अंतराष्ट्रीय महिला दिवस

By Ratna Singh

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पुरे विश्व में मनाया जाने वाला दिन 8 मार्च जिसे हम महिलाओं के सम्मान में अर्पित करते है और अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के नाम से प्रशिद्ध है। इस दिन का महत्व एक औरत ही बखूबी से जान सकती है। हर कोई सुभकामनाएँ देता है, सोशल मीडिया पे औरतों की तस्वीर लगायी जाती है उनकी कामयाबी काबिले तारीफ में नजर आती है।   इस जश्न और ख़ुशी को देख कर जहन में ख्याल आता है कि काश ये 8 मार्च पुरे साल भर हो तो दीवारों से “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के कुछ पोस्टर कम हो जाए । 

             ” औरत तुलसी है वीरान आंगन की
                 जब सम्मान के दिए जलाएंगे तो पूरा
                 घर शुद्ध रहेगा”

हमारे समाज में सदियों से औरत को कमजोर माना गया है । आज भारत मे हज़ारो आन्दोलन व नारे  लगाये जा रहे है औरतों को बढ़ावा देने के लिए । मगर फिर भी ऐसे कई गांव और शहर है जहाँ औरतो को बाहर काम करना , देर रात घर आना , अपने मर्ज़ी के कपड़े पहनने तक  का हक नहीं दिया जाता । ये प्रचलं सदियों से है । आज से कई हज़ारो वर्ष पहले जब भारतवर्ष की धरती पर भगवान श्री राम वास करते थे, तब भी औरतों को ऐसे ही बन्धन में रखा जाता था । माँ सीता , जो की एक राजपरिवार की बहू थी उन्हें भी कई दुःख सहने पड़े । फिर द्रौपती का चीर हरण हम कैसे भूल सकते हैं ।
स्वतंत्रता जिस शब्द के उच्चारण में ही सुकून हो तो वह व्यवहार में कितना सुखमय होगा। आजादी एक मात्र ऐसी भावना है जो हर प्राणी की आवश्यकता है। प्राणी से यहाँ तात्तपर्य केवल चलने फिरने और बोलने वाले जीव ही नही है बल्कि पानी जैसे बेजुबान को भी आजादी चाहिए होता है।  आमतौर पर यदि हम पानी को कई दिनों तक बोतल में कैद रखें तो वह मृतक हो जाता है। 
भारतवर्ष के आजादी के किस्से भी विश्वभर में प्रचलित है। कई नौजवानों ने इसी आजादी में अपनी जान गवाई और एक दर्दनाक मौत से भी गुजरे मगर अफ़सोस की हिंदुस्तान अंग्रेजों से तो आजाद हो गया लेकिन मूल देशवासियों से ही नहीं हो पाया। आज लगभग सवा सौ करोड़ की आबादी हो चुकी है जिसमे नब्बे प्रतिशत ऐसी महिलाएं है जो इसी स्वतंत्र भारत में परतन्त्र है। इससे फर्क नही पड़ता की चौराहे पर “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के कितने पोस्टर लगे है या लोग महिला सुरक्षा के कितने वीडियो फॉरवर्ड कर रहे है।  एक यूनिवर्सिटी में जो मास्टर महिला उत्पीड़न पे भाषण देता है घर जाकर वही दहेज के लिए अपनी पत्नी को पीटता है। यानि लोगों की सोच ही ऐसी है कि किताबी ज्ञान भी उसे बदल नही सकता। 
सुबह की एक चाय के साथ अख़बार पढ़ने की आदत थी। आज हफ्ते होगये है पन्नों को पलटे क्योंकि अब इतनी क्षमता नही मुझमे की उन आँसुओं के अल्फ़ाज़ को पढ़ा जा सके। हर रोज एक रोती चिल्लाती औरत आजाती है अपने आजादी की मांग करने।
