नारी सशक्तिकरण: नारियों को शक्ति प्रदान

By: Akanksha Kumari

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  “गृहणी गृहमित्याहु: न गृहमुच्यते”

अर्थात गृहणी है तो घर है अन्यथा घर घर नहीं है। किसी विद्वान द्वारा कथित यह कथन एकदम सही है। ममता, करुणा , दया, अपनत्व, स्नेह और प्रेम की मूरत, विधाता की एक अद्भुत एवं अद्वित्य रचना है नारी। अपनी बुद्धि, शक्ति,हिम्मत, त्याग और सहनशीलता के बल पर नारी अपनी जीवन रूपी नौका को विपत्ति के थपेड़ों से कभी बचाकर तो कभी लड़कर किनारे पर पहुंचाकर सुख समृद्धिपूर्ण बना देती है। नारी सशक्तिकरण से तात्पर्य है नारियों को शक्ति प्रदान करने के क्षेत्र में कार्य का किया जाना। जब भी नारी सशक्तिकरण के बात आती है तो पहला सवाल तो यह है क्यों?

बात विश्व के इतिहास की करें या भारत की , यह कहना कि दोनों ही नारी के योगदान और गाथाओं के बगैर अधूरे हैं, अतिशोक्ति नहीं होगी। प्राचीन काल से ही नारी समाज में अपनी छाप छोड़ती आई है। वे समाज तथा देश की कल्याणकारी के रूप में वह सम्मान की हकदार रही हैं। सामाजिक, राजनीतिक , धार्मिक से लेकर रणक्षेत्र तक नारियां पुरुषों का साथ देती रही है।देवासुर संग्राम में राजा दशरथ को कैकयी के रणकौशल ने ही विजयी बनाया था।

वीर और साहसी पुत्रों की जननी विरप्रसूता कहलाने वाली नारी का भारतीय समाज में स्थान इतिहास के युगों के साथ बदलता रहा है। अगर एक ओर नारी प्रगति की राह पर निरंतर अग्रसर है वहीं दूसरी ओर इनके सशक्तिकरण की सुई ऊपर नीचे होती रही है।

नारी सशक्तिकरण से तात्पर्य है नारियों को शक्ति प्रदान करने के क्षेत्र में कार्य का किया जाना। जब भी नारी सशक्तिकरण के बात आती है तो पहला सवाल तो यह है क्यों? क्यों हमें जरूरत है नारी सशक्तिकरण की?

क्यों युगों से चलते आ रहे संघर्ष का इतना लंबा सफर तय करने के बाद भी दूर है मंजिल नारी की। आज जारी धरती की गहराइयों से नभ की ऊंचाइयों तक पहुंच चुकी है। परंतु विडंबना तो यह है कि धरती की दुर्गम सीमाओं को लांघकर अंबर की बुलंदियों को छू लेने वाली कल्पना चावला के इस देश में क्यों आज भी नारी अपने घर की दहलीज लांघने में भी झिझकती है।

क्यों आज नारी को डर लगता है घात लगाए बैठे समाज के रावण और दुस्साशन से?क्यों उसे आज भी डर लगता है जुए की बाजी पर उसका सौदा कर देने वाले धर्मराजों से? क्यूं डरती है वो उसकी पवित्रता पर सवाल खड़े कर देने वाले समाज के ठेकेदारों से?

आज अखबार का एक अंक ऐसा नहीं होता है जब हमें ऐसी खबर न पढ़ने को मिले जहां महिलाएं किसी के हवस ,किसी की ज्यादतियों का शिकार हो गई हो। अखबार के पन्ने महिलाओं के आसूं और उनके प्रति हुए जुल्में चीख कर कहते हैं की महिलाएं देश दुनियां में सफल तो है लेकिन सुरक्षित नहीं है। यह इस बात की गवाही देती है की हमारे द्वारा की जाने वाली महिला सशक्तिकरण की बातें मात्र एक दिखावा और ढोंग है।

