सच में, सदियों से मानव विज्ञान तथा विश्वास के मध्य संघर्ष करता आया है। यह दुनिया अद्भुत रहस्यों से भरी हुई है। कई रहस्य तर्कसंगत है तथा कई हमारी आस्था तथा विश्वास पर आधारित हैं। अब जो रहस्य तर्कसंगत है उसे समझना तो आसान है किन्तु जो किसी आस्था या विश्वास पर आधारित हो उसकी सच्चाई जानने के लिए तो वर्षो तक मनुष्य अपने ज्ञान-विज्ञान के सारे हथियार लेकर खोज में लगा रहता है किन्तु कई कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जहाँ मनुष्य का ज्ञान, विज्ञान, तर्क सभी निष्फल होकर रह जाते हैं और कोई भी निष्कर्ष नहीं निकलत।
दर असल ऐसे रहस्य सच में किसी ईश्वरीय शक्ति से जुड़े हुए होते हैं, क्योंकि यह कोई अन्धविश्वास नहीं है। ईश्वर का अस्तित्व हैयह तो परम सत्य है क्योंकि यदि बुराई है तो अच्छाई भी है, यदि अन्धेरा है तो प्रकाश भी है, इसी तरह शैतान है तो भगवान् भी है।
जी हां, ऐसा ही एक अद्भुत रहस्य छिपा है- भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल गुरुद्वारा श्री मनीकरण साहिब में ।
इस गुरुद्वारा साहिब में भोजन पकाने के लिए आग नहीं जलाई जाती बल्कि सारा भोजन गरम पानी के चश्मों में ही बनाया जाता है।
जी हाँ, यहां प्राकृतिक रूप से ही ऐसे उबलते हुए पानी के चश्में हैं कि जिन में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। दरअसल इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि कई सौ साल पहले श्री गुरु नानक देव जी अपने प्रिय शिष्य मरदाना के साथ यहां आए थे। मरदाना को बहुत भूख लगी थी। उसके पास भोजन बनाने की सामग्री तो थी किन्तु भोजन पकाने के लिए वहां आग नहीं थी। तब मरदाना ने गुरु जी से पूछा कि वह भोजन कैसे बनाए। तो गुरु जी ने पास ही पडे हुए एक पत्थर की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस पत्थर को हटाओ और भोजन तैयार करो। मरदाना ने पत्थर हटाया तो पत्थर के नीचे से उबलते हुए गरम पानी का चश्मा फूटा। गुरु जी ने कहा कि रोटियां बेल कर इस गरम पानी में डाल दो, रोटियां पक कर बाहर आ जाएंगी। मरदाना ने रोटियां जैसे ही पानी में डालीं तो सभी रोटियां पानी में डूब गईं। तब गुरु नानक जी ने मरदाना को समझाया कि तुम ने रोटियां डालते समय एक बार भी भगवान का नाम नहीं लिया जो सारी दुनिया का पालन-पोषण करता है तथा इसीलिए सारी रोटियां डूब गई हैं।
अतः अब भगवान् का नाम लेकर भोजन बनाओ। फिर जैसे ही मरदाना ने भगवान् को याद करते हुए रोटियां चश्मे के पानी में डालीं, सारी रोटियां बन के फूल कर पानी पर तैरने लगीं।
तब से लेकर आज तक इस स्थान पर उबलते हुए पानी के चश्में हैं तथा गुरूद्वारा साहिब में आने वाले हज़ारों लोगों का लंगर उन्हीं गरम पानी के चश्मों से पकाया जाता है।
यहा एक ओर विज्ञान यह मानता है कि नदी के पानी में चश्मों वाली जगह पर रेडियम की मात्रा अधिक होने के कारण पानी उबलता है किन्तु हैरानी की बात है कि इसी जगह के पास बहने वाला बाकी पानी एकदम शीतल है भाव ठण्डा है।
सच में दृश्य देखने योग्य है कि कैसे इस स्थल पर बडे-बडे सब्ज़ी, चावल आदि के बरतनों को ढक्कन से ढककर फिर कपड़े से बांधकर पानी मे छोड दिया जाता है और कुछ ही समय में खुशबूदार तथा स्वादिष्ट भोजन बनकर तैयार हो जाता है और गुरूद्वारा साहिब में आने वाले हज़ारों श्रध्दालुओं को खिलाया जाता है।
इस प्रकार यह अद्भुत करिश्मा आज तक सभी के लिए एक गूढ रहस्य बना हुआ है क्योंकि न तो आज तक इसके वैज्ञानिक कारण ही प्रमाणित हो पाए हैं।
अतः यह स्थान सभी धर्मों के लिए सम्मानीय है क्योंकि यहां बहुत से देवी देवताओं ने भी तप किया है। इस तरह यहा सभी धर्मों के लोग माथा टेकने आते है ।
अतः मैं यह कहना चाहूंगी कि मनुष्य को कभी भी किसी अन्धविश्वास के पीछे नहीं दौड़ना चाहिए । हमेशा अच्छे से परीक्षण करने के बाद ही और अपने विज्ञान की तर्क की कसौटी पर खरा उतारने के बाद ही विश्वास करना चाहिए। क्योंकि
“सत्यम् एव ईश्वरो लोके सत्यम् पद्या समाश्रिता। स सत्य मूलानि सर्वाणि सत्यान् न अस्ति परम् पदम्।।“
अर्थात सत्य ही ईश्वर है तथा ईश्वर ही सत्य है सच्चाई है। किंतु यह बात भी है कि मनुष्य को सदैव प्राकृतिक रचनाओं तथा संसाधनों का सदैव सम्मान करना चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। दुनिया में कोई बदलाव बिना तर्क के नही होता, यह तो समय के साथ-साथ जैसे जैसे लोग अपने संस्कृति से दूर होते जाते हैं वैसे वैसे ही वे सच्चाई से भी दूर होते जाते हैं।
अतः सदा तर्क-वितर्क तथा विश्वास के मध्य तालमेल बना कर रखना चाहिए।
By Davinder Kaur, Amritsar, Punjab