सोशल मीडिया : अभिशाप या वरदान

By: krishna choudhary

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सोशल social media
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सम्प्रेषण मनुष्य की नैसर्गिक आवश्यकता है. मनुष्य अपनी विविध मनोभावों, अनुभूतियों की अभिव्यक्ति, प्राकृतिक अथवा प्राकृतिक उपादानों के साथ प्रतिदिन संचार के विभिन्न माध्यम यथा- वाचिक, श्रव्य, लिखित, संकेत आदि रूपों में करता है. मानव इतिहास के पिछले चालीस हजार वर्षों में घटी तमाम मुख्य क्रांतियों का उत्स, संचार अथवा सम्प्रेषण की त्वरित व प्रभावी विधि का खोज करना रहा है. आग की खोज को अपवाद के रूप में रखा जा सकता है.  किन्तु, इसने भी मानव द्वारा अविष्कृत परोक्ष संचार- यंत्र के रूप में ही कार्य किया. अर्थात् आग की उपस्थिति तद्जन्य क्षेत्र में मानव की दैहिक उपस्थिति का स्पष्ट संदेश मनुष्य एवं मनुष्येतर प्राणियों को प्रेषित करता था. विविध अनुसंधान यथा मुद्रण-यंत्र, कैमरा, सिनेमेटोग्राफी ने मानव अभिव्यक्ति को वाचिक, लिखित दौर से आगे बढ़ाकर मुद्रित, चित्रात्मक व दृश्यात्मक स्तर तक पहुंचाया. फलस्वरूप, संवाद जो अभी तक देश, भाषा, काल की सीमा अवरोध से व्यैक्तिक स्तर पर सीमित था, अब व्यक्ति से समूह स्तर पर शीघ्रता से फ़ैल गया. कंप्यूटर व इंटरनेट 21वीं सदी की सबसे महान क्रांति कही जा सकती है. कारण कि मानवता को जिस तीव्रता, व्यापकता व गहनता से इसने प्रभावित किया है किसी अन्य क्रांति ने नही. इसने सूचना क्रांति को जन्म दिया. सूचनाओं का यथार्थ समय में उद्गम बिंदु से इच्छित बिंदु तक सहज व त्वरित संचार ने अकल्पनीय व युगीन परिवर्तन को जन्म दिया है. इसने वैश्वीकरण के विश्वग्राम की अवधारणा को वास्तविक रूप में चरितार्थ किया है. सोशल मीडिया इसी सूचना क्रांति का उन्नत  व प्रसंस्कृत रूप है. अपने जन्मकाल से वर्तमान तक की यात्रा में इसने जो प्रतिमान स्थापित किया है, मानव मन- मस्तिष्क पर जो अमिट प्रभाव छोड़ा है उसे शब्दों में अक्षरशः कैद करना असंभव नही तो दुष्कर अवश्य है.

सोशल मीडिया: अवधारणा

सोशल मीडिया एक इलेक्ट्रोनिक प्लेटफॉर्म है जहाँ व्यक्ति सूचनाओं, भावनाओं, कौशल, ज्ञान आदि की अभिव्यक्ति शब्द चित्र, वीडियो आदि माध्यम से अन्य व्यक्तियों तक तत्समय पहुचाने में समर्थ होता है .फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स, यु-ट्यूब, इन्स्टाग्राम, रेडिट, टेलीग्राम आदि प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं.

इन प्लेटफॉर्म  पर कोई भी व्यक्ति कंप्यूटर, स्मार्ट टी.वी, मोबाइल फोन आदि उपकरण जिसमें इंटरनेट की उपलब्धता हो से कहीं भी किसी भी समय जुड़ सकता है तथा सम्प्रेषण कार्य में सक्रिय भाग ले सकता है. इन प्लेटफॉर्म  की प्रभावशीलता व लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल फेसबुक पर प्रतिदिन सक्रिय उपयोगकर्ताओं की संख्या लगभग 2.7 अरब है. वहीं यु-ट्यूब इन्स्टाग्राम , एक्स आदि  भी प्रतिदिन लगभग एक अरब उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है.

