त्यौहार हमारे जीवन में नयी ऊर्जा ,नई चेतना लेकर , नया उल्लास नई उमंग लेकर प्रतिवर्ष आती है और हमारे जीवन के कण कण में सकारात्मक भूमिका का संचार करती है। उदाहरणार्थ होली का त्यौहार हमारे जीवन में आशा, उम्मीद की नई रंग भरती है तो ईद हमें मानवीय मूल्यों की मिठास की एहसास दिलाती है। दुर्गापूजा या दशहरा बुराई पे अच्छाई की जीत, अधर्म पे धर्म की जीत तथा असत्य पे सत्य की जीत की स्मृति कराती है तो वहीं मुहर्रम का त्यौहार अपने धर्म अपने कर्तव्य की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने की प्रेरणा भरती है। वहीं क्रिसमस का त्यौहार प्रभु ईशु के त्याग भाव एवं प्राणी मात्र के प्रति समरसता की याद दिलाती है वहीं गुरु पूर्णिमा का त्यौहार गुरूजनों के चरणों में समर्पित होता है। दीवाली का त्यौहार हमें अपने उपनिषदों में वर्णित ‘असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘१
अर्थात हमें असत्य से सत्य की ओर तथा अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलने की भावना से ओतप्रोत करती है हम अपने जीवन के सारे अन्धकार को दूर कर जीवन में आगे उन्मुक्त, स्वछंद वातावरण में स्वयं को प्रकाशित करते हैं जिससे हमारे भारतीय जीवन दर्शन की एक और महत्वपूर्ण विचार ‘ आत्मदीपो भव: ‘२ अर्थात स्वयं के प्रकाश से प्रकाशमान हो की भावना को चरितार्थ करती है।
उसी तरह फसलों के त्यौहार की भी बहुत ही अधिक महत्ता है। भारत के विभिन्न भागों में फसलों के त्यौहार को अलग- अलग नाम से जाना जाना है। बिहार उत्तरप्रदेश में इसे मकर संक्रांति खिचड़ी तो गुजरात में पतंग पर्व, असम में बिहू तो केरल में पोंगल , पंजाब में लोहड़ी के नाम से फसलों के इस त्यौहार को मनाया जाता है । सच में विविधता में भी एकता भारत की सबसे बड़ी विशेषता है।
फसल पककर तैयार होने और उसे घर- खलिहान तक लाने की खुशी में किसान बहुत ही अधिक धूम धाम से फसलों के त्यौहार को मनाते हैं , उससे बनी नई पकवान को को धरती माँ को समर्पित कर आपस में गले लगकर लोग इस त्यौहार को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
लगभग हर त्यौहार कुछ-न -कुछ सकरात्मक सन्देशा लेकर आती है हममें नई चेतना नई उत्साह जगाती है जिससे हम इस नीरस से होते चले जाते जीवन में नवरस का आस्वादन करते हैं। इस उत्साहित में ऊर्जा का नव संचार के लिए प्रस्तुत है मेरी स्वरचित कुछ पँक्तियाँ-
नवजीवन का नवसंकल्प लिए
नई ऊर्जा ,नव विकल्प लिए
नई उम्मीद, नव प्रकाश लिए
जीवन में कुछ अच्छा कर गुजरने का विश्वास लिए
पर्व त्यौहारों से उत्साह अथाह लिए
बढ़ते जाते हैं अपने कर्तव्य पथ पर चिरन्तन।
जिस प्रकार पर्व त्यौहार हमारे जीवन में सकारात्मक भावना का संचार करती है ठीक इसके मनाने के तरीके पर्यावरण पे प्रतिकूल प्रभाव डालकर हमारे लिए समस्या खड़ी करती है । हम त्यौहार के दिनों में प्लास्टिक का अन्धाधुन्ध उपयोग करने लगते हैं जिससे वायु ,जल ,मृदा एवं संपूर्ण वातावरण प्रदूषित होती है । खतरनाक रासायनिक पटाखों से वायु प्रदूषण के साथ ही साथ ध्वनि प्रदूषण की समस्या के साथ ही अन्य समस्या भी उत्पन्न होती है । वातावरण में कई हानिकारक गैसें सम्मिलित हो जाती हैं जो हमारे फेफड़े को सीधा प्रभावित करती है। कई प्रकार की बीमारियों का यह प्रवेश द्वार के भाँति काम करती है ।
खतरनाक रासायनिक पदार्थों, रंगों से वातावरण के साथ-साथ हमारे शरीर, हमारे स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।
अतः समय की मांग है की हम हर पर्व- त्यौहार को एक दायरे में मनाएं ताकि पर्व त्यौहार मनाने की सार्थकता भी सिद्ध हो सके, पर्यावरण पर कम- से- कम कुप्रभाव पड़े एवं इसकी प्रासंगिकता भी बरकार रहे। इसके लिए हमें पर्व त्यौहार की महत्ता को समझना बेहद जरूरी है तभी हम इसके मनाने की सार्थकता को सिद्ध कर पाएंगे।।
क्यूंकि पर्व- त्यौहार की सार्थकता ही है इसकी पहचान।
इसकी प्रासंगिकता इसी में है कि इसकी महत्ता को ले हम जान।
और इसे अपने जीवन में आत्मसात कर,
इसकी मर्म को समझते हुए इसे मनाना हम ले ठान।।
By: Brijlala Rohan
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