विश्वास

चावडा जिगर दिनेशभाई

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“ काँटों पर चलकर फूल खिलते है ,
विश्वास पर चलकर तो भगवान भी मिलते हैं । ”
नमस्कार !
करोड़ों वर्ष पूर्वे जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब वह सिर्फ एक अगन गोला थी । और धीरे – धीरे उसमें बदलाव आते गए । फिर वातावरण , वनस्पति , जीव – सृष्टि और मनुष्य का निर्माण हुआ । और इसका अलग – अलग भाँगों में , अलग – अलग खंडों में , अलग – अलग देशों में विभाजन हो गया ।
आज भारत , पाकिस्तान , नेपाल , अमेरिका , चीन , रशिया , जापान , जर्मनी आदि छोटें – बड़ें मिलाकर कुल १४९ से भी अधिक देशों का पृथ्वी पर अस्तित्व है । सभी देशों की शासनव्यवस्था , सुरक्षा , विकास , कानून , बँधारण आदि भिन्न – भिन्न है । सभी लोगों के धर्म , जाति , संप्रदाय , रीति – रिवाज , भाषा , पोशाक , खोराक , रूप – रंग और सभी की विचारशैली में भी अधिक भिन्नता है ।
ईश्वर ने मनुष्य को बनाया पर ये सभी धर्म , जाति , संप्रदाय आदि भिन्नता हमने ही बनाई है । लेकिन सबके मन में भावना का सिंचन तो एक ही समान किया है । इसीलिए तो हम सभी के मन में विश्वास , प्रेरणा , मानवता , क्षमा आदि जैसी भावनाओं का संग्रह है । इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है ‘ विश्वास ’ । प्रकृति के पास अगणित ज्ञान का भंडार है , पर उसका लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है और उस अनुभवप्राप्ति के लिए कुछ कीमतें अदा करनी पड़ती है । जिसमे से ‘ विश्वास ’ अग्र है ।
“ क्षमा करने से बड़ा कोई दान नहीं ,
किसी की बुराई करने जैसा कोई आसान काम नहीं और
विश्वास से ऊँचा कोई आसमान नहीं । ”
प्राचीनकाल से लेकर आज तक मनुष्य किसी पर भी पूर्ण रूप से विश्वास नहीं करता । हर एक को संदेह की दृष्टि से देखता आ रहा है । और आज के युग मे टेक्नोलॉजी ने इतना विकास कर लिया है की सब कुछ अत्याधुनिक हो गया है । विज्ञान ने चक्र से लेकर वाहन तक , टेलीफोन से लेकर टी.वी. तक , लालटेन से लेकर लाइट , कलम से लेकर कंम्पयुटर तक आदि कई आविष्कार किए है । आज की टेक्नोलॉजी के कारण हमारा जीवन महद् अंश तक सरल हो गया है । लेकिन इससे लोगों मे आलसीपन और लापरवाही आ गया है । वे केवल मोबाईल या लैपटॉप मे ही व्यस्थ रहते है । इससे चोरी , लूँट , धोखाधाड़ी जैसे कई गुनाह बढ़ते जा रहे है । और अतः लोगों
मे अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है ।
“ जैसे अंधकार की दूसरी ओर प्रकाश होता है ,
सत्य की दूसरी ओर असत्य होता है ,
उसी तरह विश्वास की दूसरी तरफ अंधविश्वास होता है । ”
अर्थात् की हमें किसी एसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए जो हमे संदेह की दृष्टि से देखता हो । जिससे हम अज्ञात हो । हमारी लापरवाही हमारे लिए घातक सिध्ध हो सकती है । इसी लिए हमें सतर्कता भी रखनी होगी । विश्वास उस पर करना चाहिए जो विश्वासपात्र हो , जो हमारी तमाम परीक्षाओं मे सफल हों , सुख – दु:ख मे हमारा साथी हो ।
“ विश्वास को निःस्वार्थता से निभाना सीखना चाहिए , बाकी तो संवेदनाओं का लाभ उठाना तो पूरा विश्व जानता है । ”
प्राचीनकाल में भी की नेक राजाओं के साथ उनके विश्वासमंद लोग ही सत्ता की लालच में उन्हें धोखा देते है । चाहे कोई भी समाज हो , राज्य हो या राष्ट्र हो ; अगर सभी को एकदूसरे पर पूर्ण विश्वास होगा तो कोई भी उन्हें परास्त नहीं कर पाएगा । लेकिन आज लोगों के बीच एसी अराजकता फैल गई है की ‘ वो तो हमारे समाज का नहीं है , उस पर विश्वास किया जा सकता है ? ’ हमारी यही तुच्छ सोच हम कितने भी आगे क्यों न हो , फिर भी हमें पीछे छोड़ देती है । हम इंसानों की फितरत ही होती है की – वो हमारे धर्म का नहीं है , धर्म का है तो जात का नहीं है , जात का है तो देश का नहीं है और अगर देश का है तो प्रजाति का नहीं है ।
हम सब एक कुंभार के बनाए मटके की तरह है । एक छोटा तो एक बड़ा , एक सुशोभित तो एक सरल । पर कुंभार के लिए तो सब महत्वपूर्ण ही है । क्योंकि कुंभार तो इससे
