पेरेंट्स ने यह नहीं सिखाया ? क्यों मेरे टीचर ने यह नहीं पढ़ाया? कितने सालों से दबी हुई आवाज आज उठने जा रही थी। आज मै हिम्मत के साथ इस गंदगी को दूर करने के लिए आगे बढ़ रहा था।

गांव में आज हमारा डेमोंसट्रेशन था। सुनने मिला है कि स्कूल के शिक्षकों ने मिलकर स्कूल की मरम्मत करवाई है और बिजली की व्यवस्था भी की गई है।

जैसे-जैसे धूल भरे रास्तों में पहिए आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बीता हुआ कल, बीते कल की तकलीफदेह यादें ,डर , ग्लानि सब धीरे-धीरे धूल में विलीन हो रहें थे।

विंडो सीट से उछलते कूदते बच्चों को देखकर खुद का बचपन जीने का मन कर रहा था जो मैं डर और बेबसी के कारण कभी जी नहीं पाया था ।

जी हां ! मुफ्त का पाउडर हमें और खूबसूरत बना रहा था, लेकिन आज रोम रोम में ताजगी और जूनून था ।आज मै दूसरों को शिक्षित कर अपनी मदद करने जा रहा था।

दोपहर 3:30 बजे

प्रोग्राम सफल रहा। कुछ हैरान कर देने वाली आपबीती भी हमने सुनी, कुछ बच्चों की तो कुछ बड़ों की। बच्चों के सवाल जवाब चौका देने वाले थे। बच्चों के माता-पिता काम छोड़ कर आए थे। सबने बेहतरीन तरीके से सबकुछ समझाया। प्रोग्राम खत्म होने के बाद ऐसा लग रहा था कि बच्चे अब समझ गए कि -व्हाट इस गुड एंड बैड टच ? आज दूसरों को ज्ञान देकर आज खुद को मैंने इंसाफ दिला दिया था ।आज वह बच्चा उछल कूद कर किलकारी मारते हुए “थैंक यू “बोल रहा था जो डर के कारण आज तक कुछ नहीं कर पाया था ।डर की बेड़ियां आज छूमंतर हो चुकी थी। आज आजादी की उड़ान भरने का दिन था क्यूंकि आज डर और बेबसी के पिंजरे में कैद बच्चा आजाद हो गया था। आज मैं उड़ रहा था ।मै अपना बचपन खुल कर जी रहा था।आज कितने सालों बाद मै खुद से मिल पाया था।

उड़ती धूल में भी बच्चों का गुडबाय साफ साफ दिख रहा मानो उनके हाथ आशीर्वाद दे रहे हो मेरे अंदर का पीड़ित बच्चा धूल भरे राश्तों में इंसाफ पाकर बिदाई ले रहा था।

रचयिता: आशीष रहांगदाले

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