ओ भोले भंडारी हमारे त्रिपुरान्तकारी
क्षणभर में हरे आप कष्ट हमारी
बबूथ के निःस्वार्थ रंग में घुल जायेंगे सारे पाप हमारे
जाने में या हो अनजाने में
आपके रौद्र रूप के दर्शन से जल जायेंगे जगभर के दुष्कर्म सारे
कंठ में नाग के आलिंगन से पढ़े विष की सोच उस ही पर भारी
त्रिशूल धारी जग के स्वामी
महायोगी होकर भी हो अंतर्यामी
सबकी तृष्णा पूर्ण करे
समय आने पर बनते हैं पापों के संघारी
चंद्र देव से सर को सवारकर
नवीकरण के शक्ति का संचार कर,
गंगे की पथ को आपने अपने अँधेरे केसूओं में धरकर,
उसके पवित्रता को बढ़ाया है शंकर,
रूद्र स्वरुप भयंकर, जग के अभ्यंकर |
By: Sharmila Shankar
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