बढते सोशल मीडिया के प्रयोग ने मानव-जीवन, मानव- व्यवहार, मानवीय मानसिक-शारीरिक-स्वास्थ्य को व्यापक रूप से प्रभावित किया है. यह प्रभाव सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों है. अतः, विशेषज्ञ इस उपयोगी मीडिया के विवेकपूर्ण व मर्यादित उपयोग पर बल देते हैं. जो कि यथार्थसम्मत प्रतीत होता है. अधोलिखित विवेचन से सोशल मीडिया के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव को समझा जा सकता है.

शैक्षिक विकास का सशक्त माध्यम:

सोशल मीडिया ने शिक्षा जगत् में क्रांतिकारी बदलाव किया है. 4जी के प्रादुर्भाव ने डाटा डाउनलोड व अपलोड की गति को तीव्रतर बनाया है. फलतः, सोशल मीडिया के जरिये  शैक्षणिक गतिविधियों यथा ऑनलाइन क्लासेस, पाठ्यक्रमों की रेकॉर्डेड वीडियो आदि  के माध्यम से छात्रों व जिज्ञासुओं तक पहुँचना  सुलभ हो गया है. विषय विशेष पर सामग्री की बहुतायत उपलब्धता है. इसके अतरिक्त संदेह परिहार हेतु पर्याप्त वीडियो सामग्रियाँ उपलब्ध है. अतः छात्रों के पास विविध विकिल्प मौजूद है कि वे अपनी रुचि के अनुसार वांछित विषयों/बिंदुओं पर अपना ज्ञान पुख्ता करे.

कोविड-19 आहरित लोकडाउन अवधि में जब ऑफलाइन कक्षायें निलंबित थी ऑनलाइन कक्षायें तथा युट्यूब, फेसबूक पर अपलोडेड विभिन्न विशेषज्ञों/शिक्षकों के रेकॉर्डेड विडियो ने जिज्ञासु छात्रों को बृहत् लाभ पहुंचाया तथा उन्हें संभावित शैक्षणिक सत्र -हानि की आशंका से काफी हद तक उबारा. अकादमिक/प्रतियोगितात्मक/शोधार्थी/जिज्ञासु समेत विभिन्न क्षेत्रों के छात्रों हेतु सोशल मीडिया पर प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध है जो कि बहुधा निःशुल्क है अथवा नाममात्र के मूल्य पर उपलब्ध है. अतः, इनके उपयोग से इच्छुक वर्ग दवारा वांछित लाभ उठाया जा सकता है. भारत जैसे देश जहाँ साक्षरता दर   74% है, शत-प्रतिशत शाक्षरता दर का लक्ष्य हासिल  करने में सोशल मीडिया बृहत् भूमिका निभा सकता है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सशक्त माध्यम

सोशल मीडिया ने प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता दी है जो कि मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार है. इस मंच का उपयोग कर व्यक्ति अपनी विशेष कौशल/ज्ञान, कलात्मक अभिव्यक्ति के बल पर अकल्पनीय प्रसिद्धि और पैसा दोनों कमा सकता है. आज लाखों प्रतिभावान व्यक्ति युट्यूबर के रूप में विभिन्न विधाओं का वीडियो अपलोड कर प्रतिमाह लाखों रूपये अर्जित कर रहें हैं. यह संभावना अन्य परम्परागत माध्यमों में संभव नही थी. उदाहरणार्थ नवोदित प्रतिभाओं द्वारा प्रकाशन क्षेत्र, सिने क्षेत्र, रेडियो, टेलीविजन, चैनलों इत्यादि पर यह अक्सर आरोप लगाया जाता था कि यह आम व उभरती प्रतिभाओं को मौक़ा प्रदान करने में अनावश्यक कोताही व हिचक प्रदर्शित करती है. सोशल मीडिया ने इस मिथक को तोड़ा है. इसने आम जनता को शक्ति का उद्गम जान उसके लिए संभावनाओं के समस्त द्वार सहर्ष खोल उदारवादी व व्यापक दृष्टिकोण का परिचय दिया है.

