शिक्षा प्रतिष्ठा को प्रभावित करते कोचिंग संस्थान

0
824
HS NEWS
Rate this post

आज के समय के शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव आ गया है।यह बदलाव अपने आप में एक क्रांति की तरह है।हर कोई इसमें दूसरों से आगे बढ़ने की होड़ में है।हम सभी को अपने आप पर सफल हो जाने का यकीन नहीं है।इसलिए हम सभी कोचिंग का सहारा लेते है। और अपने सफल हो जाने की खुशी भी पहले से मनाने लगते है।यद्यपि यह बात भी सही है।कि कोचिंग कुछ हद तक हमारी मदद भी करती है।किन्तु हम सारी उम्मीद कोचिंग क्षेत्र से लगा लेते है।कोचिंग शिक्षा में मदद करती है।लेकिन पुरी कोशिश तो हमें ही करनी पड़ेगी। कोचिंग की अपनी कुछ कमिया भी है।जो इस तरह है।

1प्रतिष्ठा स्थापना -कोचिंग संस्थानों का सबसे प्रथम तथा प्रमुख उद्देश्य अपनी प्रतिष्ठा की स्थापना करना होता है। यह अपने संस्थान में अधिक से अधिक विद्यार्थी जोड़ने का लक्ष्य रखते है।अखबारों में अपनी विज्ञापन छापना इसी संदर्भ में कही जा सकती है।कि यह विद्यार्थीयों को प्रभावित करते है,कि वे उनके संस्थानों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में शामिल हो।इनके अपने विज्ञापन में भी शब्दों को बढ़ा चढ़ाकर लिखा जाता है।जिससे पढ़ने वाले स्वतः ही इसके प्रभाव में आ जाते है।और अगले ही दिन इस संस्थान में कोचिंग भी लेने लगते है।इनके विज्ञापन में कभी कभी तो पक्की नौकरी जैसे शब्द भी प्रभावित करने के लिए छपवाए जाते है।जिससे कोई भी पहली बार में ही इनके प्रभाव में आ जाता है।इन संस्थानों का कार्य अपनी उन्नति पहले करना होता है। यह अपने संस्थानों में उपस्थित विद्यार्थियों को और अधिक विद्यार्थियों को लाने के लिए कहते रहते है। जो विद्यार्थी जितने अधिक विद्यार्थी लाता है।उसे उस हिसाब से फीस में छूट दी जाती है। इससे विद्यार्थी अपनी कोचिंग की जगह विद्यार्थियों के लाने के काम में ही लगे रहते है।

 2शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करना- आज के समय में शिक्षा की सभी को जरूरत है। शिक्षित व्यक्ति ही समय के साथ आगे बढ़ सकता है। तथा देश को भी आगे ले जाने में अपना योगदान दे सकता है। हम इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना है। कि उन्नति दूर नहीं है।अतः इसे सफल बनाने के लिए प्रयास भी बड़े ही होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में बदलाव के उद्देश्य  पूर्ण नहीं हो पा रहा है। इसका बहुत बड़ा कारण भी कोचिंग संस्थान ही रहे है। कोचिंग संस्थानों का प्रमुख उद्देश्य गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की व्यवस्था को बनाए रखना है। पर यह इसमें सफल नहीं हो पा रहे है। लेकिन कमजोर विद्यार्थियों को अपनी कमजोरी का पता तो चल जाता है। लेकिन उसे दूर करने की जानकारी उनको नहीं होती। न ही यह संस्थान इस ओर ही ध्यान देते है। यह शिक्षा की अनदेखी करता है। तथा नुकसान विद्यार्थियों को उठाना पड़ता है। आज के समय में तो कोचिंग सभी के लिए अनिवार्य ही हो गरीबी है। इसने अपने आप में एक डिग्री का रूप ले लिया है। हम चाहे जिंदगी में कुछ करें या न करें। सफल हो पांए या न हो पाए। लेकिन कोचिंग लेना अनिवार्य हो गया है।