ढोल नगाड़े के साथ जाती बारात को देख कर मन में एक टीस सी उभरती है कि इतने जश्न के साथ जाते है लोग किसी के चौखट से बेटी लाने और विवाह के बाद उसे पीड़ा की थाली परोस दी जाती है। लोगों का कहना है, कि अधिकतर रेप असभ्य कपड़े पहनने से होते है मगर यह कहते हुए मेरी आँखें नम हो रही है कि पूरी मिडिया के सामने एक माँ ने रोते हुए कहा कि “5 साल की बच्ची को मैं साड़ी कहा से पहनाऊं”। कहीं बन्द कोठरी में दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है तो कहीं खुली सड़क पे रेप करके जिस्म आग में झोंक दिया जाता है। 
ये प्रचलं सदियों से है । आज से कई हज़ारो वर्ष पहले जब भारतवर्ष की धरती पर भगवान श्री राम वास करते थे, तब भी औरतों को ऐसे ही बन्धन में रखा जाता था । माँ सीता , जो की एक राजपरिवार की बहू थी उन्हें भी कई दुःख सहने पड़े । फिर द्रौपती का चीर हरण हम कैसे भूल सकते हैं ।
 साथ ही , हमने अपनी दादी – नानी से ऐसी राजा – रानी की कई कहानियां सुनी है जिसमे रानियों को कई सालों तक घुंगट में रहना पड़ा , कई वक्त गुजर जाते थे और सूर्य की रौशनी तक वो नही देख पाती थी ।
ये तो कुछ पुराने दास्ताँ थे ,
आज की बात अगर हम करें तो कुछ गांव और शरह को छोड़ कर कई ऐसे लोग है जो अपनी बेटियों को पढ़ाने –  लिखाने के लिए जागरूक हो चुके है । और ऐसे कई छेत्र है जिसमे हमारे हिंदुस्तान की बेटियों ने उचाईयों को हासिल किया है । तो क्या अब हम इस बात से ये कह सकते है कि अगर अब बेटियों को आज़ादी दी जा चुकी है तो फिर किस बात की नारे बाज़ी हो रही है । 
रेप !!
जी हाँ , आज भारत में औरतों ने जिस आजादी का इंतज़ार सदियों से किया शायद अब वो उसपर पछता रही हों । एक वक्त ये भी था कि माँ – बाप बेटी को जन्म देना नहीं चाहते थे , क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे की वो दहेज दे सकें । वो जन्म होने से पहले ही कोख में पल रही उस नाजुक सी  सुनहरी तितली को मार देते थे । और कई गांव में ये आज भी है। लेकिन जिनके पास पैसे है वो भी आज बेटी को जन्म नहीं देना चाहते , क्योंकि वो डरते है की बेटी होगी तो उसका रेप हो जयेगा । तो क्या हिन्दुस्तान में बेटियों की कोई जगह नहीं ? या तो हम उन्हें परदे में रखें और उनकी ज़िन्दगी छीन लें या फिर उन्हें आजादी देकर उनकी जान छीन लें ।
अर्थात , चाहे कलयुग हो , त्रेवतायुग , द्वापरयुग या फिर किस्से कहानियां , औरतों से उनकी आजादी हमेशा से छीनी गयी है । हमने औरतों पर सितम करने के लिए धर्म का भी इस्तमाल किया । जैसे की सती प्रथा , जिसमे विधवा औरतों से झूठ बोले जाते थे , की उन्हें  अपने पति की लाश पर जिन्दा जल के मरना होगा , यही हमारा धर्म है । उसके बाद बाल विवाह जैसी कई बातें सामने आती है जिसमे औरतों पर हुआ अन्याय झलकता है । केवल एक दिन उनकी कामयबी की बिगुल बजा दी जाती है और फिर अगली सुबह वही अँधेरी रात।
 अब हमें आवश्यकता है एक ऐसे स्वतंत्र राष्ट्र की जहा एक औरत को केवल कागजी पन्नो पे ठप्पे मारकर आजादी नही बल्कि व्यवहारिक रूप से मिले।

“जब जब एक औरत दर्द से चीखेगी तब तब ये कलम प्रहार के लिए उठेगी” 

By Ratna Singh, VARANASI

SOURCEBy Ratna Singh
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