दिल्ली भाग रही

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पहुँचा दिल्ली, देखा नजारा, दिल्ली भाग रही।

मुंँह पर मास्क, हाथ मे गैजेट, कुछ सहमे, कुछ डरे, 

कुछ चिंतित और कुछ विचलित दिखे। 

कोरोना तुने क्या है खेल रचा,

तू दुनिया और दुनिया तुझे करने को है खत्म यहाँ। 

कोरोना तुने क्या है खेल रचा।

वुहान कि धरती पर जन्मा, कुछ महीने मे पला-बडा,

बिना पंख के, देश विदेश की सैर करने लगा, मित्रगण भी साथ आने लगे,

जैसे मनुष्य से हो दुश्मनी पुरानी कोई, रंजिश में दिखे सभी।

इकट्ठे होकर वार वो करने लगे, 

मैदान ए जंग मे वो एक जैसे  दिखने लगे, वार भी वही, सोच भी वही,

कुछ अंतर बस ताकत ए वार मे दिखा।

कोरोना तुने शायद अपनी माँ को था वचन दिया,

मैदान ए युध से खाली ना लोटने का वादा था किया। 

ऐ कोविड, तू रुक, तुझे अब रुकना होगा, खौफ ए मंजर को अब ढ़कना होगा। 

ये मिट्टी ए हिनदुसतां है, यहाँ फिरंगी का हुआ दाह है, 

भारत नहीं आना था तुझे, अपनी माँ को दिया वचन ना गवाना था तुझे,

भारत नहीं आना था तुझे।

इस देश से ही नहीं, पुरी दुनिया से तुझे अब जाना होगा, 

तुने जो किया उसे हमें सँभालना होगा, साथ देंगे सबका,

मनुष्यता है धर्म अपना। 

कोरोना कि चाल समझो, सब एक साथ चलो, खुद को और अपनो को साफ रखो,

कुछ महीनों की बात रही, तुम ठहरो, मै ठहरु, सब ठहरो,

कोविड से अपने ही घर में लडो़।

गर ना पहचानी इसकी चाल, तो समझो हो गया मनुष्य विहाल,

ये जंग है-विश्व जंग कोविड और इंसान मे, देशभक्त बनो कुछ महीने घर पर रहो,

जीवन मिलेगा इसी तरह वरना समाप्त है समय। 

घबराने की नहीं, सोचने की है जरूरत पडी, 

गर फैलने से इसे रोक पाये तो अपुर्णकवि कहे इससे बडी नहीं विजय जंग कोई।

कवि परिचिति :

डाॅ जितेंद्र सिंह , (अपूर्ण कवि)  ई-मेल: jitender.kuk@gmail.com

विजेता : अंतरराष्ट्रीय रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता

प्रिंसिपल एवं डीन , स्कूल आॅफ फार्मेसी ,
कैरियर पवाइंट विश्वविद्यालय ,
हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश।

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