विश्व शांति : एक चुनौती
आज समुचा विश्व असंतोष, अवसाद, पलायन और पर्यावरणीय असंतुलन की वजह से धधक रहा है वहीं युद्ध की स्थिती आग में घी का काम कर रही है।दुनिया भर में नस्लीय भेदभाव और उत्पीड़न की बढ़ती संख्या मानवता, शांति, अहिंसा और सहिष्णुता के जड़ को खोखला कर रहा है। ऐसे में सबसे जरूरी आवश्यकता है वैश्विक शांति और भाईचारे की।
हथियार निर्माण जहां एक ओर बृहत उद्योग का रूप धारण कर लिया है, वहीं दूसरी ओर यह विश्व को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया है। देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तर पर सैन्य खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पूरी दुनिया अपने सैन्य खर्च के द्वारा संहारक हथियारों को जुटाने के होड़ में लगी हुई है। जिससे हालात और भी खतरनाक हो रही है। विकसित देश अपनी सीमाओं को बढ़ाने और कमजोर देश को अपने में विलय करने में इन हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। रूस – यूक्रेन और इजरायल – फिलिस्तीन युद्ध समकालीन विश्व का ऐसा ही एक नग्न यथार्थ है।
युद्ध कभी भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं होते बल्कि वह उससे अधिक क्रूर और विनाशक होते हैं।आज विश्व शांति को सबसे ज्यादा खतरा सम्राज्यवादी, आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक सोच से है। विकसित देश अपने सैन्य साजो-सामान बेचने के लिए युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं। तो कई देशों में तेजी से बढ़ती प्रतिस्पर्धा भी तनाव की स्थिति पैदा कर रही है। ऐसे में विश्व के सभी धर्म, संप्रदाय, पंथ और आध्यात्मिक आस्था वाले समूहों में समन्वय की आवश्यकता है ताकि फिर से शांति कायम हो सके। आज संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार – प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है।
प्राचीन काल से ही भारत शांति एवं अहिंसा का पुजारी रहा है। इसकी तेजस्वी माटी ने अनेक संतपुरुषों और ऋषिमुनियों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने त्याग एवं साधनामय जीवन से दुनिया को अहिंसा एवं शांति का संदेश दिया है जिनमे गौतम बुद्ध , महात्मा गांधी के बताए मार्ग को आज भी लोग अनुसरण करते हैं। अहिंसा है स्वयं के साथ सम्पूर्ण मानवता को ऊपर उठाने में, आत्मपतन से बचने और बचाने में। शांति जीवन का सौंदर्य है, जिसकी खोज में हमारी सम्पूर्ण जिंदगी भी कम पड़ती है। यूं तो विश्व शांति का संदेश हर युग और हर दौर में दिया जाता है लेकिन आज विश्व युद्ध के संभावनाओं के बीच इसकी अधिक प्रासंगिकता है।
निष्कर्ष – आज पूरे विश्व को शांति की आवश्यकता है और इसे पाने के लिए सभी को एक – दूसरे के अस्तित्व , स्वाभिमान, अखंडता और प्रभूसत्ता का सम्मान करना होगा। एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करने के साथ समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना होगा। बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म में अहिंसा अस्तेय और अपरिग्रह को स्थान दिया गया है ,उसे नए सिरे से प्रचार प्रसार करना होगा। सभी लोग को यह समझना होगा कि शांति भरा जीवन केवल उनके स्वयं के निर्णयों पर निर्भर करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति असंभव नहीं है इसके लिए केवल एक साथ काम करने का सचेत निर्णय, घृणा, लालच और प्रतिस्पर्धा की भावना को खत्म करने के लिए ठोस प्रयास की आवश्यकता है। शांति ही एक ऐसा अजेय मार्ग है जिसपर चल कर हम विनाश की स्थिति को टाल सकते हैं।
“प्रांत शांत, देश शांत ,विश्व शांति चाहिए।
ना द्वअंद हो, ना युद्ध हो ऐसी क्रांति चाहिए।
करुणा, दया और प्रेम की भावना होनी चाहिए।
प्रांत शांत, देश शांत, विश्व शांति चाहिए।”
By: Deepa Sinha
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