भारत के आधुनिक इतिहास और स्वतंत्र भारत के उत्थान की गाथा में जिन विभूतियों के नाम सदा के लिए अंकित हो गए हैं, महात्मा गाँधी का नाम सबसे प्रमुख है. भारतीय संस्कृति , समाज और देश के साथ पूज्य बापू को अध्यात्मिक तथा कर्मयोगी के रूप में पूर्णतः जानने , समझने के लिए एक जीवन भी कम है. महात्मा गाँधी के विचारों का अनुपालन भारतीय संस्कृति का ही एक अंश स्वरुप है. जिस तरह भारतीय संस्कृति, संस्कार, सभ्यता अजर-अमर है, उसी तरह महात्मा गाँधी भी अमर हैं. उनके विचारों, सिद्धांतों जिन्हें गाँधी-दर्शन (Gandhian philosophy) भी कहा जाता है, उनके बारे में विवेचना कर पूज्य बापू को अमरता प्रदान करना अधिक महत्वपूर्ण एवं श्रेयस्कर मानना चाहिए. प्रिय बापू की अमरता के लिए सामाजिक, आर्थिक और नैतिक आधार पर गाँधी-दर्शन का अक्षरशः पालन कर देश को उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर ले जाया जा सकता है.
आखिर गाँधी जी के सिद्धांत उनकी तरह सादा और सरल होते हुए भी असाधारण हैं. महात्मा गाँधी के धार्मिक एवं सामाजिक उन्नति के बारे में अपने सिद्धांत हैं, जिनको उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास तथा तत्पश्चात स्वदेश लौटकर न सिर्फ अपने जीवन में उतारा बल्कि उनका क्रियान्वयन किया और विकसित कर एक उन्नत राष्ट्र का परिदृश्य सभी के समक्ष रखा. इसका नाम उनने ग्राम-स्वराज दिया. प्रत्येक गाँव को एक सम्पूर्ण आत्मनिर्भर इकाई बनाना ही उनका उद्देश्य था. बापू इस देश के ही नहीं बल्कि सारे विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं. गाँधी-दर्शन का शत-प्रतिशत क्रियान्वयन न सिर्फ बापू को अजर-अमर कर देगा अपितु देश को भी उन्नति के शिखर पर ले जायेगा. उनके विचारों को नित्य प्रयोग में लाने में भी प्रथम दृष्टया कोई कठिनाई नहीं प्रतीत होती.
गाँधी जी की कथनी और करनी में कभी कोई अंतर नहीं रहा. अपने जीवन में धैर्य और विचारों के लिए सर्वस्व त्यागने की उनकी तैय्यारी भी पूर्णतः रही. इन्ही कारणों से बापू ना सिर्फ अपने देश के बल्कि सम्पूर्ण विश्व के नेता रहे हैं. उल्लेखनीय है कि गाँधी-दर्शन, दर्शन होने के बावजूद, दुरूह नहीं है, क्योंकि उसे विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न सन्दर्भों के साथ बांटा गया है ताकि उसे लागू करना सहज, सरल, और सुलभ हो. यह उनकी अमरता का एक और महत्वपूर्ण कारक है.
उनके दर्शन में प्रमुख रूप से जो स्तर मालूम पड़ते हैं, वे हैं- आध्यात्मिक या धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक- चाहे व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक. भारत एक आध्यात्मिक देश है और आध्यात्मिक आधार पर ही उसका उत्थान हो सकता है. अतः पूज्य बापू ने भारतीय राजनीति को आध्यात्मिक नींव पर खड़ा किया. गाँधी-दर्शन के मूल में ईश्वर हैं, जिनके प्रति महात्मा गाँधी की अटूट आस्था और भक्ति रही है. मानव के स्वाभाविक लचीलेपन के कारण गाँधी जी के सिद्धांतों को अपनाना कोई कठिन कार्य नहीं है, क्योंकि उसके भीतर नैतिक रूप से विकसित होने एवं देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार ढलने की प्रचुर सम्भावना रहती है. गाँधी-दर्शन में मुख्यतः सात सिद्धांत समाहित हैं, वे हैं: सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय(चोरी न करना), अपरिग्रह(संचय न करना), प्रार्थना और स्वास्थ्य. यहाँ सम्पूर्ण गाँधी-दर्शन कि विवेचना कर पाना संभव नहीं है. अतः उनके दो प्रमुख सिद्धांतों- सत्य, अहिंसा- के क्रियान्वयन का शाब्दिक तथा सैद्धांतिक प्रयास किया है. उनने इन्हीं दो सिद्धांतों का भरपूर उपयोग कर भारत को स्वाधीनता दिलाई. पूज्य बापू ने यहाँ एक अलग तरह की जिद पकड़ी, जिसका नाम सत्याग्रह दिया जो आगे चलकर आज़ादी के वृहत आन्दोलन में तब्दील हुई. परतंत्रता में जकड़ा हरेक भारतीय आज़ादी के लिए छटपटा उठा. आज भी उन्नति के लिए उसी ज़िद, संकल्प की आवश्यकता है.
