मेरा एक घर है!

1
1247
Photo : Garden Ideas Design
Rate this post

मेरा एक घर है! घर मे माँ-पापा और बहन है! मुझे तो अपनी माँ के गोद मे सोना याद नहीं, पर आबका सपना तो यही है! माइ पछिस साल का हु- पूछ तो पाऊँगा नहीं! अभी शादी होनी बाकी है, शायद पत्नी के गोद मे सोने का मौका मिल जाए- आखिर वो भी तो माँ होगी! 

ग़र्क़ के बगल मे दुकान मे देखता हु, पति-पत्नी दोनों प्रेम से रहते है! पति अपनी पत्नी के गोद मे सोया रेहता है! शायद माइ भी उसी आनंद मे घूमकर खुश रहना चाहता हू!

कल को माइ भिनमाल गया था! अकेला घूमा, और अकेलापन अकेले मे घुटन पैदा करता है! वापस आकार घर पर बात की जिसमे मम्मी के और मेरी, दोनों की चुप्पी ज़्यादा थी! ‘अब हर दिन बात करने केलिए भी क्या हो सकता है?’

किसी जगह घूमने की चाहत मे तो पूरी दुनिया है, नौकरी के साथ-साथ हो भी जाएगा! पर चाहत कोई ऐसी दुनिया देखने की है, जिसमे खाइशे हो, खाइशों से जुड़ी ज़िद, ज़िद को ना छोड़ने की हट, और तमन्ना से दहकती साँसे हो, दाल-भात से जुड़े अरमान सारे हो!

ये सब तो मन के मंदिर मे ही है! रातों के अँधेरों मे, चाँद की चाँदनी मे, किसिके घूँघट मे मेरा आदर हो, आईने मे किसिके मेरा आँचल हो… घर के खटखटाते दरवाजे, हवा से बजती खिड़कियाँ, गरजते बादल- बरसते काजल हो, और भी कई मननते जो वक़्त के साथ पूरी हो!

निबंध के पहले वाक्य मे मैने अपने घर का, परिवार का परिचय दिया अब आगे… घर मे बीस साल झगड़े होते ही रहे, कभी रुपये को तो कभी ‘सास’ को, तो कभी आदत से- झगड़े होते ही रहे!

‘घर’ के मोम से सपने समय के उदाहरणो के साथ- कुछ जलते, कुछ पिघलते, कुछ बिखरते दिखे! आज भी मुझे पापा/पिता से बात करने मे दिक्कत ‘पूर्ण रूप’ से होती है!

भूत काल को माना भूतों के साथ मे ही छोड़ दिया- पर आज के मेरे सपने, काही भी घूमने के-किसी लड़की से ही जुड़े होते है! कल्पना मे तो कोई न कोई प्यारा चेहरा होता ही है! “ये शायद विचार है, हकीकत माँ के गोद मे सोने की है!”

कोशिश भी बहुत की परिवार के साथ रहने की, पर हो नहीं पता! 

(घर मे सभी झाड़ू लगते है, खाना बनाते है, पर घूम्ने साथ नहीं जा सकते, झगड़े हो ही जाते है!)

फिर भी किसी के दिल के सैर के लिए आगे बढ़ता हु तो ये किस्से होते है!

— कभी दोस्तों से बात हुई तो भी चुप्पी

— कभी रिशतेदारों से बात हुई तो भी चुप्पी

— किसिके दिल मे झाकने की कोशिश की तो हुमेशा नाकामियाबी

— मेरे दिल मे किसिने झाकने की कोशिश अभी तक नहीं की (या मुझे पता नहीं)

— सामने से अपनी दिल की बात बतानेवाले भी बहुत रहे (उनकी कदर है और माइ शुक्रिया अदा करता हु)

— मेरे पिता ने कदर नहीं की जिसका अफसोस भी है

“किसिने मेरे दिल मे झाकने की

कोशिश तो की नहीं

मैने बताने की कोशिश की

पर असफल रहा

विचार करने पर आचार का स्वाद भी नहीं मिला

इसमे ऐसा हुआ की दूस्र्रोन की बड़ी बड़ी कहानियाँ सुनी

हिदायतें भी दी

‘मेरा क्या?’ माइ ठहर गया!

कितना स्वार्थी हू?

दूसरों की नज़र / नज़रिये से देखू तो…

सब की बातें सुन ने वाला

(ऐसे भी लोग कम मिलते है)

कुछ तो हू ना!

इसी बात का गर्व सही!!!”

ऐसी नाकाम किशिश की लंबी दास्तान मे, मेरे जीवन के लंबे कारवां मे मार खा कर हताश होने मे ही  मई सफलीकृत रहा! (माँ-बाप से चाहत प्यार जताने की बहुत कोशिश की और नाकाम रहा)

एक किस्सा 2016 का!

‘मोतीफ़’ संस्था मे कुछ सवाल ‘मिहिर बरोट’ ने किए थे ट्रेनिंग मे; एक प्रश्न यह था की ‘आप कौनसे फिल्म के हीरो/हेरोइन से मिलना चाहेंगे और उनके साथ समय बिताने पर क्या करना चाहेंगे!’

“ मई ‘पीवीपीडी श्री हर्षा’ (जो की माइ खुद हू), से ही मिलना चाहूँगा, और वक़्त बिताना चाहूँगा, और अपने साथ ही वक़्त बिताना चाहूँगा, जो शायद मरने पर भी संभव न हो!”

हजारों ऐसी ख्वाइशों मे कितने तो बिखर गए, कितने तो रास्ते भटक गए, – सबका दाखिला ही, सबकी हाज़िरी मैने भरी हुई है! ऐसे मे किस नगर जाऊ, किस शहर-किस गली? सिवाय माँ के/ममता के गोद मे, कहा चैन मिलेगा?

मेरे जीवन के सफर का पंचनमा हो गया था- तय कर दिया गया था शायद जो मेरी माँ की ममता ने सुख मे बदला, कुछ शुभ –चिंतको का आदर-सम्मान ने मेरे अंदर अभिमान लाया! उनका कदर और ज़िक्र मेरी आँखों से कभी ओझल न होगा!

अभी भी किसी माँ का आँचल या शायद मेरे ही माँ का आँचल मुझे पुकार रहा है, या किसी औरत की ममता मुझे अपने आँगन मे देखना चाहती है, किसकी सुनू-कहा जाऊ- क्या करूँ पता ही नहीं?

इतना गंभीर भी नहीं मे तो हसमुख हू!

बस अब सपनों मे घूमने का इरादा है!…

लेखक परिचिति : पीवीपीडी श्री हर्षा

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here