राज्य के लिए नैतिकता जरूरी है या राज्य की सुरक्षा। यह प्रश्न सदियों से राजनीतिक चिंतक-वैज्ञानिकों को परेशान करते आ रहा है। इस सम्बंध में सबसे विश्वनीय विचार है आज से लगभग 1500 पूर्व दिए गए चाणक्य के “अर्थशास्त्र” पुस्तक में और मैकियावेली की पुस्तक “द प्रिंस” में। इन विचारों कि प्रासंगिकता को “क्वाड” कि पृष्टभूमि में भली-भांति समझा जा सकता है।
देखा जाए तो कहीं न कहीं वर्तमान राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों को चलाने वाली धुरी मैकियावेली के विचार हैं तो वहीं चाणक्य नीति का भी इनमें विशेष योगदान है। चाणक्य द्वारा दिए गए शत्रु का शत्रु सदैव मित्र होता है, के सिद्धांत पर ही आज लगभग सभी राष्ट्र रणनीतिक-राजनीतिक संबंध बना रहे हैं। क्वाड को भी हमें इसी आलोक में देखने की जरूरत है। क्वाड असल में 4 देशों (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) का एक अनोपचारिक समूह है जिनके समान इंटरेस्ट है, समान शत्रु, समान विचारधारा, लोकतंत्र में समान विश्वास और समान आर्थिक हित।
क्वाड की शुरुआत
कहते हैं समस्या ही आविष्कार की जननी है। कुछ ऐसी ही उक्ति क्वाड के मामले में सही बैठती है। 2004 में हिन्द महासागर में आई भयानक सुनामी ने ही क्वैड को जन्म दिया था जब श्रीलंका, इंडोनेशिया, मालदीव जैसे देशों में सहायता प्रदान करने के लिए भारत ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो शीघ्र ही 3 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका भी इससे जुड़ गए। इस संकटकालीन परिस्थिति में क्वैड की शुरूआत हुई। हालांकि इस समूह की औपचारिक शुरुआत 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के प्रयास स्वरूप हुई।
कहते हैं क्वाड शिंजो आबे के ही दिमाग की उपज है जो चीन की बढ़ती आक्रामक नीति का सामना करने के लिए एक समान देशों को एक साथ लाकर चीन पर दबाव की रणनीति के तहत कार्य करना चाहते थे। इसमें बाकी देशों के भी हित जुड़े थे। इन हितों को हमें एक बार फिर से मैकियावेली और चाणक्य के विचार से समझने की जरूरत है। “द प्रिंस” में जेम्स मैकियावेली ने राजा को सलाह देते हुए कहा था की –
“किसी भी राज्य को अपने पड़ोसी देश को कभी इतना ताकतवर नहीं होने देना चाहिए कि वो कल को उसके लिए खतरा बन जाए, न ही पड़ोसी देश की आक्रामकता को मूकदर्शक बनकर देखते रहना चाहिए बल्कि गुट बनाकर उसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए।”
भारत ने अपने हितों के लिए इसी राह का चुनाव किया। चीन जो लगातार इंडो पैसिफिक क्षेत्र के लगभग सभी देशों के साथ अपनी आक्रामक नीति के कारण सीमा विवाद में उलझा रहता है उसे काउंटर करने के लिए भारत के लिए यह गुट जरूरी था। यूँ भी इंडो पैसिफिक क्षेत्र से भारत के आर्थिक, रणनीतिक हित जुड़े हैं और इसकी सुरक्षा सुनिश्चित कर ही भारत अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है यह बात नेताओं को समझ आ चुकी थी। अमेरिका के लिए चीन के खिलाफ गुट बनाना वर्चस्व की लड़ाई का हिस्सा था। चाणक्य के शब्दों में कहे तो अमेरिका इस रणनीति के तहत काम कर रहा था कि शत्रु का शत्रु मित्र होता है।
चीन द्वारा विरोध
क्वाड के किसी भी देश ने कभी खुले तौर पर यह तो स्पष्ट नहीं किया कि इसका उद्देश्य चीन को काउंटर करना या रोकना है लेकिन चीन द्वारा इसका कड़ा विरोध किया जाता रहा। चीन तब और सकते में आ गया जब 1992 से अमेरिका और भारत के मध्य होने वाले मालाबार नौसैनिक अभ्यास में 2007 में जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर लिया गया। इस सैन्य साझेदारी का चीन ने “एशियन नाटो” कहकर विरोध किया और इसे क्षेत्र को अस्थिर करने का प्रयास बताया।
चीन के बढ़ते दबाव को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने जहाँ रणनीतिक हितों से ज्यादा अपने आर्थिक हितों को महत्वपूर्ण माना और वहीं अमेरिका ने ईरान पर सैंक्शन लगाने के लिए चीनी मदद की आशा में इस नए ग्रुप पर कोई ध्यान नहीं दिया। जापान में शिंजो आबे के हट जाने से इसे और तगड़ा झटका लगा। ऐसे में क्वाड
समूह बना तो जरूर पर शैशव काल से पहले ही काल के गाल में समा गया।
क्वाड का पुनरोद्धार
2012 में एक बार फिर शिंज़ो आबे की वापसी ने इसे उभरने का नया मौका दिया जब उनके द्वारा हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को शामिल करते हुए एक ‘डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड’ स्थापित करने का विचार प्रस्तुत किया गया। हालांकि इसके बाद भी इसे 5 वर्ष का और इंतजार करना पड़ा।
