अचनाकमार वन्यजीव अभ्यारण्य, बिलासपुर

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मेरे इलाके में सबसे अच्छा पर्यटक स्थल अचनाकमार वन्यजीव अभ्यारण्य है , जो कि मेरे शहर बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से 55 किमी की दूरी पर है , जो कि 555 किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है । यह एक प्राचीन प्रमुख वन्य पर्यटन केंद्र है। यह क्षेत्र अपने हरे भरे वन्य क्षेत्रों और बाघों के लिए प्रसिद्ध है , जिनके पास प्रमुख आदिवासी जनजातियां गोंड , बैगा बसती है। अचानकमार वन्य जीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ की वास्तविक संस्कृति आदिवासी जनजाति के अस्तित्व को दर्शाती है ।
यह मध्य्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है, जिसमें सतपुड़ा पर्वत के घने जंगल भी शामिल है , इस क्षेत्र में लगभग 26 बाघ होने की जानकारी है। इन जंगलों से नर्मदा , सोन और जोहिला की नदियां निकलती है । इस अभ्यारण को वन्य जीव संरक्षण नियम के तहत फरवरी 2009 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया गया है। वन्यजीवो की सुरक्षा के लिए इस जंगल के अंदर कई फॉरेस्ट रेंज की स्थापना भी की गई है , जिससे कोई भी बाहरी इंसान वन्यजीवो को या वन्य सम्पत्ति को कोई नुकसान ना पहुंचा सके ।
ऐसा माना जाता है कि पुराने जमाने में एक बाघ के अचानक हमले से एक ब्रिटिश व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी , जिसके कारण यह बाघों के अचानक करने के कारण इसका नाम अचानकमार पड़ा। यह जंगल अपने ऊंचे ऊंचे शाल , शीशम , महुआ और बांस के पेड़ों के लिए प्रसिद्ध है। वसंत के मौसम में इन जंगलों की अपनी एक अलग ही सुंदरता होती है। पेड़ फूलों से लदे होते है और अपनी सुंदर छटा बिखेरते नजर आते है । इस मौसम में महुआ का वृक्ष भी फूल देने लगता है जिसे स्थानीय लोग इकठ्ठा करते है , जिससे लोग देसी दावा दारू भी बनाते है ।
इस वन्य क्षेत्र के अन्तर्गत सांभर , हिरण , नीलगाय , जंगली सूअर , जंगली बिल्ली , कई तरह के सांप , उड़ने वाली गिलहरी , चीतल , चिंकारा , जैसे जीव पाए जाते है । यह प्रवासी पक्षियों का भी घर है कई प्रवासी पक्षी साल में यहां आते है । इन्हीं जीवो की सुरक्षा के लिए सरकार ने आदिवासी ग्रामीण लोगो के छोड़ अन्य लोगों को इस जंगल के अन्दर बिना पहचान पत्र दिखाए जाना वर्जित है । जंगल में कई प्रवेश बिन्दुओं को पर कर के ही मुख्य क्षेत्र तक पहुंचा जा सकता है ।
पर्यटकों के लिए यहां कई विश्राम गृह व रिजॉर्ट की उपलब्धता है , इनमें मुख्य ग्रीन वैली रिजॉर्ट विख्यात है । अभ्यारण के अंदर विभिन्न वॉच टावरों का भी निर्माण किया गया है जिससे पर्यटक प्राकृतिक आवास में ही रहकर जंगली जानवरों को स्पष्ट रूप से घूमते देख सकते है । यहां पर्यटकों को अकेले घूमने निषेध है जिनका कारण पर्यटकों को जान माल की हानि से बचाना है , इसलिए पर्यटकों के साथ वन विभाग का कोई न कोई आदमी होता ही है । क्योंकि वन में अंदर पर्यटकों के खो जाने का भी डर रहता है । जंगल की सैर करने के लिए पर्यटक अपने वाहन का भी उपयोग कर सकते है । पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जगह जगह चेक पोस्ट का भी निर्माण किया गया है । इस क्षेत्र के लामनी गांव के पास एक हर्बल कृषि केंद्र की स्थापना की गई है ।
इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है , गर्मी ज्यादा पड़ती है और ठंडी सर्दियों के साथ अर्द्ध शुष्क मानसून कि जलवायु होती है । गर्मी में इस क्षेत्र का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है । मानसून यहां जुलाई से शुरू हो जाता है और नवंबर तक रहता है । सर्दियों में हल्की बारिश ही होती रहती है । जुलाई से नवंबर तक के मौसम में बारिश के कारण यहां जाना मुश्किल भरा होता है पर नवंबर से जून तक का मौसम यहां जाने का सबसे अच्छा मौसम होता है ।
अचानकमार में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कुछ तीर्थ दर्शनीय स्थल भी आते है जैसे मलकल की पहाड़ियां , पाली गांव का शिव मंदिर और अमरकंटक यहां जाने के लिए सबसे निकतम हवाई अड्डा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में है , जो कि यहां से 172 किमी की दूरी पर स्थित है और सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बेलगहना है और उसके बाद अन्य रेलवे स्टेशन में बिलासपुर का है जहां से बस के जरिए भी अचानकमार तक पहुंचा जा सकता है । अभ्यारण्य में ब्रिटिश ज़माने के निर्मित कई कॉटेज बने हुए है जिनमे पर्यटक घूमते हुए कुछ देर विश्राम के लिए ठहर सकते है । यहां हरियाली ऊंचे ऊंचे पेड़ हर तरफ देखने को मिल जाता है , यहां की शुद्ध हवा और शांत वातावरण पर्यटकों को एक अलग ही अनुभूति प्रदान करती है ।
अभ्यारण में एक बहुत ही पुराना शाल का वृक्ष है , जो किसी जमाने में बिजली गिरने से मर गया था बाद में फिर से उसमे जीवन आ गया , यह वृक्ष 155फीट ऊंचा है । स्थानीय लोग इसकी पूजा करते है वो इस वृक्ष को बुध देव का निवास स्थल मानते है । इस वृक्ष के पास जाने के लिए लोगो को जूते तक उतरने पड़ते है । आदिवासियों के विश्वास ने उस वृक्ष को एक जीवित मंदिर बना दिया है । लोग झुककर इस वृक्ष को प्रणाम करते है यहां के आदिवासियों का पेड़ों के प्रति इस तरह की श्रद्धा और प्रेम उन्हें अन्य इंसानों से अलग बना देती है ।
आदिवासी इस जंगलों के रक्षक है । अचानकमार में वृक्षों के साथ आदिवासी जनजातियों के भी कई प्रकार देखने को मिल जाते है । और सरकार ने इन जनजाति को संरक्षण भी प्रदान की है ।अगर आप कभी यहां गए तो आपको बहुत सारी अलग अलग आदिवासी संस्कृति देखने को मिलेगी । लोग ज्यादातर यहां विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों को खुले में देखने आते है । ठंड के मौसम में यहां की वादियां उत्तराखंड से कम नहीं लगती है । यह जगह शहर के भीड़ भड़ाके से दूर एक अलग ही शांति प्रदान करती है । लोग यहां प्रकृति की खूबसूरती महसूस कर सकते है । सही मायने में यह जगह छत्तीसगढ़ का हृदय है ।

लेखक परिचिति : नूतन ध्रव , बिलासपुर

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3 COMMENTS

  1. अपनी पहली सांस लेने के पहले के नौ महीने छोड़ दिया जाए तो इंसान अपने काम इतने अच्छे ढंग से नहीं करता जितना कि एक पेड़ करता है .

    #प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है.

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