ज्ञात है की उसने सारे मटके पूरी लगन और परिश्रम से बनाए है । और उसे विश्वास है की उसका हर एक मटका उसे रोजी देगा । और उसका परिश्रम व्यर्थ नहीं जाएगा । यहाँ पर भी कुंभार मे विश्वास की भावना व्यक्त हुई है । इसी लिए तो कहा गया है की हम सब एक ही मिट्टी के बने है । इसीलिए हमें अपने सारे मतभेद भूलाकर एकदूसरे पर विश्वास रखना चाहिए । फिर वे आपसी वाद – विवाद हो , राजकीय मतभेद हो या राष्ट्रीय सीमा – तनाव हो । मतभेद तब होते है ‘ जब हमारा विश्वास कमजोर होता है । ’ इसी लिए विश्वास रखो तो इतना अतूट रखो की सामनेवाली व्यक्ति उसे तोड़ने मे भी शर्मिंदगी का अनुभव करें ।
‘‘ विश्वास हो तो आँख और पलक की तरह ,
अगर आँख में कुछ गिरे तो पलक जपकने लगे और
जब पलक थोड़ी देर के लिए न जपके तो आँखें रो पड़ें । ’’
अर्थात् की विश्वास एसा होना चाहिए की एक व्यक्ति को कुछ हो तो दूसरे को दर्द की अनुभूति हों ।
चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न हो , फिर वो शिक्षा हो , परीक्षा हो या सुरक्षा हो , विश्वास हर कार्य को सक्षम बनाता है । हम सब को ऐसा विश्वास तो होना ही चाहिए की हम सब में कुछ न कुछ विशेषता है , और उसे बाहर लाने का प्रयत्न करना चाहिए । क्योंकि ‘ स्वयं पर विश्वास रखों , हम जितना करते है , उससे अधिक हम जानते है । ’ अगर विश्वास हो तो एक चायवाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है , विश्वास हो तो एक साबुन बेचनार भी दुनिया का सबसे अमीर आदमी बन सकता है , विश्वास हो तो कोई भी व्यक्ति बड़ी से बड़ी उपलब्धि हाँसिल कर सकता है । कोई भी व्यक्ति क्यों न हो ; फिर चाहे वो गरीब हो या अमीर हो , साक्षर हो या निरक्षर हो , अगर विश्वास हो तो महान से महान उपाधि प्राप्त की जा सकती है । इसके लिए कितना भी समय क्यों न लगे , ‘ अगर शिखर पर पहूँचना है तो प्रारंभ तलेटी से ही करना पड़ता है । ’
अगर संबंधों की बात करे तो विश्वास का स्थान संबंधों मे सबसे महत्वपूर्ण है । फिर वो सुरक्षा के लिए तहेनात सिपाहीओं के बीच में हो या व्यक्तिगत संबंध हो । आज के युग सभी सुरक्षा को लेकर बहुत व्यथित है । सभी को एकदूसरे के हुमले का भय रहता है । लेकिन अगर हम आपस मे ऐसी गाढ़ मित्रता बना ले ओर ये मित्रता हमारे विश्वास को मजबूत करे तो कोई भी परेशानी नहीं रहेगी ।
“ प्रसन्नता सबसे अच्छी दवाई है ,
ज्ञान सबसे बड़ी संपत्ति है ,
धैर्य सबसे बड़ा हथियार है और ,
विश्वास सबसे मजबूत सुरक्षा कवच है । ”
संबंधों के मतभेदों की बात करें तो व्यक्ति के रिश्ते हमेंशा दो वजह से खराब होते है । एक तो अहम् और दूसरा वहम् । इसी लिए हमे अपने आपस में इतना विश्वास जताना होगा की हमारे रिश्तों का आधार ही विश्वास बन जाए ।
“ जैसे शरीर जल से शुध्ध होता है उसी तरह
मन शांति से शुध्ध होता है ,
आत्मा ज्ञान से शुध्ध होता है और
संबंध विश्वास से शुध्ध होता है । ”
हमारे रिश्ते बहुत नाजुक होते है । अगर किसी की भी अनबन सुनने पर हम अपने रिश्तों को तोड़ देते है । कोई क्या कहता है उससे हमे कोई फर्क नहीं पडना चाहिए । रिश्ते रेशम की दोर के जैसे होते है । जैसे दोर एक बार तूट जाती है , तो उसे बाँधकर भी उसमे गाँठ पड जाती है । उसी तरह संबंध में भी जरा सा भी अविश्वास उत्पन्न हो तो पूरा संबंध तूट जाता है । ये दुनिया हर सफलता मे हमारी गल्तियाँ निकालेगी । लेकिन अगर हम अडग हो तो कोई भी हमें नहीं मोड सकता । उसी तरह हमारे रिश्ते इतने पक्के होने चाहिये की अविश्वास की एक चिनगारी भी उसे तोड़ न सके ।
“ संबंध एसे बनाओ की जिसमें . . .
शब्द कम और समज अधिक हो ,
विवाद कम और स्नेह अधिक हो ,
साबिती कम और प्रेम अधिक हो ,
श्वास कम और विश्वास अधिक हो । ”
अर्थात् की हममें विश्वास इतना होना चाहिए की अगर कुछ भी
न बोलो तो भी सब कुछ समज आ जाए । स्नेह इतना हो की विवाद का कभी अवसर ही उत्पन्न न हो । प्रेम इतना गहरा हो की किसी भी बात की साबिती की आवश्यकता ना पड़े । और विश्वास इतना अधिक हो की उसके बिना रहा ही न सके ।
“ अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है ,
संतुष्टता सबसे बड़ा धन है और
विश्वास सबसे बडा संबंध है । ”
“ विश्वास एक छोटा सा तीन अक्षर का शब्द है । जिसे पढ़ने के लिए सिर्फ एक क्षण लगता है , सोचने के लिए एक प्रहर लगता है , समजने के लिए एक दिन लगता है , लेकिन साबित करने के लिए पूरी जिंदगी लग जाती है । ”

चावडा जिगर दिनेशभाई,अहमदाबाद

SOURCEचावडा जिगर दिनेशभाई
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