अगर नारी सशक्तिकरण का अस्तित्व वाकई है तो क्यों हमारे देश में , जहां हम एक ओर भारत को मां का संज्ञान देते हैं, वहीं दूसरी ओर हर चार मिनट के अंतराल यहां किसी की मां ,किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की बहन का बेरहमी बलात्कार कर दिया जाता है? क्यों यहां जुल्म से पीड़ित महिलाएं जब कानून का दरवाजा खटखटाती है तो उसको न्याय मिलने में इतना लंबा वक्त लग जाता है? क्या औरत और क्या महिलाएं, भारत जैसे गौरवशाली देश में क्यों आखिर नन्ही बच्चियां हर अगले दिन किसी मर्द के हवस का शिकार हो रही है?

             नई नीतियां बनती गई

             नए अधिकार मिलते गए

             नारी के जीवन पथ पर 

             रंग बिरंगे फूल खिलते गए

             उन रंग बिरंगे फूलों में कांटे अभी भी शेष हैं

             नारी सशक्तिकरण के दावे 

            मात्र कंकाल और अवशेष हैं

महात्मा गांधी ने कहा था ” मैं भारत को उस दिन सही मायनों में श्रेष्ठ मानूंगा जिस दिन यहां की महिलाएं रात के अंधेरे में भी खुद को सड़कों पर खुद को सुरक्षित महसूस करें। लेकिन विडंबना देखिए की आज तो नारी दिन के उजाले में भी सुरक्षित नहीं है।दिन के उजाले की क्या बात भी छोड़िए,आज तो नारी मां की गर्भ में भी सुरक्षित नहीं है।

धरातल पर यह दशा है नारी की और हमारी सरकार बात करती है तैतीस प्रतिशत आरक्षण देकर नारी सशक्तिकरण करने की।

                ना नौकरी ना शिक्षा 

               और ना ही राजनीति के संदर्भ में

               अगर देना ही है तो दो नारी को

                आरक्षण मां के गर्भ में

जो आरक्षण की बात कहकर यह कहते हैं की नारी सशक्तिकरण हो रहा है उन्हें यह जानने की जरूरत है कि नारी पहले मां की गर्भ से जन्म लेने का अधिकार मांगती है।

इस जग में इज्जत और सम्मान से बेखौफ जीने का अधिकार मांगती है।भारत की नारी बस अपने सपनों को हकीकत में बदलने का वक्त मांगती है। अगर यह सब नारी को मिल गया तो यह दावा किया जा सकता है की हमारे समाज को नारी सशक्तिकरण में मशक्कत करने की ज़रूरत ही नहीं रह जाएगी । इस देश की महिलाएं इतनी काबिल और योग्य है की वे खुद ब खुद इतनी सशक्त होंगी और उनको अपने हक को पाने के लिए किसी सरकारी सहारे की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।

         परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की 

         वो खुद ही छू लेते हैं ऊंचाईयां आसमानों की

जिस दिन इस देश की नारी शक्ति को पहचानकर एक जुट होकर साथ अपने हक के लिए लड़ने छू पड़ेंगी उस दिन इसको रोक पानी नामुमकिन होगा। इस देश की नारी को यह समझना होगा कि जिस तरह द्रौपदी की रक्षा करने श्री कृष्ण आए थे, उनको अपनी रक्षा के किए किसी कृष्ण को अपनी रक्षा के किए नहीं पुकारना है। इस देश की नारी को यह समझना होगा कि उनको अब दुर्गा का रूप धारण कर खुद अपने शत्रुओं का संहार करना होगा।

यदि महिला सशक्तिकरण संभव होगा तो उसमें प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण योगदान स्वयं महिलाओं का होगा।

भारत की नारी जो अनंत गुणों का भंडार रही है, सूर्य सा तेज, आकाश की ऊंचाई, समुद्र सी गंभीरता व पृथ्वी सी धैर्यता आदि गुणों से परिपूर्ण है वह आज बस यही कहना चाहती है कि

              ” सीढियां उन्हें मुबारक हो

                 जिन्हें घर की छत तक जाना है

                 हमारी मंजिल तो आसमान है

                 रास्ता हमें खुद ही बनाना है”

By: Akanksha Kumari

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