लोकतंत्रात्मक स्वरूप:

सोशल मीडिया का स्वरूप सर्व समावेशी व लोकतंत्रात्मक है. इन प्लेटफार्मों पर सभी आयु-वर्ग के व्यक्ति शामिल हो सकते हैं. देश, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, शिक्षा, लिंग, भाषा आदि का कृत्रिम अवरोध इन मंचों पर नही है. यही कारण है कि विविध राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक घटनाओं से संबंधित खबर या सूचनाएं चाहे विश्व के किसी कोने में घटित हो इन प्लेटफोर्मों पर प्रेषित होकर तत्समय उपयोगकर्ताओं तक पहुँच जाती है. इस प्रकार जन-सक्रियता तथा त्वरित लोक प्रतिक्रिया ने विभिन्न घटनाओं पर राज्य के संबंधित जवाबदेह  अभिकरणों का सहज ध्यान खींच आवश्यक कार्यवाही हेतु  बाध्य किया  है. ‘#मी टू’ तथा ‘#ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसे आंदोलन सोशल मीडिया के माध्यम से ही वैश्विक आवाज बनकर उभरा व संबंधित सरकार को आवश्यक कार्यवाही हेतु बाध्य होना पड़ा.

विभिन्न आपदाओं यथा बाढ़, आगजनी, रेल दुर्घटनाओं आदि के समय पीड़ित व सहायता आकांक्षी द्वारा सोशल मीडिया पर किया गया एक पोस्ट निर्णायक प्रभाव दिखाते हुए उसे प्राणघातक संकट से उबारने  में समय-समय पर अहम भूमिका अदा की है.

रूस-युक्रेन युद्ध, इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के समय अप्रवासी भारतीय छात्रों के सोशल मीडिया से किये गए अपील का यह प्रभाव पड़ा कि भारत सरकार ने विशेष ऑपरेशन चलाकर यहाँ फंसे अपने अप्रवासी नागरिकों को सफलतापूर्वक व सकुशल स्वदेश वापसी को चरितार्थ कर मिसाल पेश की.

लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय इकाइयों के चुनावों में सोशल मीडिया का व्यापक प्रयोग देखने को मिलता है. इस माध्यम की प्रभावशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया के कुशल व प्रभावी उपयोग में अग्रता हासिल करने वाले दल चुनावों में निर्णायक बढ़त ले जाते हैं. इस प्रकार सोशल मीडिया ने लोकतंत्रात्मक व समावेशी सामाजिक संरचना को पल्लवित, पुष्पित, सिंचित व पोषित करने में अहम  भूमिका का निर्वहन किया है.

सम्प्रेषण की असीम संभावना:

सोशल मीडिया मानवीय सम्प्रेषण की परम्परागत क्षेत्र लिखित, मुद्रित, वाचिक, शैली से पृथक् एक नया आयाम दिया है. विभिन्न इमोजी, कार्टून, मीम्स, के जरिये सम्प्रेषण शैली प्रभावी व अनूठी हुई है. इसमें हर क्षण नवाचार की संभावना बनी रहती है. अतः सम्प्रेषण की पारंपरिक आयामों का युक्तियुक्त विस्तार हुआ है. साथ ही इसने व्यक्ति से व्यक्ति संबंध को आभासी दुनियाँ में बृहत् रूप में जोड़ा है. इस माध्यम के उपयोग से अन्तराष्ट्रीय संबंध सहजता से स्थापित किये जा सकते हैं जो कि परम्परागत माध्यम में सम्भव नही था. व्यापक, त्वरित रूप से मानवीय संबंध स्थापित करने की अपनी विराट क्षमता की वजह से इस माध्यम ने ‘क्राउड-फंडिंग’ कर आपदा ग्रस्त यथा बीमारी अथवा अन्य राष्ट्रों में सजायाफ्ता व्यक्ति जो ‘ब्लडमनी’ भुगतान  जैसे कठोर विकल्प का चयन कर प्राण संकट से उबर सकते हैं को इस माध्यम से व्यापक सहारा मिला है. हाल ही में केरल के कोझिकोड निवासी अब्दुल रहीम के प्रकरण में 34 करोड़ रूपये क्राउड-फंडिंग के जरिये जुटाया गया तथा  ब्लडमनी के रूप में भुगतान कर सजायाफ्ता अब्दुल रहीम की सउदी अरब से सकुशल घर वापसी सुनिश्चित हो सकी.

व्यापक जन संपर्क सरोकार की वजह से यह विभिन्न पेशेवरों, कलाकारों, उद्यमियों, एवं व्यवसायियों हेतु  उनके व्यवसाय/ पेशा के विस्तार एवं प्रचार-प्रसार का भी उपयोगी माध्यम बना है.

राज्य की संप्रभुता पर युक्तियुक्त अंकुश:

सोशल मीडिया ने लोक शक्ति को सशक्त किया है. अब राज्य अपनी संप्रभुता की आड़ में लोक-अप्रिय नीतियों, योजनाओं, कराधानों को ब्लात् जनता पर आरोपित नही कर सकती. बजट 2024 में वित्त विधेयक में पूंजीगत लाभ पर बिना सूचकांक लाभ दिए कर गणना किये जाने तथा परिणामी आय पर 12.5 % कर भुगतान के प्रताव का सोशल मीडिया पर कड़ी आपत्ति विशेषज्ञों समेत जनता द्वारा दर्ज की गई. फलतः वित्तमंत्री को सफाई पेश करनी पड़ी तथा लोक आकांक्षा के अनुरूप 01.07.2024  से पूर्व पूंजीगत संव्यवहार को उक्त कर प्रणाली की प्रभाव क्षेत्र से मुक्त रखने का संशोधित प्रावधान  पेश करना पड़ा. हाल ही में यु. पी.एस. सी. द्वारा लेटरल एंट्री के जरिये विज्ञापित 45 पदों पर आरक्षण का प्रावधान न होने का तथ्य सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ. जिसे विपक्ष ने भी उठाया फलतः सरकार को विज्ञापन निरस्त करने की कार्यवाही करनी पड़ी. इस प्रकार हम देखते हैं कि जन-जागरूकता तथा  घटनाओं के लीपापोती के बजाय त्वरित पर्दाफाश की प्रवृत्ति ने आम नागरिकों को सोशल मीडिया के रूप में सशक्त वैकल्पिक मंच दिया है; फलतः, इसने राज्य व इसके कार्यकारी अभिकरणों के स्वेच्छाचारी व गैर जवाबदेह प्रवृत्ति पर काफी हद तक अंकुश लगाने का काम किया है.

तकनीकी जागरूकता:

विज्ञान के हजारों वर्षों की प्रगति की सबसे बड़ी विडंबना रही है कि इसके व्यावहारिक ज्ञान के लाभ से आमजन उपेक्षित रहा है. यद्यपि यह परोक्ष व अपरोक्ष रूप से आम जन द्वारा उपयोग में लाया जाता रहा है. सोशल मीडिया ने इस वैज्ञानिक चेतना को हर आयु वर्ग में स्पंदित व प्रज्जवलित किया है. चूँकि अपने ज्ञान, कौशल, हुनर व कलात्मक प्रदर्शन के बूते किसी भी वय का व्यक्ति उक्त माध्यम का प्रयोग कर दौलत व शोहरत हासिल कर सकता है; यही कारण है कि  तकनीकी चेतना का व्यक्ति में उल्लेखनीय विकास हुआ है. प्रत्यक्ष लाभ व प्रसिद्धि की आशा में हर व्यक्ति अपने कौशल, ज्ञान व तकनीकी चेतना को विकसित करने में गंभीरता से प्रयासरत है.

