बच्चों का मासूम मन

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बहुत देर तक खिड़की से बाहर हरियाली को निहारती प्रगति, अचानक अंदर मुड़ी और कहने लगी, ‘माँ मैं अपनी गर्मियों की छुट्टियों को खेतों में जाकर किसानों की मददकरके बिताना चाहती हूँ। इससे उन्हें अच्छा लगेगा और मुझे भी संतोष मिलेगा ।’ फिर अपनी बात को जारी रखते हुए उसने कहा कि, ‘कितना अच्छा होगा अगर हम सभीऐसा करें, इससे किसानों में न सिर्फ़ उत्साह जागेगा वरन् हमारी मदद उनको कुछ राहत भी देगी। खेतों में काम करके हम सभी यह भी समझ पाएंगे कि किसान को एकफ़सल को उगाने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और हम सभी अन्न का सम्मान करना भी सीख जाएँगे। जब किसानों के साथ खेतों में जाकर हल जोतेंगेतो हमें एहसास होगा कि किसानों को एक-एक अन्न जमीन से उगाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ता है और फिर कोई भी अनाज का अपमान नहीं करेगा। शादियों में,होटलों में भी अनाज का नुकसान होना बंद होगा जिससे हर एक को संतुलित अनाज की प्राप्ति किफ़ायती दामों में होने लगेगी । इससे हम सभी न सिर्फ़ अपनी मिट्टी सेजुड़ेगे वरन अपने देश को भी करीब से जान पाएंगे।’ यह सुनकर मैं बहुत ही गर्वित महसूस कर रही थी  आज एक बार पुनः प्रगति ने अपने नाम की सार्थकता कोसिद्ध किया था 

अपनी पुत्री के मुख से इतनी गहरी समझदारी की सटीक बातें सुनकर मुझे विश्वास होने लगा कि हमारे देश का भविष्य  सिर्फ़  सुरक्षित हाथों में है बल्कि सुंदररचनात्मक हाथों में भी है जो भारत की एक नई तस्वीर बनाएँगे और हमारी संस्कृति को और भी अधिक निखारेंगे। उसी समय हमने अपने रिश्तेदारों  मित्रों को हमारेइस निर्णय से अवगत कराया आश्चर्यजनक खुशी मिली जब सभी का सकारात्मक जवाब मिला 

हमने आपस में निर्णय लिया कि साल की तीन लंबी छुट्टियों में से एक छुट्टी हर साल खेतों में किसानों का हाथ बँटाकर ही मनाएंगे 

इस तरह अब गाँव शहर की ओर नहीं वरन शहर गाँव की ओर दौड़ेगा।

लेखक परिचिति : प्रगति एन भट्टड , १२ क्लास के छात्रा

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