कन्धा

राजीव कुमार

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रामप्रवेश जी को आज कन्धे में थोड़ी ऐंठन महसूस हुई ऐसा तो पहले भी कई बार हुआ था मगर आज नसें एक दुसरे पर चढ़ी हुई प्रतीत हो रही थी। थोड़ी देर तो खुद ही अपने कन्धे पर उंगलियों से मालिश करते रहे फिर बाद में उन्होंने आवाज लगाई और कहा ** उमेश की माँ सूबह से ही कन्धा में जकड़न है] जरा सरसों तेल की मालिश करना तो। **

उनकी पत्नी छाया ने मालिश करते हुए कहा ** आपको तो आदत है अपने हाथ में सिर रख कर सोने का] कोई नस दब गया होगा। आज कन्धा पर हल मत रखिएगा] कुदाल भी मत चलाइएगा। **

** तो काम कौन करेगा ** रामप्रवेश जी ने फींकी हँसी हँसते हुए पुछा।

रामप्रवेश जी गाँव के चौपाल पर बैठे हुए थेA चार-पाँच लोगों के साथ ताश खेलने का आनन्द उठा रहे थे। उनमें बैठे मनोहार लाल जी ने रामप्रवेश जी से कहा ** देखो न कैसा जमाना आ गया है] कजरी गाँव के बुधन भगत का दो लड़का ** एक लड़का जो बाहर में है ] वो अपने बाप की अर्थी को कान्धा देने भी नहीं आया। बहूत दुःख हुआ सुन कर । घोर कलियुग है] चलो इस मामले में मेरा भाग्य बहूत अच्छा रहने वाला है] एक बेटा भले ही बाहर में है] मगर दो बेटे तो मेरे साथ ही है। दोनों बेटे और दो लोग मेरी अर्थी को कन्धा जरूर दे देंगे] हमको मुक्तिधाम तक जरूर  पहूँचा देंगे। **

चेहरे पर कोई शिकन तो नहीं आयी] मगर ये बात रामप्रवेश जी को अन्दर तक कचोट गयी। उंगलियाँ ताश के पत्तs बाँटने और फेंकने में व्यस्त थी मगर रह रह कर मन चिन्ता में डुबा जा रहा था] यह सोचकर कि मेरा तो एक ही लड़का है] वो भी कहीं ऐसा ही करे तो। रामप्रवेश जी के मन में बौखलाहट उत्पन्न हुई] और वो अचानक ही उठ खड़े हुए। अपनी पत्नी के द्वारा समझाए-बुझाए जाने पर ही उनकी बौखलाहट कम हो पायी।

हर बार की तरह इस बार भी उमेश घर आया तो कपडे और खाने-पीने का सामान ले कर आया। रामप्रवेश जी और उनकी पत्नी बहुत खुश हुए। इधर-उधर की ढेर सारी बातें करने के बाद रामप्रवेश जी ने अपने बेटे से कहा ** बचपन में तुमको अपने कन्धे पर बहूत घुमाया है] एक दिन तु भी कन्धा देना बेटा। ** इस बात पर उमेश थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ तो उसके चेहरे की दशा को भाँपकर उनकी पत्नी ने कहा ** जाने भी दीजिए, कैसी बात लेकर बैठ गए आप \ ** उमेश के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली ** मैं माँ हूँ इसकी] पुरा भरोषा है कि मेरा बेटा अपने कर्त्तव्य से कभी पीछे नहीं हटेगा] है न बेटा\ **

रामप्रवेश जी छह महीनों से डाकघर के चक्कर लगा रहे हैं। उम्मीद से जाते हैं और उदास लौट आते हैं। डाकिया भी झुंझला कर कह उठा ** आपके बेटे ने न तो रूपया ही भेजा है और न तो कोई चिट्ठी ही। मैं रख के क्या करूंगा \ **

घर आकर रामप्रवेश जी ने डाकिया के झुंझलाहट को अपनी पत्नी छाया पर उतारते हुए कहा ** मैं न कहता था कि उमेश का विवाह करवा दो, अच्छा रिश्ता का जिक्र भी किया] मगर तुम अपने ही बात में अड़ी रही। कहती रही और कमाने दो। अब देखा रूपया भेजना तो दुर] चिट्ठी भी नहीं भेज रहा है। अभी से ही मर रहे हैं] देखना हमारी अर्थी को कन्धा देने भी नहीं आएगा। **

रामप्रवेश जी की पत्नी रोना-धोना लेकर बैठ गई। रामप्रवेश जी का मन व्यर्थ विचरण करने लगा। अपने बेटे को कन्धा पर बिठाकर पुरा गाँव घुमाने तक की स्मृति उभर आयी] कजरी गाँव के बुधन भगत की दशा-दुर्दशा मानस पटल पर तैरने लगी। आशंकाओं से मन इतना घिर गया कि मनोहर लाल जी के द्वारा अपने भाग्य को अच्छा कहने वाली बात] दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होने लगी। डाकिया से बहसबाजी करने वाले रामप्रवेश जी] रूपया तो क्या उसके हाल-चाल की खबर के लिए भी तरस गए।

हर दिन उदासी से गुजर रहा था कि अचानक मन में कुठाराघात हुआ। मन क्षीण-विदीर्ण हो गया, कन्धा देने के नाम पर जिस बेटे को कोसते रहे। उसी बेटे का मृत शरीर सामने पड़ा है। बेहोश पत्नी को होश में लाने के बाद रामप्रवेश जी फफक कर रो पड़े। अपने  बेटे की अर्थी को कन्धा में उठाने के बाद] रामप्रवेश जी के कदम एक ही जगह पे जम गए] साँसों की गति असामान्य हो गयी] शरीर एकदम बेजान सा लगने लगा। रामप्रवेश जी को एहसास हो आया कि मैं खुद मर चुका हूँ और अपने उमेश के कन्धे पे पड़ा हूँ।

समाप्त

नामः- राजीव कुमार, बोकारो स्टील सिटी

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