“छब्बीस ईडियट्स”

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(सत्य घटना पर अधारित यह कहानी एक छात्र और सुरक्षा अधिकारी के बीच वार्तालाप को लेकर है। इसे रोमांचक बनाने के लिए कुछ काल्पनिक तथ्यों का समावेश किया गया है। छात्र का नाम भी काल्पनिक है।)

अफसर दफ्तर पहुँचते ही थे …..

एक छात्र अन्दर आकर बोला, ‘सर, मेरा आई.डी. कार्ड यहाँ है।”

तुम्हारा आई.डी. कार्ड यहाँ क्यों है ?” “सर, कल मेरा आई.डी. कार्ड ले लिया गया था” 

“तुम्हारा आई.डी. कार्ड क्यों ले लिया गया था भई ?”

“सर, कल मैं नालन्दा ग्राउन्ड में था।”

“नालन्दा ग्राउण्ड में तो बहुत लोग घूमते रहते हैं, तुम्हारा आई.डी. कार्ड ही क्यों ले लिया गया था?”

“सर वहाँ पर कुछ हो रहा था।”

“भई मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ, जरा खुल कर बताओ।”

“सर वहाँ पर कुछ प्रोग्राम हो रहा था।”

“प्रोग्राम तो रोज वहाँ पर कुछ न कुछ होता रहता है, उससे तुम्हारा आई.डी. कार्ड का क्या लेना देना है?”

“सर, किसी की शादी थी।

“किसकी शादी थी?

“सर, प्रोफसर के बेटी की।

“प्रोफसर ने तुम्हें भी न्योता दिया था क्या?

नहीं सर, मैं ऐसे ही चला गया था।

“ऐसे कैसे चले गए थे भई?

“सर, सीनियर ने कहा था।” 

“सीनियर कुआँ में कूद जाने को कहेगा तो – तुम कूद जाओगे क्या ? “

“सर, मैं फस्ट इयर का हूँ।”

“फस्ट इयर वाला प्रोफेसर की बेटी की शादी में जा सकता है, यह तुमसे किसने कह दिया भई ? डीन साहब ने ऐसा कोई सर्कुलर निकाला है क्या ?”

“नहीं सर। ‘तो तुम क्यों चले गए थे? – क्या नाम है ?”

“सर, आनन्द ।”

“नाम आनन्द, लेकिन काम तो तुम्हारा दुखदाई है भई!”

“डैड क्या करते हैं?”

“एडवोकेट हैं सर।”

“ओ! हो ! तो डैड ने कहा होगा – बेटे, तुम जो मर्जी करते रहना, जहाँ मर्जी चले जाना, जहाँ मर्जी खाना खा लेना – मैं अपने लाडले बेटे को बचा लूँगा, कानून मैंने अच्छी तरह से पढ़ रखा है !- और मॉम क्या करती है?”

“सर, हाउस वाइफ हैं।”

“देखो, एडवोकेट होने के कारण झूठ बोलना और ऐसा काम करना – डैड गलत नहीं मानते होंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि – हाउस वाइफ मॉम ने ऐसे संस्कार दिए हैं। ऐम आई राइट ?”

“यस सर।”

“तो ऐसा काम क्यों किया मेरे बेटे ?”

मैं अभी तक चुपचाप सुन रहा था, बीच में बोल पड़ा, बॉस इनको पूछिए कहीं चेतन भगत का नावल तो नहीं पढ़ लिया

“सुन लिया बेटे, साहब ने क्या कहा ?”

“यस सर, पढ़ा था।”

“आ! हो! फिर तो तुमने थ्री ईडियट्स भी देखी होगी?”

“यस सर |”

“कौन से होस्टल में रहते हो?”

“सर कुमाऊँ”

“और चेतन भगत कौन से होस्टल में रहते थे?”

“सर कुमाऊँ”

“इसका मतलब तुम पर चेतन भगत के नॉवल का पूरा पूरा असर पड़ गया है -?” यानि कि ‘चेतन इफेक्ट’ हो गया है।

“सर मेरा आई.डी. कार्ड कैसे मिलेगा?”

