दहेज

By काजल साह

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मांगता हैं तू धन
दे देते है ,वो अपनी औलाद तुझे
फिर भी ना आई शर्म तुझे
आंखो में बेशर्मी की हाय लेकर
दिल में पैसे की आस लेकर
फिर मांग पड़ा तू दहेज।

आसान था क्या
उसने तुझे दे दी अपनी बेटी

आसान था क्या
उन्होंने अपने कलेजे
के टुकड़े को कन्यादान में
दान कर दिया।

छाती से लिपट कर सोती थी मां के गोद में
अब वो रो रही है
मां के पल्लू को खोज रही है
दिया दर्द तूने अपने दकनायनुसी सोच से उसे
मारता रहा , गिराता रहा
झुकाता रहा और
दहेज मांगता रहा।

रो रही है मां
हो रहा है दुख उस बाप को
जिसने पाई – पाई करके दे दिया तुझे
अपना धन सारा
नहीं शर्म है,अब तुझमें अब
बढ़ गई है,लालच तेरी।

मां के लाल को तू तौल रहा है
पैसे की तराजू में
तू भी  तो होगा
अपनी मां की जान
क्यों शता रहा हैै
तू अपनी दकायानुसी
सोच से ।

काजल साह

Jooble Presents Quarterly Creative Writing Competition


SOURCEकाजल साह
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