उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योकि उत्तराखंड में कई देवी देवता वास करते हैं जिनमें से एक है, गोलू देवता। यह कहानी लोकगाथा पर आधारित है। बहुत साल पहले ग्वालियर कोट चम्पावत में झालुराय नाम का राजा था। उनकी सात रानियाँ थी। राज्य में चारों ओर खुशहाली थी। राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। हर तरफ खुशहाली होते हुए भी राजा हर वक्त दुखी रहने लगा क्योंकि राजा की सात रानियाँ होते हुए भी उनका कोई पुत्र नहीं था। एक दिन राजा परामर्श लेने के लिए ज्योतिषी के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई। राजा की बात सुन कर ज्योतिषी ने सुझाव दिया कि आप भैरव महाराज को प्रसन्न करें, आपको अवश्य ही सन्तानसुख प्राप्त होगा। ज्योतिषी की बात मानते हुए राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया। भैरव जी महाराज ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि आपके भाग्य में सन्तान सुख नहीं है। फिर भी मैं स्वयं आप के पुत्र के रूप में जन्म लूँगा। इसके लिए आप को आठवीं शादी करनी होगी, जिससे आपको पुत्र की प्राप्ति होगी। राजा बहुत प्रसन्नता से आठवीं रानी की तलाश में लग गया।
एक दिन राजा शिकार के लिए जंगल की ओर निकला। शिकार ढूंढते ढूंढते बहुत दूर निकल गया। जब राजा को पानी की प्यास लगी तो राजा ने सैनिकों को पानी लाने को कहा। बहुत देर होने पर जब सैनिक नहीं आए तो राजा स्वयं पानी की तलाश में निकल पड़ा। दूर राजा को एक तालाब नज़र आया। जब राजा तालाब के पास पहुंचा तो देखता है कि उसके सैनिक मुर्छित अवस्था में तालाब के किनारे पड़े हुए थे। उसके बाद राजा ने स्वयं ही पानी के लिए हाथ तालाब की ओर बढ़ाया तो अचानक आवाज आई, “यह तालाब मेरा है। यदि आपने मेरी बात नहीं मानी तो आप का भी वही हाल होगा जो इन सैनिकों का हुआ है”।
राजा ने जब सामने देखा तो एक बहुत सुन्दर नारी खड़ी थी। राजा ने परिचय देते हुए कहा कि मैं चम्पावत का राजा झालुराय हूँ। तब उस नारी ने कहा कि मैं पंचदेव देवताओं की बाहें कलिंगा हूँ। अगर आप राजा हैं, तो बलशाली भी होंगे, जरा उन दो लड़ते हुए भैंसों को छुड़ाओ तब मैं मानूंगी कि आप गढ़ी चम्पावत के राजा हैं। राजा ने जब उन भैंसों को लड़ते देखा तो कुछ समझ नही आया कि कैसे छुड़ाया जाय। राजा ने हार मान ली। उसके बाद नारी ने स्वयं जाकर उन भैसों को छुड़ाया।
राजा उस नारी के इस करतब को देख कर आश्चर्य चकित हो गया। तभी वहाँ पंचदेव पधारे और राजा ने उनसे कलिंगा का विवाह प्रस्ताव किया। पंचदेव ने मिलकर कलिंगा का विवाह राजा के साथ कर दिया और राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ समय बीतने के बाद राजा की आठवीं रानी गर्भवती हुई। यह बात राजा की दूसरी रानियों को पसंद नही आई। रानियों ने सोचा कि यदि इसका पुत्र हो गया तो हमारा मान कम हो जायेगा और राजा भी हमसे अधिक प्रेम इससे ही करेगा। रानियों ने योजना बनाई, कि उस रानी के पुत्र को जन्म लेते ही मार देंगे।
जब पुत्र का जन्म होने वाला था तो आठवीं रानी के आँखों पर पट्टी बाध दी गई और जैसे ही पुत्र का जन्म हुआ, उसे गोशाला में फेंक दिया गया और रानी के सामने लोंड सिलट (मसला पिसने का एक साधन) रख दिया गया। जब रानी ने देखा कि उसका पुत्र नही लोंड सिलट हुआ तो रानी बहुत दुखी हुई। वह बालक अभी भी जिंदा था। सातों रानियों ने फिर उसे एक बक्से में बंद करके नदी में फेंक दिया। बक्सा नदी में तैरता हुआ एक मछुआरे के जाल में फँस गया। जब मछुआरे ने बक्सा खोला तो उसमें एक प्यारा सा बच्चा था। वह उस बच्चे को घर ले आया और उसका पालन पोषण किया। प्यार से उसे गोलू कह कर पुकारने लगा।
मछुआरे ने गोलू को एक काठ [लकड़ी] का घोड़ा दिया। गोलू उस घोड़े को रोज पानी पिलाने के लिए नदी पर ले जाता था। उसी नदी पर राजा की सातों रानियाँ भी आया करती थी। गोलू जब घोड़े को पानी पिलाता तो, रानियाँ कहती, “कहीं काठ का घोड़ा भी पानी पीता है क्या?” इस पर गोलू का जवाब होता, “क्या कभी औरत से भी लोड़ सिलट जन्म लेता है क्या?” ऐसा सुनते ही रानियाँ चुप हो जाती। यह बात जब आठवीं रानी को पता चली तो रानी गोलू से मिलने नदी पर गई।
हर रोज की तरह वही हुआ, गोलू आया और अपने घोड़े को पानी पिलाने लग गया। सातों रानियाँ ने भी वही कहा, “काठ का घोड़ा भी पानी पीता है क्या”? गोलू ने भी वही जवाब दिया, “क्या कभी औरत से भी लोड़ सिलट जन्म लेता है क्या”? यह बात सुनते ही आठवीं रानी बोली, “तुम ऐसा क्यों कह रहे हो”। गोलू ने रानी को पूरी बात बताई कि किस तरह मुझे मारने की कोशिश की गई। यह बात जब राजा को पता चली तो राजा ने सातों रानियों को फांसी देने का हुक्म दे दिया। वह बालक, गोलू, बड़ा हो कर एक न्याय प्रिय राजा बना।
कालांतर में वह गोलू देवता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोलू देवता को गौर भैरव (शिव) का अवतार माना जाता है और पूरे क्षेत्र में उनकी पूजा की जाती है। उन्हें भक्तों द्वारा अत्यधिक विश्वास के साथ न्याय के प्रदाता के रूप में पूजा जाता है।
By: Kamlesh Manchanda
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