3बहुत अधिक खर्चीली व्यवस्था-आज के समय में शिक्षा व्यवस्था बहुत खर्चीली हो गई है।तथा कोचिंग शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी होने के कारण और भी अधिक खर्चीली हो गई है। कोचिंग संस्थानों के द्वारा बैच लगाए जाते है। तथा शिक्षा उपलब्ध करवाई जाती है।वर्तमान समय में शिक्षा के सभी क्षेत्रों की कोचिंग उपलब्ध है। इसके लिए किसी तरह की योग्यता,मापदंड, नियमों की व्यवस्था नहीं है। इसके लिए केवल आर्थिक स्थिति मजबूत होना आवश्यक है। इसके बिना कोचिंग प्राप्त नहीं की जा सकती। कोचिंग संस्थानों के बैंक थोड़ी अवधि के होते है। लेकिन इनकी फीस बहुत अधिक होती है। इन संस्थानों में शामिल होने के लिए कुछ फीस पहले ही जमा कराई जाती है। तथा बाकी फीस महीने के दौरान ली जाती है। इनमें विद्यार्थी अपना पैसा तथा वक्त दोनों लगाते है। लेकिन यदि परिणाम उनकी इच्छा अनुसार प्राप्त नहीं होता है। तो वे दुखी हो जाते है। और तनाव का शिकार हो जाते है। यहां आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है।चाहे यह विद्यार्थी अपने विषय में कितने भी प्रतिभाशाली क्यों न हो।किन्तु यहाँ इनकी प्रतिभा नहीं,बल्कि इनकी आर्थिक स्थिति लाभदायक साबित होती है।बहुत से विद्यार्थियों के लिए तो कोचिंग लेना भी एक सपने की तरह ही होता है।यदि विद्यार्थी सफल नहीं होते है।तो उन्हें दुबारा संस्थान में शामिल होने के लिए प्रभावित किया जाता है।और इस तरह पुनः विद्यार्थियों की पूँजी, समय तथा शिक्षा का प्रभावित होती है।

4आत्मविश्वास प्रभावित होना-वर्तमान में कोचिंग संस्थानों का इतना बोलबाला है,कि एक मेधावी छात्र भी कोचिंग के बिना अपनी शिक्षा को अधूरा समझता है।अपने मित्रों तथा दुबे साथियों से प्रभावित होकर वह संस्थानों की इस होड़ में खुद को शामिल कर लेता है। यह संस्थान कुछ हद तक दिशा देने के लिए लाभदायक भी साबित हुए है। किन्तु सभी विद्यार्थी इससे लाभ नहीं ले पाते है।वर्तमान समय में इन संस्थानों का इतना ज्यादा प्रभाव तथा प्रतिष्ठा स्थापित हो चुकी है। कि विद्यार्थियों को इनके प्रभाव में आने के कारण अपनी योग्यता पर विश्वास नहीं रहा है।अच्छे अंक हासिल करने वाले विद्यार्थी भी इन संस्थानों में शामिल होने लगे है। वह इन संस्थानों के प्रभाव में आकर अपना आत्मविश्वास भी कम कर लेता है। मेधावी विद्यार्थी जब संस्थानों तथा अपनी शिक्षा के बीच समय संतुलित नहीं कर पाता है। तो तनावग्रस्त हो जाता है। तथा इस तरह वह शिक्षा में पिछड़े लगता है। यदि विद्यार्थी अपनी मेहनत से अच्छे नंबर ला रहा है। तो उसे इस संस्थानों में शामिल नहीं होना चाहिए। बहुत बार ऐसे उदाहरण भी समाज में देखने को मिले है। जहां आर्थिक रूप से पिछड़े हुए विद्यार्थियों तथा नौजवानों ने अपने आत्मविश्वास के बल पर कड़ी मेहनत की। और बिना किसी कोचिंग, बिना किसी ट्रेनिंग के अपने आत्मविश्वास के बल पर कामयाबी प्राप्त की। इन विद्यार्थियों तथा नौजवानों ने अपनी कड़ी मेहनत से कोचिंग के छात्र-छात्राओं को पीछे छोड़ दिया। शिक्षा के किसी भी क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने के लिए खुद पर विश्वास होना बहुत जरूरी है।

