मीलन

By: KISHOR SHRIKANT KELAPURE

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आज सुबह से बारिश शुरू हो गई। हमेशा की तरह मैं बस स्टॉप की तरफ भागा।भारी बारिश के साथ छाता से वर्षा की धाराएँ व्यवस्थित रूप से गिर रही थीं। उसे अपने शरीरपर न गिरने के लिए सभी प्रयास कर रहे थे और  सभी अपनी-अपनी बस का इंतजार कर रहे थे। मैंने सामने देखा तो कोई बस नहीं थी। मैं इधर-उधर देखने लगा। स्टॉप पर हर कोई जैसे अपनी लय में ही था । इसी बीच एक आवाज आयी । प्रीतम बस निकल गई। हे  भगवान्! मैं तुरंत मुड़ा और रिक्शा पकड़ने लगा। पीछे मुड़कर देखा कि मुझे  किसने बताया? स्टॉप पर मौजूद सभी लोग अपनी ही धुन में थे । एक व्यक्ति जा रहा था। क्या इसने मुझे बताया? कार्यालय समय के कारण मैं तुरंत ऑफिस के लिए निकल पड़ा। मैं दिन भर बेचैन रहा। वो हर दिन हमारे स्टॉप पर घूमता था । कभी-कभी मैंने उसे चाय की टपरी पर अखबार पढ़ते हुए देखा है।

ढीले कपड़े, लंबे बाल। कभी-कभी ऐसा लगता था कि वह मुझे ही  देख रहा है। लेकिन ये  है कौन? मेरा नाम कैसे जान लिया इसने ? अगर वो मेरा नाम जानता हैं तो जरूर नागपुर का होगा।

लेकिन यहाँ नासिक में? ओह!! सिर घूमने लगा  । शाम को बस से उतरने के बाद मैंने उसे पांच-सात मिनट तक खोजा। लेकिन वो दिखाई नहीं दिया । उसके बाद मैंने उसे एक महीने तक नहीं देखा।

एक दिन बस से गाँव जाते समय मैंने अचानक उसे देखा। मैं तुरंत बस से उतर गया और मैं उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। जैसे ही वह जाने लगा, मैं उसे करीब से देखने लगा। ए रूक ! आप कौन हैं ? मुझे कैसे जानते हो ? मैंने पूछ लिया। 

मैं ? आप … कहां .. क्या मैं आपको नहीं जानता सर।

वो झिझकता  हुवा बोला ।

 झूठ मत बोलो। उस दिन तुमने मुझसे कहा था कि बस चली गई। उस बालों को एक तरफ रख दें और मेरे तरफ देखो । मैंने कहा ।

उसने अपने बालों को एक तरफ घुमाया और कहा प्रीतम! कृपा करके चला जा । 

निशिकांत? हाय भगवान्! निशिकांत, तुमने ये क्या किया? आप ऐसे क्यों हैं? मैंने पूछ लिया।

प्रीतम प्लीज लोग आपको शक की निगाह से देख रहे हैं। मेरा पीछा छोड़ दो और मुझे फिर कभी मत खोजना । मेरा जीवन मुझे जीने दो। उसने कहां । मैं कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था। मैं उसका हाथ पकड़ कर बगल के कटिंग सलून  में ले गया।

आसपास के लोग देख रहे थे। फिर ऑटो से उसे घर ले आया। मैंने उसे कपड़े दिए। तैयार होके आया

वो और मैं देखते ही  रहा । निशिकांत आज भी उतनाही स्मार्ट दिख रहा था । लेकिन वो बहुत कमजोर हुआ था ।

प्रीतम तुम मुझे क्यों लाए? अब मुझे ऐसे ही जीने की आदत हो गई थी। इसके अलावा आपको समाज से भी नुकसान होगा। आपके क्षेत्र में हर कोई मुझे भिखारी के रूप में जानता है – निशिकांत ने कहा।

निशिकांत क्या तुम कुछ देर चुप रहोगे? देखो, यह समझने के बाद कि यह भिखारी मेरा कॉलेज का दोस्त है क्या मैं बिना कुछ किये रह सकता हूँ? मुझे सब कुछ शांति से बताओ। आपको जीवन की मुख्य धारा में लाके ही रहूँगा – मैंने कहा।

प्रीतम तुम पछताओगे । यह जोखिम न लें। अगर मेरा मन करे तो मैं दूसरे शहर जाऊंगा। आपसे फिर कभी नहीं मिलूंगा । लेकिन – लेकिन अब फिर से मुझे नहीं लगता कि मैं अच्छी तरह से जी सकूंगा – उसने कहां ।

मैंने कहा- निशिकांत, मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। तो यह विचार छोड़ो और बताओ क्या हुआ?