महात्मा गाँधी श्रीमद्भगवत गीता को ज्ञान का आधार कहते थे. गीता के दसवें अध्याय के श्लोक 4,5 में वर्णित गुणों के लिए श्रीकृष्ण ने कहा था कि जीवों में सत्य, अहिंसा सहित ये विविध गुण मेरे द्वारा ही उदभूत हैं.
बुद्धिः ज्ञानं असम्मोहः क्षमा सत्यम दमः शमः/ सुखं दुखं भवः अभावः भयं व अभयं च //4//
अहिंसा समता तुष्टि तपः दानं यशः अयशः / भवन्ति भाव भूतानां मात्र एवं प्रथक विधाः //5//
बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमा-भाव, सत्यता, इन्द्रिय- निग्रह, मन-निग्रह, सुख तथा दुःख, जन्म-मृत्यु, भय तथा अभय, अहिंसा, समता,तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश, जीवों के ये विविध गुण श्री कृष्ण द्वारा ही उत्पन्न हैं.
महात्मा गाँधी के शब्दों में, सत्य एक बड़ा पेड़ है. उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है, त्यों-त्यों उसमे अनेक फल आते हैं जिसका अंत नहीं होता. सत्य का अर्थ भी है, तथ्यों को सही रूप में अन्यों के लाभ के लिए प्रस्तुत किया जाये, जिससे दुसरे लोग समझ सकें कि सच्चाई क्या है? यद्यपि सच कभी-कभी अप्रिय भी होता है, किन्तु सच कहने में संकोच नहीं करना चाहिए. सत्य की मांग है कि तथ्यों को यथारूप में लोकहित हेतु प्रस्तुत किया जाए. रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने सत्य को परिभाषित करते हुए कहा है “ धरम न दूसर ‘सत्य’ समाना” महात्मा गाँधी के लिए भी सत्य एक अंतिम सच है. उनकी मान्यता थी कि जीवन के हर पहलू में शब्दों में, आचार-व्यवहार में, कार्य-प्रणाली में सच हमेशा सच ही रहता है. अंतिम सच चाहें तो ईश्वर को माना जा सकता है.
‘अहिंसा’ का तात्पर्य है कि अन्यों को कष्ट न पहुँचाया जाये. मानव मात्र को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाये कि मानव देह का पूरा-पूरा उपयोग हो सके. यह देह हमें आत्म –साक्षात्कार के लिए मिली है. अतः जिन क्रिया-कलापों से मानवों के भावी अध्यात्मिक सुख में वृद्धि हो- वही अहिंसा है. जो भौतक कार्य अनेकानेक राजनीतिज्ञों, समाजशास्त्रियों, परोपकारियों द्वारा किये जाते हैं, उनके परिणाम अच्छे नहीं निकलते क्योंकि उनमे दिव्य दृष्टि का अभाव रहता है. वे यह जानने में असमर्थ रहते हैं कि मानव मात्र के लिए क्या हितकर है और क्या हानिकारक? तुलसीदास जी ने भी कहा है- “परम धरम श्रुति विदित ‘अहिंसा’ “.
