मन – दुख और सुख का कारण
न तो यह शरीर, न आत्मा, न देवता,
न ग्रह, न कर्म और न ही काल
दुख या सुख का कारण बनते हैं।
यह दुष्ट मन ही सुख और दुख का कारण बनता है
और इस संसार को जन्म देता है।
यह भयानक मन ही विचार, तृष्णा,
अहंकार, इच्छाएँ और पसंद-नापसंद उत्पन्न करता है। फिर मनुष्य अहंकार और फल की आशा
के साथ विभिन्न कर्म करता है।
इसलिए, उसे कर्मों की प्रकृति के अनुसार
बार-बार जन्म लेना पड़ता है।
By: SIDHARTHA MISHRA
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