इन्वेस्टमेंट

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शास्त्री पुल से लगे हुए सिग्नल पर ही सकीना भीख माँगा करती है| भोर फूटने के कुछ घंटों बाद ही वो सिग्नल पर पहुँच जाती है| दुसरे पहर उसकी छोटी बहन छुटकी भी अपने स्कूल से फुर्सत होकर सकीना के साथ हो लेती है | दिन ढलते ही दोनों बहने वापिस रहीम चाचा के पास रेलवे स्टेशन पहुँच जाती हैं| उनकी दैनिक कुल जमा का एक बड़ा हिस्सा तो चाचा ही रख लेते हैं और कुछ थोडा सा हिस्सा दोनों बहनों को मिल जाता है| दिन अच्छा रहा तो ये रकम २५ से ३० रूपये तक होती है, और खराब दिन में १० से १५| आज का दिन भी ठीक ठीक ही रहा है, सकीना ने मन में हिसाब कर लिया है की चाचा का हिस्सा काटने के बाद दोनों बहनों के पास आज २० रूपये बच रहे हैं| सामान्य दिनों के हिसाब से तो ये रकम अच्छी है, पर आज सकीना को ये २० रुपये कम लग रहे हैं | दरअसल बात ये है की छुटकी कई दिनों से एक नए ज्योमेट्री बॉक्स के लिए जिद कर रही है, स्कूल में सभी बच्चों के पास नए नए ज्योमेट्री बाक्स हैं बस एक ही छुटकी के पास ही नहीं है| सकीना कई दिनों से छुटकी की इस बात को टाल रही है| कभी उसे टॉफ़ी चाकलेट खिला कर बहला देती तो कभी डांट लगाकर चुप करा देती, किन्तु कहीं अन्दर सकीना की भी एकमात्र ख्वाहिश यही तो है की उसकी बहन अच्छे से पढ़े लिखे| पर ज्योमेट्री बॉक्स ले पाने जितने पैसे जोड़ पाना भी उसके लिए कठिन था| इसी उधेड़ बुन में आज सकीना का पूरा दिन निकल गया| छुटकी के भी स्कूल से लौटने का समय हो गया है, वो बस आती ही होगी, आकर फिर ज्योमेट्री बॉक्स की बात होगी, आज भी कुछ बहाना बनाना होगा, सकीना यही सोच रही थी| चाचा का हिस्सा अलग कर वो अपने २० रूपये हाथों में लिए वो सिग्नल से कुछ दूर नेहरु पार्क के सामने तक चली आई है| वो देखती है की पार्क में बहुत से लोग हैं, एकसाथ इतने सारे लोग, एक ही जगह देखकर उसे लगता है की अगर वो बाकी का समय सिग्नल के बजाय पार्क में बिताती है तो शायद ज्योमेट्री बॉक्स लायक पैसे इकठ्ठा कर सकती है| वो अभी इस विचार में ही थी की उसे याद आता है की पार्क में घुसने के लिए १० रुपये टिकट भी तो लगता है| और छुटकी के स्कूल से आने का समय भी हो चला है, उसे वह अकेला छोड़ नहीं सकती, इसका मतलब है की उसे दो टिकट लेने होंगे यानी पूरे २० रूपये जो बचे हैं वो खर्च हो जायेंगे| अब उसके लिए बहुत ऊहापोह की स्थिति है| सकीना सोचती है की इतने दिनों से सिग्नल पर सुबह से शाम करके इतने पैसे इकट्ठे न हो सके की उसकी बहन की एक छोटी से ख्वाहिश पूरी हो जाए| आज शायाद ये पार्क उसकी ख्वाहिश पूरी कर सकता है, किन्तु इसकी भी एक कीमत है| आज की पूरी कमाई|पार्क जाकर भी कुछ हाथ आएगा या नहीं इस बात की कोई निश्चितता नहीं है किन्तु सिग्नल पर तो कुछ हाथ आ नहीं रहा ये तो सकीना इतने समय से देख ही रही है |सकीना टिकट खिड़की पर जाकर २ टिकट की मांग करती है और बदले में आज की कुल जमा अपनी मुट्ठी में से गिर जाने देती है| वो पार्क की २ टिकट मुट्ठी में भींचे दरवाज़े के सामने खड़ी है, छुटकी के आने का इंतज़ार कर रही है| पार्क में कितनी हरियाली है और इन बहनों का जीवन, नितांत सूखा| सकीना की आँखों में उम्मीद की एक अधबुझी सी चमक है, शायद ये पार्क अपने हिस्से की कुछ हरियाली इन बहनों के पाले सरका दे| आज उसने बहुत बड़ा दांव खेला है, शायद इस दुनिया ने उसे समझा दिया होगा की हर इन्वेस्टमेंट के साथ रिस्क भी जुड़ा होता है| किन्तु  सकीना के यह समझ दुखद है, बहुत दुखद|

-सम्यक मिश्र, जबलपुर      

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