राजा हरिश चंद्र का नाम
है घर घर मैं प्रसिद्ध |
थे वे एक महान राजा,
श्री राम ने भी उनके कुल मे था जन्म लिया,
सत्य का प्रतिक थे राजा हरिश चंद्र |
इस कविता मे उनके जीवन के एक
घटना के बारे मे है उल्लेख |
एक बार राजा हरिश चंद्र ने
बुलाई थी बिद्वानों की सभा |
आए थे दूर दूर से पंडित और नामचिन व्यक्ति,
हुआ था ज्ञान का महोत्सव बड़ा |
गोस्वामी तुलसीदास भी थे पधारे उस सभा मे,
और लिया था इस ज्ञान गंगा मे हिस्सा |
देखा उन्होंने की सभा के अंत मे
जब राजा हरिश चंद्र दे रहे थे दान,
तब उनके सिर और नैन दोनों झुका लिया करते थे |
जब गोस्वामी तुलसीदास की बारी आई,
तब पूछा उन्होंने की कहाँ से सिखा राजन ये ये कला ;
की जैसे जैसे हाथ बढ़ते दान देने के लिए,
वैसे वैसे झुक जाते उनके नैन |
इस पर राजा हरिश चंद्र ने दिया ऐसा उत्तर,
की कायल हो गए उपस्थित सभी उहाँ राजन के
इस उत्तर पर |
बोले राजा हरिश चंद्र
कि देने वाला वह एक है,
वह है ईश्वर परमात्मा सब का नाथ |
देता सब कुछ वही,
फिर भी जब राजन बाँट रहे थे ईश्वर की देंन,
तब सब जय जयकार उन्ही की कर रहे थे,
ये भूलकर की देने वाला कोई और है
और बाँटने वाला कोई और |
यह सोचकर स्वतः हि शर्म से
झुक जाते थे उनके नैन!
By: Sidhartha Mishra
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