‘अहिंसा’ का अर्थ शांति तो है ही जो हिंसा का विरुद्धार्थी शब्द है. गांधीजी ने इसे अपने जीवन में ठीक हिंसा के विरोध में उतारा भी है. ईश्वर के उर्जा संरक्षण के नियमानुसार किसी भी चराचर के प्रति की गई हिंसा स्वयं पर की गई हिंसा है. इसी कारण उन्होंने इसके विरुद्ध वकालत की है जो अहिंसा का ही प्रतिरूप है. उनके विचारों में कट्टरता का कोई स्थान नहीं था, बल्कि लचीलापन था. यही कारण है कि उनकी सोच, उनके विश्वास, उनके विचारों और सिद्धांतों को भी विभिन्न ऐतिहासिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में भी विकसित कर देश को प्रगति के पथ पर ले जाना बापू को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
मानवता में वो शक्ति है कि आपसी कलह तक को अहिंसात्मक रूप से सुलझाने में समर्थ है. गाँधी जी ने इसी मानवता का सहारा लेकर शनैः-शनैः नैतिक उत्थान के साथ सामाजिक प्रगति पर चलने की राह दिखाई और वे विश्व में एक इतिहास पुरुष के रूप में पूजे गए. अहिंसात्मक संघर्ष के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य सुव्यवस्थित होकर एक अनुशासित देश का रूप ग्रहण कर सकेगा, जैसा उनका सपना था. गाँधी-दर्शन या अहिंसात्मक सामाजिक व्यवस्था को धार्मिक या अध्यात्मिक, आर्थिक और राजनीतिक, नैतिक मूल्यों के साथ लागू करना ही उनके सिद्धांतों का परिपालन है. यह बिलकुल भी कठिन कार्य प्रतीत नहीं होता है. महात्मा गाँधी जी कि कथनी तथा करनी कभी भी भिन्न-भिन्न नहीं रही है.
गाँधी जी के विचार तथा सिद्धांत ही आत्म परिवर्तन की दिशा में उठाया गया एक कदम है. यह उचित होगा, एवं समय की मांग भी यही है कि प्रत्येक भारतवासी सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर पूरी ईमानदारी से चलकर नैतिकता के उच्चतम मानदंड स्थपित करे और आत्म-नियंत्रण, आत्मानुशासन के साथ सादगी भरा जीवन व्यतीत करने का प्रयास करे- सादा जीवन उच्च विचार. दूसरों के साथ सच्चे तथा अहिंसक नातों का निर्माण करे, तभी सामाजिक, आर्थिक, व्यक्तिगत उत्थान कर पाना संभव होगा. हम बदलेंगे तभी समाज, नगर, राज्य, देश भी बदलेगा. महात्मा गाँधी के जन्म के एक सौ इक्यावन वर्ष में उनके द्वारा किये गए कार्यों को स्मरण करते हुए, हमारा यह संकल्प होना चाहिए कि उनके पवित्र, त्यागमय, पारदर्शी जीवन और स्व-आधारित जीवन का अनुसरण करते हुए विश्व गुरु भारत की रचना के लिए अपने जीवन में सत्य,अहिंसा अपनाकर समर्पण और त्याग की गुणवत्ता लायें. तदनुसार गाँधी-दर्शन का क्रियान्वयन भी सुगम होगा.
अंत में बापूजी के ही शब्दों को दोहराना चाहता हूँ कि मैंने दुनिया को कोई नई बात, कोई नया सिद्धांत नहीं बताया है, वरन जो सिद्धांत सनातन काल से चले आ रहे हैं, उनको ही आधुनिक सन्दर्भ में समझा और समझाया है. सत्य व अहिंसा इस पृथ्वी पर अनादि काल से मौजूद हैं. यदि हमारी पवित्र आत्मा, सत्य-अहिंसा एवं अन्य जीवन मूल्यों के साथ सामंजस्य में है तो समाज, देश का सत्य अहिसात्मक रूप स्वयमेव सामने आ जायेगा. ध्यान रहे कि गाँधी-दर्शन का स्वरुप न केवल नैतिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक है, अपितु वह सनातन होने के साथ-साथ आधुनिक भी है. सरल भी है तो कठिन भी. यदि प्रत्येक भारतवासी अपनी जिम्मेदारियों को समझे एवं अपना योगदान तय करे तो बापूजी कि बताई राह और संस्कारों को समझ कर याद करते हुए, देश को प्रगति , उन्नति कि राह पर ले जाना कतई कठिन और मुश्किल काम नहीं है.
हर्षवर्धन व्यास, गुप्तेश्वर, जबलपुर (म. प्र.)
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