5अध्यापकों की योग्यता में कमी- कोचिंग संस्थानों की सबसे बड़ी कमी यह है। कि इन संस्थानों में शिक्षा देने वाले अध्यापकों के पास कोई अनुभव नहीं होता। इन अध्यापक- अध्यापिका के पास कोई डिग्री भी नहीं होती है। कभी कभी संस्थानों के संस्थापक पैसों के लालच के कारण अपने ही परिवारजनों या रिश्तेदारों को नियुक्त कर लेते है। इन सदस्यों के पास न तो कोई डिग्री होती है,न कोई अनुभव। जिसे खुद को शिक्षा का ज्ञान नहीं है,पूर्ण ज्ञान नहीं है। वह दुसरो को शिक्षित करने में कहाँ तक सफल हो पाएगा। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है,कि एक ही शिक्षक दो-दो संस्थानों में अपनी सेवाएँ दे रहे है। इनका एक ही लक्ष्य होता है,  निजी लाभ। इन कोचिंग संस्थानों को योग्यता के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए। जो विषय इन शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाना है। उस विषय में इनकी योग्यता की पूर्ण जांच की जानी चाहिये। इसके साथ ही इनके अनुभव को भी ध्यान में रखकर नियुक्त किया जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान समय में तो प्रतिस्पर्धा की स्थिति बनी हुई है। सभी संस्थानों द्वारा शिक्षकों को बिना योग्यता के नियुक्त किया जाता है। कुछ संस्थानों में तो एक ही विषय के लिए दो-दो अधयापक-अध्यापिका नियुक्त कर दिए जाते है। इनमें आधा सिलेबस एक अध्यापक तथा बाकी आधा सिलेबस दुसरे अध्यापक द्वारा पूर्ण करवाया जाता है। कोचिंग लेने वाले छात्र-छात्राएँ ऐसे में तनाव की स्थिति में आ जाते है। कयोकि छात्रों को एक ही विषय के दो विषय विशेषज्ञों के साथ तालमेल बिठा पाना मुश्किल हो जाता है। और जहां दो विषय विशेषज्ञ छात्रों की सहुलियत के लिए नियुक्त किए जाते है,वहीं वे छात्रों के तनाव का कारण बन जाते है।

तनाव में बढ़ोतरी-वर्तमान में कोचिंग संस्थानों की जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था है। उससे तनाव में वृद्धि  होने लगी है। इन संस्थानों के कोर्स को पूर्ण कराने की अवधि बहुत कम होती है। ज्यादातर सभी कोर्स तीन महीने में पूरे करवाए जाते है। जिससे छात्र-छात्राओं पर शिक्षा का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। प्रत्येक हफ्ते परीक्षा करवाई जाती हैं। जिसकी तैयारी का बोझ विद्यार्थियों पर होता है। यदि विद्यार्थी की कोई क्लास छूट जाती है। तो उसका सिलेबस पूर्ण करने का बोझ। इस तरह से कोचिंग के कम समय में कोर्स पूर्ण कराने की कोशिश विद्यार्थियों के तनाव का कारण तथा बोझ बन जाती है।

निष्कर्ष- वर्तमान समय में बदलाव के उद्देश्य से शिक्षा की व्यवस्था की गई। लेकिन शिक्षा में स्वयं में ही बदलाव आ गए।  छात्र-छात्राओं की पूर्ण मदद करते है। लेकिन इनमें कुछ अपवाद भी है। यह तनाव को कम करने की जगह पर उसे बढ़ा देते है। इन संस्थानों में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। इसका नुकसान विद्यार्थियों को होता है। इन संस्थानों की बहुत अधिक फीस भी एक अपवाद ही है। यद्यपि इन संस्थानों की संख्या बहुत अधिक है,इनमें आपस में भी होड़ है। लेकिन इनमें संस्थानों ने अपनी फीस पहले जैसे ही बढ़ा रखी है। 

कुछ कोचिंग संस्थानों के द्वारा बिलकुल निःशुल्क भी अपनी सेवाएँ दी जा रही है। इन संस्थानों का कार्य वाकई सराहना के योग्य है।

लेखक परिचिति : नवनीत कौर राणा , २५ बर्ष छात्र , श्री गंगानगर ,राजस्थान

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here