क्वाड समूह की असल स्थापना नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को किसी बाहरी शक्ति (विशेषकर चीन) के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये हुई और आसियान शिखर सम्मेलन के एक दिन पहले फिलीपींस में इसकी पहली बैठक का आयोजन किया गया। इस दौरान जहां चीन डोकलाम मुद्दे पर भारत से उलझा हुआ था वहीं साउथ चाइना सी और सम्पूर्ण इंडो पैसिफिक क्षेत्र में अपनी आक्रामक नीतियों से क्षेत्र की शांति के लिए खतरा उतपन्न कर रहा था। हालांकि तब भी इस समूह द्वारा गिरोह के आरोप से बचने के लिए कोई सयुंक्त बयान जारी नहीं किए गए।
2021 में नव जीवन
मार्च 2021 में पहली बार अमेरिका के नेतृत्व में आधिकारिक क्वाड सम्मेलन की बैठक हुई (कोविड के प्रभाव के कारण वर्चुअल)। इस बैठक में ‘द स्पिरिट ऑफ द क्वाड’ नामक एक संयुक्त बयान में समूह के लिए उद्देश्यों का एक सेट जारी किया गया और इस तरह क्वैड अपने वर्तमान स्वरूप में आया।
क्या है क्वाड के उद्देश्य
इंडो पैसिफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता-
अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन सुनिश्चित करना
कोविड 19 के दौर में वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा
साइबर सुरक्षा और 5जी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक दूसरे का सहयोग
चीन के वन बेल्ट, वन रोड को काउंटर करने के लिए अवसंरचनाओं का निर्माण और वैसे देश जो चीन की कर्ज नीति के कारण कर्ज जाल में फंस गए हैं उन्हें कर्ज देकर उनकी सुरक्षा, आजादी सुनिश्चित करना
अंतरिक्ष में साझी भागीदारी
नागरिक से नागरिक संबंधों को मजबूत करना
जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना
कितना सफल है क्वाड
हाल में ही चीन द्वारा बांग्लादेश को यह धमकी देना कि अगर वह क्वाड समूह में शामिल हुआ तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे जबकि बांग्लादेश को।इस ग्रुप में शामिल करने की बात तक नहीं उठाई गई थी, यह बताता है कि चीन क्वैड समूह को कहीं न कहीं अपने लिए खतरा मानता है। अभी रूस-यूक्रेन युद्ध के दरम्यान जब भारत अन्य देशों के सापेक्ष तठस्थ बना हुआ है और अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया द्वारा रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं तब भी सभी देशों का टोक्यो में मिलना और साझी पहल सुनिश्चित करना यह बताता है कि समूह इंडो पैसिफिक क्षेत्र के लिए अलग से रणनीति बनाने पर विचार कर रहा है और अन्य अंतरराष्ट्रीय संबंध इसमें कोई खलल नहीं डाल सकते। अमेरिका द्वारा ‘इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क’ का अनावरण करना इस क्षेत्र के देशों को सामान्य मानकों के माध्यम से अधिक निकटता से जोड़ने का एक कार्यक्रम है और देशों की आर्थिक संबंधों को भी मजबूती से स्थापित करेगा। क्वाड सदस्यों ने इंडो-पैसिफिक में अवैध मछली पकड़ने पर अंकुश लगाने के लिए एक समुद्री निगरानी योजना भी शुरू की है साथ ही कोविड से सुरक्षा में इंडो पैसिफिक क्षेत्र में बहुत ही बेहतरीन कार्य किया है, जो समूह के सफलता की कहानी कहते हैं।
हालांकि समूह के पास चुनौतियों की कमी नहीं है क्योंकि चीन के खतरे से सभी देशों के मायने अलग अलग हैं। जहाँ अमेरिका के लिए यह वर्चस्व की लड़ाई है वहीं जापान और भारत अपने भू भाग पर चीनी दावे से जूझ रहे हैं। चीन के दबदबे को रोकने के लिए इनके पास साझी रणनीति नहीं है। क्वैड देशों ने अवसंरचनाओं के निर्माण और देशों को कर्ज देने की बात तो की है पर अभी तक इसे अमल में लाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। जबकि टेक्नोलॉजी क्षेत्र में इन सभी देशों की चीन पर अत्यधिक निर्भरता इस राह में भी रोड़े डाल सकती है। वैसे देखा जाए तो क्वैड अभी पूर्ण रूप से गठबंधन का आकर नहीं ले सका है अभी यह शैशव अवस्था में ही है और इतनी जल्दी इसके भविष्य का आकलन करना जल्दबाजी होगी। लेकिन इन सभी देशों को याद रखना चाहिए कि इंडो पैसिफिक देश संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं ही होना चाहेंगे। इसलिए इतना तो तय है कि यह ग्रुप एशियन नाटो नहीं बनेगा। लेकिन इस समूह की सफलता तभी सुनिश्चित है जब सभी देश मिलकर चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करें और मजबूत दोस्त की भांति एक दूसरे के लिए खड़े रहे। अंत में चाणक्य की भाषा में एक राज्य को मजबूत दोस्त कि सख्त आवश्कता है क्योंकि संकटकालीन परिस्थितियों में दुश्मन से लड़ने में वही काम आता है।
By – नुपुर कुमारी (NUPOOR KUMARI)
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