मैं कलम तुम कागज़,
मुझे सिर्फ तुम हो पसंद,
इसीलिए तो मैं तुम पे लिखती हूं।
मेरी दोस्ती सिर्फ तुम से है,
इसीलिए तो तुम मेरी पहली पसंद हो,
इसीलिए तो मैं सबसे पहले तुम्हें ही ढूंढती हूं।
मुझे तुम पर ही खत्म होना है
और तुम मुझसे खत्म होना चाहते हो,
और इसे अच्छी बात क्या हो सकती हैं कि,
हम दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।
मैं हमेशा ही तुम्हें ढूंढती रहती हूं,
क्योंकि मेरे जीवन की हर खुशी और
सारे दु:ख तुम्हारे साथ ही तो बयां होते हैं।
मैं सिर्फ शब्द लिखती हूं
लेकिन मेरे ये शब्द जब तुमसे टकराते हैं
तो वे भावनाएं बन जाते हैं।
मैं तुम पे अपने सारे रंग भरकर अपना स्थान पाना चाहती हूं,
क्योंकी ये वहीं पर जाकर सजेंगे
जहां पर रंग से भरने की ख्वाहिश हो और
उस ख्वाहिश में अपने आप को
अब तक खाली रखने की कोशिश की हो।
जब भी हम अकेले होते हैं तो
मैं सिर्फ कलम और तुम सिर्फ कागज़ ही होते हो,
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
तो कोई पत्र या कविता बन जाती है
और हमारी यह कहानी एक किताब बन जाती हैं।
यानी हमारे मिलने पे हमें नाम और अहमियत दोनों ही मिलते हैं।
जब लोग हमें अलग करने की कोशिश करते हैं
तो मैं खुद ही तुम पर बिखर जाती हूं,
और मुझे बचाते हुए तुम भी अपने आप को मिटा देते हो।
हमारा रिश्ता बहुत पुराना है
और यह हमेशां ऐसे ही गहरा रहेगा,
हम दोनों का ही अस्तित्व एक दूसरे के बिना अधूरा हैं।
…..क्योंकी मैं कलम, तुम कागज़।
By: Pratibha Dhankecha
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