द्रौपदी की चीर

By: ANSHU KUMAR

0
210
द्रौपदी Krishna Mahabharata
द्रौपदी Krishna Mahabharata
4/5 - (1 vote)

द्रौपदी की चीर फिर से खिंच रही है,  

हर शहर, हर गली में चीत्कार हो रही है।  

कुरुक्षेत्र अब नहीं, पर धरा फिर भी लाल,  

अब भी मौन है सभा, अब भी मौन हैं लोग।

युग बदले, पर नियति वही,  

पंचाली की पुकार अनसुनी रही।  

किसे पुकारे अब, किससे न्याय मांगे,  

हर चेहरा यहाँ बस मुखौटा लगाए।

धृतराष्ट्र अब कई, अंधेपन का बहाना,  

सत्ता की लालसा, अब भी वही ठिकाना।  

भीष्म भी मौन हैं, विवशता में घिरे,  

शस्त्र नहीं उठता, न्याय की दुहाई में रुके।

कृष्ण कहाँ हैं अब, कौन बचाएगा चीर?  

अब तो लाज भी बिकती है, चन्द सिक्कों की जंजीर।  

दुर्योधन का हँसना अब आम हो चला,  

हर गली में शकुनि की चाल हो चला।

न्याय की ये प्रतीक्षा, कब तक सहें?  

आखिर कब तक हम यूँ मौन रहें?  

अब वक्त है जागने का, वक्त है बोलने का,  

हर द्रौपदी को अब शक्ति से तोलने का।

किसी की बहन, किसी की बेटी,  

हर स्त्री की इज्जत, हर मन का हृदय।  

अब न सहेंगी, अब न झुकेंगी,  

द्रौपदी की चीर अब न खिंचेंगी।

जो चुप रहे, वो भी दोषी हैं,  

अब कोई न रहेगा निर्दोषी।  

आवाज उठानी होगी, बदलनी होगी सोच,  

तभी रुकेगा ये अन्याय, तभी होगी सच्ची खोज।

By: ANSHU KUMAR

Write and Win: Participate in Creative writing Contest & International Essay Contest and win fabulous prizes.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here