आजादी की अमृत बेला,मना रहे भारतवासी,
जबकि,आधी जनता देखोआज भी है भूखी-प्यासी।।
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लोक तंत्र के नाम पे देखो, राजतंत्र ही आज खड़ा,
गैरों ने तो छोड़ दिया,अपनों का भरता नहीं घड़ा।।
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वीर शहीदों की कुर्बानी,का देखो क्या हश्र हुआ?
सभी पदों पर बैठे अब तो,चाचा,भतीजा और बुआ।।
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घर घर झंडा फहराने की अबके,नीति बनाई है,
घर भी सबके पास हो लेकिन,इसकी न सुनवाई है।।
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गैरों के हाथों से सत्ता,अब अपनों ने पकड़ रखी,
भारत माता अब भी देखो,जंजीरों में जकड़ रखी।।
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आज भी देखो सड़क किनारे,सोते लोग नजर आते,
आज भी लोगों के तो भैया,आधे पेट ही भर पाते।।
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सहमे कुचले,डरे डरे से सहते हैं हर पल अपमान,
क्यों इनको आजाद वतन में नहीं मिला इनका सम्मान।।
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न दी शिक्षा,न रोजी दी,न सुविधा न संरक्षण,
दास बनाकर निर्बल को सदा किया उनका भक्षण।।
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आजादी तो मिली है लेकिन न्याय की जनता है प्यासी,
मने तभी अमृत बेला,हों तभी सुखी भारतवासी।।
जय हिंद
मधुरंजन
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