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साधो! मुझे गणतंत्र दिवस की जरा भी प्रतीक्षा नही रहती. यद्यपि छात्र जीवन में बेहद उत्सुकता रहती थी. वजह था प्रभात फेरी में आगे बढ़कर नारेबाजी करना. झंडात्तोलन  समारोह के फ़ौरन बाद प्रसाद पाने की उत्कंठा बनी रहती. उस समय मिश्री के ढेले का स्वाद भी पारिजात फल से कम प्रतीत न होता था. खैर, बचपन की बात अलग थी. साधो!, अबोध और  अज्ञानता का मेघ वाकई सरस और सुखकर होता है. ज्ञान के सूर्य को ढककर आनंद की हरियाली का ऐसा आभास कराता है कि आदमी मंत्रमुग्ध हुआ उसे सच मान लेता है. साधो! जीवन यात्रा में ज्ञानबोध जेठ की दुपहरी  की तरह अरुचिकर और कष्टकारी प्रतीत होता है. किन्तु, आदमी करे क्या! झख मारकर उसे यथार्थ  के दिगंबर रूप के दर्शन करने होते हैं.

साधो! सरकारी मुलाजिमों को गणतंत्र दिवस का इन्तजार रहता है. एक अतरिक्त अवकाश जो मिलता है परिवार एवं बच्चों के बीच बैठकर समय बिताने का, वो भी जनवरी महीने में. किन्तु, मुझे गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या का इन्तजार रहता है. वजह, पद्म पुरस्कारों की घोषणा जो होती है. बहुत से लोकविश्रुत नामों को पुरस्कार की सूची में पाकर मन प्रसन्न होता है और उन श्री पद्मों की तरह पद्म पाने की उत्कट चाह अपने मन भी जगती है. साधो!, किन्तु स्वाधीन भारत में पुरस्कार सीधे-सादे निरपेक्ष व्यक्ति को सरलता से नही मिलती. जुगाड़ भिड़ाना पड़ता है, तिकड़म लगानी पड़ती है, सेल्फ ब्रांडिंग करनी पड़ती है. सत्ता और देव दोनों की कृपादृष्टि में ऊँचा उठाना पड़ता है, तब जाकर मिलता है. साधो! इनमे से एक भी कला या हुनर मुझमें नही है. अतः निकट भविष्य में क्या, कालखंड के विराट हिस्से में झाँककर  देखता हूँ तो भी सम्भावना नजर नही आती. साधो! इस पद्म को पाने के लिए कीचड़ में उतरना पड़ता है. आजानु कीचड़ में धंसना पड़ता है. जरूरत पड़ने पर मुख क्या आत्मा में भी कीचड़ का लेप लगाना पड़ता है.

साधो! फिल्म, पेंटिंग, संगीत, नृत्य आदि कला के विज्ञों के लिए इसे प्राप्त करना वैसे ही सरल है जैसे कि केन्या के धावकों के लिए मैराथन जीतना. किन्तु, साहित्य और  लोकसेवकों के लिए यह उतना ही कठिन है जैसे कि भारतीयों का मैराथन जीतना. फिर भी उम्मीद बाँधे बैठा हूँ ‘को जाने सियाराम गति’.

साधो! आजकल मुझे नींद नही आती. सपने में व्यास, श्लाका, सरस्वती, ज्ञानपीठ और पद्मश्री के सपने आते हैं. यशलिप्शा के दौरे पड़ रहे हैं. कहा भी गया है यश की भूख अन्न की भूख से 1000 गुना, धन से 100 गुना और यौवन की भूख से 10 गुना अधिक तीव्र होती है. जानता हूँ, कुत्सित संस्कार हैं पर क्या करूँ?

सशक्त उदाहरण सामने हो तो हर कोई कुछ न कुछ हथकंडा अपनाकर ही दम लेगा. साधो! अगर दो-तीन ढंग की फ़िल्में कर सैफ अली खान पद्म श्री हो सकते हैं तो 2-3 किताबें लिखने वाला साहित्यकार क्यों नही? पर ह्रदय विदारक नजीर भी है. 200 फ़िल्में कर अपनी अभिनय, हास्य, लेखन  से वाहवाही बटोरनेवाले महरूम अदाकार कादरखान आजीवन प्रतीक्षा सुची में रहे. हाँ, मरणोपरांत अवश्य यह पुरस्कार उन्हें नजर किया गया. साधो! ऐसे पुरस्कार संत्वनामूलक होते हैं सम्मानवर्धक नही.  साधो! इस देश में कुछ भी आसान नही जब तक हाथ न पा जाओ. कठिन भी नही जब तक प्रयासरत हो. साधो! इस पुरस्कार के लिए मैंने क्या-क्या न टोटके अपनाये. लेखन की मूल आत्मा को कुंठित कर लोक-साहित्य से वर्ग विशेष की संवेदना को अतिरंजित रूप से उभारा. श्रेणी-विशेष के पूर्वजों को उन तथाकथित अपराधों के लिए आलोचना की जो उन्होंने किये थे अथवा नही इस बाबत मैं खुद  भी आश्वस्त नही था. जोर-जोर से शोर मचाया कि अमुक वर्ग-विशेष पीड़ा में है. आज तक उनका उपचार नही हुआ. शासन सत्ता अक्षम. साधो! शोर को यदि साहित्य और  कला का मयूरी रंग मिल जाए तो वह ‘विन्ची’ की मोनालिसा की तरह सार्वकालिक महान रचना की प्रतिष्ठा पा जाती है. साधो! महत्वाकांक्षा की सिद्धि हेतु मैंने मिथ्या और भ्रामक मान्यताओं की स्थापना की और धृष्टतापूर्वक उसे समाज पर लादा भी. अपने इस अधम साहित्यिक/सांस्कृतिक पुरुषार्थ के लिए अब श्रेष्ठ पुरस्कार की बाट  जोह रहा हूँ. साधो! पुरस्कार की तासीर ‘प्लास्टर ऑफ पेरिस’ की तरह होती है. अपकर्म के भग्न अंग  पर लेप कर दो भाग्नांग का काया कल्प हो जाएगा. फिर ठाठ से कहो कि मेरा अमुक अंग तो कभी टूटा ही नही था.

साधो! जानता हूँ कि मेरी दलीलें आपको गले न उतरे; क्योंकि, आपके सम्मान की बात जो नही कर रहा. पर अभी कहे जाता हूँ. मृत तुलसी की माला धारण कर केवल  सूखी लकड़ी की धूनी रमा, आपने जो पर्यावरण का महान् संरक्षण किया है उसके लिए आपके नाम ‘ग्रीन पीस फाउन्डेशन का सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण मित्र’ पुरस्कार दिए जाने की मांग करता हूँ. इतना ही नही, मजबूरीवश ही सही गतवर्ष से अद्यपर्यन्त मात्र एक संध्या भोजन कर आपने अन्न की महाबचत की है. साथ ही  जलभीती अथवा जल अनुपलब्धतावश विगत 6 मास से केवल मन्त्र स्नान द्वारा देह शुद्धि कर पानी की अपार बचत की है आपने. इस दीर्घ उद्द्यम के लिए आपके नाम ‘श्रेष्ठ जल एवं अन्न संरक्षक’ पुरस्कार की मांग करता हूँ.

कृष्ण कुमार चौधरी 

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SOURCEकृष्ण कुमार चौधरी
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