“मिलेगा ….. डीन साहब के नाम पर एक दरख्वास्त लिखो – यह सारी जानकारी देकर – और उस पर उनका दस्तखत करवाकर लाओ, मैं आई.डी. कार्ड दे दूंगा।”

“सर, कोई शॉर्ट-कट नहीं है?”

“है न ! अपनी मॉम से बात करवाओ … तुम्हारा डैड से तो मैं बात नहीं कर पाऊँगा – क्योंकि वो ऐटवोकेट हैं – लेकिन हाउस वाइफ मॉम को मैं जरूर समझा पाऊँगा … और पूछ भी लूँगा कि उन्होंने बेटे को ऐसे संस्कार दिए हैं क्या ?”

“सर, इस बार छोड़ दीजिए, आगे से नहीं करूँगा।”

“बेटे इस बार मैंने छोड़ दिया तो अगली बार एम.एस. बिल्डिंग के छत पर जाकर वोडका पियोगे, अगले दिन क्लास में जाकर सो जाओगे – और ऐसे चलते-चलते CGPA ‘फाइव पॉइन्ट’ ही आएगा – उस के बाद अपना प्रोफेसर की बेटी के साथ दोस्ती करोगे – आधी रात को उनके घर की छत पर चढ़कर उसके जन्म दिन की बधाई देने जाओगे ….! है कि नहीं ? क्योंकि ‘फाइव पॉइन्ट समवन’ में यही सब तो लिखा है!”

“फिर, उन प्रोफेसर की बेटी को पटाकर उनके घर से दफ्तर की चाबी लेकर जिया सराय से उसका डुप्लीकेट बनाओगे – और रात में उनके कमरे को खोलकर क्वेश्चन पेपर चुराकर अपना ग्रेड पॉइंट बढ़ाने की जुगाड़ में लग जाओगे ! क्योंकि तुम्हें तो बिलकुल ‘चेतन इफेक्ट’ हो गया है !!”

“सर, एक बार चान्स तो देना चाहिए !”

“चान्स का ही तो प्रॉब्लम है मेरे बेटे! चान्स ही आगे के चान्स को बढ़ाता जाता है – और ओ चान्स बढ़ते बढ़ते छत से कूदने की नौबत तक आ जाती है !”

“अरे हाँ ! छत से कूदने की घटना भी तो चेतन भगत के नॉवल में है।”

“यस सर, वो लास्ट में है।”

“तो तुम फस्ट से कॉपी करना शुरू किए हो?”

“गलती हो गई सर।”

“एक ईडियट एक नॉवल क्या लिख दिया है – उसी को तुम लोग फौलो करने में लग गए हो ! कितने लड़के थे नालन्दा ग्राउण्ड में ?”

“सर, छब्बीस।”

“ओ ! माई गॉड ! छब्बीस ! … देख लिया एक ईडियट ने ‘थ्री ईडियट्स’ बनाया, उसको छब्बीस ईडियट्स ने फौलो किया, आगे उसको भी कई ईडियट फौलो करेंगे – और वो मल्टीप्लाइ होते होते आई.आई.टी. से सिर्फ ईडियट ही निकलेंगे ! फिर सरकार को इसका नाम बदलकर ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ ईडियट्स’ न रखना पड़े। क्या हमारा देश अरबों रुपए खर्च कर रही है ईडियट बनाने के लिए ? नहीं मेरे बेटे, मैं चान्स नहीं दे सकता…।” “तुम एक काम करो, चार बजे मेरे चीफ से आकर मिलना।”

“सर, तो आप इतनी देर से मेरा क्लास क्यों ले रहे थे?”

“देखो तुम्हारा डैड एडवोकेट है, कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं – कौन सी कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं ?”

“सर, हाई कोर्ट में।”

“हाई कोर्ट के नीचे भी कोई कोर्ट होता है क्या ?”

“सर, लोअर कोर्ट।”

“हॉ-आ-आ -आ ! तुम्हारे केस की सुनवाई लोअर कोर्ट में हो गई …. क्योंकि केस जरा टेढा-मेढा है … इसलिए हाई कोर्ट में रेफर कर दिया गया है…..”

“आनन्द मायूस होकर विदाई लेता है ….”

“चार बजे हाई कोर्ट में केस की फिर से सुनवाई होगी!!!”

By: Bipattaran Kanjilal

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