रोजगार का सुअवसर

सोशल मीडिया ने रोजगार के अभिनव व गैर परम्परागत अवसर सृजित किये हैं. ब्लॉगर, कंटेंट राइटर, वीडियो कंटेंट क्रियेटर, टेलिमार्केटिंग आदि के जरिये इसने बहुआयामी रोजगार के अवसर सृजित किये हैं. विशेषकर स्वरोजगार को बल मिला है. कार्यावधि का लचीलापन, घर बैठे कार्य करने की छूट, विशेष शैक्षणिक योग्यता के अभाव में भी मनोवांक्षित कार्य कर सकने की संभावना ने सोशल मीडिया को लोकप्रिय रोजगार का विकल्प प्रदान किया है.

नकारात्मक पक्ष:

सोशल मीडिया पर सूचना सम्प्रेषण पर निगरानी हेतु किसी सक्षम नियामक निकाय/निगरानी तंत्र का अभाव है.  परिणामस्वरूप, इस पर प्रेषित सूचनायें अक्सर भ्रामक, असत्य, व दुष्प्रेरण से प्रभावित होती है. सूचनाओं में वस्तुनिष्ठता के अभाव के साथ-साथ व्यक्तिगत पूर्वाग्रह का अवांछित समावेश पाया जाना आम  है. विभिन्न निष्पक्ष जाँच में  सोशल मीडिया पर प्रेषित वीडियो को प्रायोजित, असत्य व भ्रामक पाया गया है. ये असत्य सूचनाएं अपने मूल स्वरूप में पहचाने जाने से पूर्व अपूर्णनीय व्यक्तिगत/सामाजिक क्षति पंहुचा चुकी होती है. अतः सोशल मीडिया पर प्रेषित सूचनाओं की विश्वनीयता कायम करने के लिए इसे नियामक नियम के दायरे में लाये जाने की जरुरत है

राज्य की संप्रभुता को चुनौती

सोशल मीडिया भ्रम, अफवाह, झूठ, प्रपंच,आदि फ़ैलाने में आग में घी की तरह काम करता है. हाल ही में बंग्लादेश में हुए तख्तापलट के पीछे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का बहुत बड़ा हाथ था. बंद पड़ता आंदोलन इंटरनेट पर पाबंदी हटाने के उपरान्त फिर से भड़क उठा और अविश्सनीय दुष्परिणाम देकर  ही शांत हुआ. मणिपुर हिंसा, कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा  स्थानीय नागरिकों को भड़काकर उपद्रव करवाना आदि  सोशल मीडिया के दुष्प्रयोग के चंद उदहारण हैं. यहाँ तक कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान व तुर्की से फर्जी अकाउंट बनाकर जिस तरह से सत्तारूढ़ दाल के विरुद्ध सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया वह इस प्लेटफॉर्म  के जरिये राष्ट्र की संप्रभुता पर परोक्ष हमला व आंतरिक मामलों में अवैध व अवांछित हस्तक्षेप का ज्वलंत उदहारण कहा जा सकता है.

मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल

विभिन्न वैज्ञानिक अध्यनों के यह सिद्ध हो चुका है कि सोशल मीडिया बच्चों, किशोरों, नौजवानों के मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है. सोशल मीडिया के अतिशय  प्रयोग से प्रयोगकर्ताओं में इसकी लत पड़ जाती है. साथ ही पसंदीदा वीडियो/चित्रात्मक कंटेंट देखते रहने की आदत की वजह से उनके अग्रमष्तिष्क में न्यूरॉन का विशेष पथ सृजित होता है. चूँकि यह नवसृजित पाथवे लगातार सक्रिय रहता है, अतः रक्त का प्रवाह मष्तिष्क केवल नवसृजित न्यूरोपाथवे की ओर ही करता है. फलत:, अन्य न्यूरो पाथवे जो कि विविध ज्ञान, कौशल, रचनात्मकता से संबंधित होती है आवश्यक रक्त प्रवाह व उत्तेजन के अभाव में  धीरे-धीरे निष्क्रिय पड़ जाती है और मस्तिष्क की क्षमता का क्रमिक ह्रास होने लगता है.

शोध में यह पाया गया है कि किशोरों/नौजवानों द्वारा इस मीडिया पर अत्यधिक समय बिताये जाने के कारण उनके द्वारा बाह्य क्रियाकलापों में प्रत्यक्ष कमी आ जाती है. बाह्य शारीरिक गतिविधियों यथा व्यायाम/खेल-कूद इत्यादि के अभाव में उनका शारिक व मानसिक स्वास्थ्य ऋणात्मक रूप से प्रभावित होता है.

   सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग ने मानव मस्तिष्क के ध्यान सकेन्द्रण क्षमता को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है. मनपसंद सूचनाओं की बहुलता,  व्यक्ति में व्यग्रता पैदा करती है कि वह शीघ्रातिशीघ्र प्रत्येक को देखे. चूँकि कंटेंट देखना एक समय साध्य प्रक्रिया  है, अतः तेजी से प्रत्येक को देखने की चेष्टा से व्यक्ति की ध्यान संकेन्द्रण क्षमता घटती है तथा द्वन्द, अनिर्णय, अधैर्य व असंतोष का भाव बढ़ता है.

वीडियो/चित्रात्मक कंटेंट हमारी दृश्य-श्रवण इन्द्रियों के साथ- साथ मस्तिष्क को भी उत्तेजित करती है, फलतः आनंददायी हार्मोन डोपामाइन स्रावित होता है जो आनंद उत्स की लत पैदा करती है और बार-बार संबंधित व्यक्ति को  समकक्ष कंटेंट देखने की प्रगाढ़ लिप्सा पैदा करती है. परिणास्वरूप, व्यक्ति  सोशल मीडिया के निरंतर उपयोग में संलग्न रहता है और ‘डोपामाइन असंतुलन’ का शिकार होकर मानसिक रुग्णता को न्योता देता है. ‘डोपामाइन असंतुलन’ की स्थिति स्कूली छात्रों के लिए अत्यंत हानिकारक है कारण कि पाठ्यक्रम की पुस्तकें तकनीकी विषयों को वहन करती है जो बहुधा सुरुचिपूर्ण, सहज व बोधगम्य नही होता बल्कि रूचि जाग्रत कर ध्यानस्थ मन से निरंतर अध्ययन व अभ्यास की मांग करता है. अतः, भविष्य कल्याणकारी होने के उपरान्त भी यह कार्य छात्रों को उबाऊ व अरुचिपूर्ण लगता है, जबकि भविष्य के लिए घातक होने के उपरान्त भी सोशल मीडिया पे बने रहना उन्हें आनंददायक व उत्तेजक लगता है. विशेषकर होनहार आयु-वर्ग के लिए इसके प्रयोग में आत्म-अनुशासन व विवेकपूर्ण स्व-नियंत्रण पर बल दिए जाने की आवश्यकता है.