वह कहने लगा- प्रीतम, मेरे कमरे के पास रहने वाली निशा के साथ मेरी पहचान हुई थी। हमारी पहली भेट की ये बारिश गवाह है। अनाथालय में मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया गया, हालाँकि

बाहरी दुनिया में स्वतंत्र रूप से रहना , बहुत अकेलापन महसूस करता था। मुझे पुणे में नौकरी का कॉल आया। मैं पुणे चला गया  वो मेरी आने तक राह देखने वाली थी । एक एक दिन मुझे युग जैसा लग रहा था।

लेकिन फोन की सुविधा नहीं थी । मानो धीरे-धीरे एहसास हो रहा था कि गरीबी इंसान को कितना सताती है। आठ महीने बाद मुझे छुट्टी मिली। मेरे पास इस दुनिया में उसके अलावा कोई नहीं था। मैं जल्दी ही नागपुर आ गया। मैं बैग होटल में छोड़कर निशा के घर आ गया। देखा तो घर में ताला लगा है। आजु बाजू के लोगों से पूछताछ की। किन्तु चार महीने पहले वह और उसकी मां कहां गईं, यह कोई नहीं बता सका। अचानक हाथ-पैर कांपने लगे।

इतनी बड़ी दुनिया में कहाँ मिलेगी? फिर से पुणे जाऊ और काम करू? अब किसके लिए जिऊ? 

रात में सेवाग्राम एक्सप्रेस में बैठा । सुबह नासिक में उतरकर त्रंबकेश्वर को  अश्रुओं से अभिषेक किया और वही निवास करने लगा । लगभग सारा पैसा खत्म हो गया । मैं सड़क पर आ गया।फिर मैं, इस तरह। पागल उम्मीद पर जी रहा हूँ । उसने कहा।

 मैं अगले दिन से नियमित रूप से ऑफिस जाने लगा।

शाम को हम लोग घूमने निकल जाते थे। निशिकांत सिर्फ एक बार कॉलेज में ‘बहुत प्यार करते है तुमको सनम ‘  ये गाना गाया था । एक दिन गाँव में घूमते हुए वही धुन एक ऑर्केस्ट्रा के कार्यालय से सुनने में आयी । मैं निशिकांत को सीधे ऑफिस ले गया।

प्रीतम, तुम यहाँ क्यों आए? निशिकांत ने कहा। देख निशिकांत, आप कला के प्रतिभाशाली धनी हो,

स्थिर होने के लिए आपको कुछ ना कुछ करना होगा – मैंने कहा।

मैनेजर से बात करने के बाद निशिकांत को ऑडिशन के लिए वहां कंफर्म कर दिया गया और मैनेजर को भी उसके जीवन के बारे में कुछ अवगत कराया । सात-आठ महीने के अभ्यास के बाद निशिकांत को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में गाने का मौका मिला।

कार्यक्रम एक प्रसिद्ध थिएटर में निर्धारित किया गया था। मैं निशिकांत को अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहता था  । हॉल खचाखच भरा था। कार्यक्रम शुरू हुआ। लेकिन मैं निशिकांत के मंच पर आने का इंतजार कर रहा था । इंटरवल के बाद कार्यक्रम दोबारा शुरू हुआ। निर्देशक ने घोषणा की ‘आवाज के दुनिया के दोस्तो, आज हम ला रहे एक उभरते कलाकार को, मिस्टर निशिकांत ‘!

हाँ निशिकांत !! उन्होंने अपना पसंदीदा गाना शुरू किया – ‘ बहुत प्यार करते है तुमको सनम ‘  !

वह कितना सुंदर गीत गा रहा था। गीत समाप्त हुआ और तालियों की गड़गड़ाहट हुई। मैं बहुत खुश हुआ । उसने  एक और गाना शुरू किया। ‘अकेले है चले आओ जहां हो’।

साइड स्क्रीन पर साफ तौर पर दिख रहा था की  उसकी  निगाहें किसी को ढूंढ रही है । गाना आधा हो गया हॉल में एक जोरदार धमाका सुनाई दिया  , और कोई मंच की ओर भागता हुआ दिखाई दिया।

वह मंच पर पहुंच गयी और निशिकांत को गले लगाया । डायरेक्टर ने माइक को अपने हाथ में लिया और कहा ‘दोस्तो ये प्रोग्राम का हिस्सा’ नहीं, हकीकत है , मिस्टर निशिकांत को अपनी मंजिल मिल गई है! 

हे ईश्वर दोनों को अब अलग मत करो। वे दोनों हॉल से बाहर आ गए। मंच पर कलाकारों ने ‘ना जाने कहा तुम थे, न जाने कहां हम थे’ यह गाना शुरू किया था। मैं भी कार्यक्रम छोड़कर बाहर आ गया।

तेज बारिश शुरू हो रही थी। वे दोनों बारिश में भीगे हुए थे और बस एक दूसरे को देख रहे थे। मुझे देखते ही निशिकांत ने कहा ‘प्रीतम, कितने एहसान  हैं’। आज मैंने उसे बिल्कुल नहीं टोका ।

आँसुओं को बहने दिया । आज मुझे लगता है कि बारिश और प्यार  के बीच का रिश्ता कितना अविभाज्य है  । मेरी आँखें आसानी से ऊपर उठ गईं। उस मेघदूत को देखकर मैंने सोचा कि इन मेघदूतों को जाकर उन्हें बताना चाहिए की हे ईश्वर बिरह के बाद मीलन बहुत सुखद है, लेकिन इतना भी किसी को बिरह मत दो की जीवन ही ध्वस्त हो जाये । भयंकर गर्जना हुई। मानो मेरे शब्द उसने मान लिये ।

By: KISHOR SHRIKANT KELAPURE

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