काश

By Divya Nair

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काश हम और तुम कुछ ऐसे होते…
तुम कुछ पुरे हम कुछ अधूरे होते
लफ़्ज़ों की बंदिशे न होती,
कुछ ऐसे फ़साने ख़ामोशियों के होते
रुख बदल भी जाता मौसमो का
अगर रुख बदल भी जाता मौसमो का
अगर समलने का होश न रहता
तेरी बाहों के पनाहो में,
कुछ ऐसे बेफिक्र होकर हम सोते
काश हम और तुम कुछ ऐसे होते…

खनकते जब कदम हमारे,
मंज़िलो के तराने तुम्हारे होते
दीदार की ना चाह होती,
ना मिलने की तड़प पलकों के शामियाने में,
तुम कुछ इस तरह हम में समाये होते
काश हम और तुम कुछ ऐसे होते…

गुमसुम सी शाम में,
तुम हमारे सवेरे होते दर्द का एहसास होता भी कैसे हमें?
दर्द का एहसास होता भी कैसे हमें?
बेवजह की मुस्कराहट बन,
तुम हमारे हमसफ़र होते
काश हम और तुम कुछ ऐसे होते…
तुम कुछ पुरे हम कुछ अधूरे होते…

By Divya Nair

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SOURCEBy Divya Nair
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