सोशल मीडिया का मानसिक स्वास्थ्य पर असर इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि पेरिस ओलंपिक में 3000 मी. के स्टेपल चेस फाइनलिस्ट अविनाश साबले ने फैन्स से अपील की थी कि वे बेवजह खिलाड़ियों की आलोचना से बाज आये क्योंकि इससे खिलाड़ियों का  आत्मविश्वास व समेकित मानसिक स्वास्थ्य  प्रभावित होता है. असल में मानवीय स्वभाव सकारात्मक लोक-प्रतिक्रिया के प्रति उत्सुक होता है. अतः मनोनुकूल व प्रतिकूल लोक-प्रतिक्रियाएं उनके मानसिक व भावनात्मक संतुलन को प्रभावित करती है. यही कारण है कि ओलंपिक अथवा महत्वपूर्ण खेल प्रतियोगिताओं के दौरान प्रमुख खिलाड़ी योजनाबद्ध रूप से सोशल मीडिया से दूरी बनाये रखते हैं

मानव व्यवहार  में परिवर्तन

मनुष्य एक व्यवहारिक प्राणी है. सम्प्रेषण व्यवहार उसके भावनात्मक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है. यही कारण है कि व्यक्ति के जीवन मे संपर्क व संवाद की अहमियत हमेशा बनी रहती है. सोशल मीडिया ने व्यक्ति के व्यव्हार करने की प्रक्रिया, उसके मनोसंवेग व स्वतः-स्फूर्त प्रतिक्रिया को भी गहनता से प्रभावित किया है. सामूहिक समारोह-स्थल, ट्रेन, वायुयान, पार्टी, लोक-बैठकों में भी अब व्यक्तिगत विचार-विनिमय में संलग्नता व अभिरुचि कम देखी जाती है. व्यक्ति, व्यक्ति से संवाद करने के बजाय मोबाइल उपकरण के प्रयोग बहुधा विविध सोशल मीडिया सर्फिंग में व्यस्त पाया जाता है. इसे स्वस्थ मानवीय व्यव्हार नही कहा जा सकता. आकस्मिक दुर्घटनाओं:- यथा अपघात, अग्निकांड, इत्यादि के समय जहाँ व्यक्ति के त्वरित हस्तक्षेप से पीड़ित की जान बच सकती थी  देखा गया है हस्तक्षेप के बजाय संबंधित व्यक्ति वीडियो बनाने में मशगूल रहा. नतीजतन ,वह दुर्घटना जिसे जरा सी मुस्तैदी से टाला जा सकता था घटित होकर  रही. अतः सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग स्वस्थ सामाजिक, पारिवारिक व व्यक्तिगत संव्यवहार के सर्वथा प्रतिकूल है जिस पर युक्तियुक्त अंकुश लगाने की नितांत आवश्यकता है.

छल, धोखाधड़ी व स्कैम का केंद्र:

सोशल मीडिया अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों के छल, धोखाधड़ी स्कैम करने का एक खुला मंच साबित हुआ है. प्रभावी लोकप्रिय व्यक्तियों के निजी अकाउंट हैक कर संबंधित व्यक्तियों से पैसे की मांग करना, आयकर रिफंड, सरकारी सब्सिडी दिलाने का असत्य व विरूपित मेल भेजकर प्राप्तकर्ता का बैंक खाता हैक कर धन निकासी जैसे घृणित अपराध धड़ल्ले से बढ़ा है.

निष्कर्ष:

प्रत्येक तकनीक का धनात्मक व ऋणात्मक पक्ष होता है. सोशल मीडिया भी इस द्वैत नियम से अछूता नही है. निश्चित ही आज के युग में सोशल मीडिया के बिना जिंदगी की परिकल्पना बेमानी है. इसकी उपादेयता जीवन के हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष देखी जा सकती है . हमें इसके सकारात्मक उपयोग पर बल देना चाहिए. ऋणात्मकता को कम करने के लिए आत्म-नियंत्रण, अनुशासन, समयपालन, अनावश्यकता की स्थिति में प्रयोग से परहेज, निजी जवाबदेही तय किया जाना, निजता को सुरक्षित रखने की प्रतिबद्धता तथा प्रभावी निगरानी तंत्र की स्थापना जैसे उपायों के जरिये इसके संभावित लाभ को महत्तम किया जा सकता है.

By: krishna choudhary

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