निबन्ध, शीर्षक-प्रेम और वियोग

By: Sunita Gond

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प्रेम और वियोग दो शब्द पर दोनो एक दूसरे के बिना निरर्थक है। यह सत्य है? अगर इस तथ्य पर विचार करे तो यह सत्य ही होगा। क्या प्रेम के लिए वियोग होना निश्चित है? क्या प्रेम को समझने के लिए वियोग का होना सत्य है?। निश्चित रूप से यह विचारणीय प्रश्न है। मैं अपने इस निबन्ध में यह दर्शाने की कोशिश की हूं कि जीवन में कोई भी वस्तु स्थिति या सत्य अकेले नहीं ऊपजा। हमेशा एक स्थिति के साथ दूसरा सलग्न ही रहा। जो निश्चित रूप से एक दूसरे की पूर्ति करते नजर आये है। यह रोचक तो है ही साथ ही विचारणीय विषय भी है। हम अपने आस पास के सरल से समाज पर ही दृष्टी डाले तो देख सकते है कि अगर पति है तो पत्नि भी है यह सत्य है। प्रेम बना तो वियोग भी बना यह भी सत्य है। दुःख बना तो सुख भी स्थित है। यह भी सत्य ही है।

जीवन बना तो मृत्यु भी निश्चित ही है। प्रेमी बना तो प्रेमिका भी है। अगर परम सत्ता की बात करे तो आत्मा तो ही परमात्मा को भी दर्शाया गया है। दोनो पहलू एक दूसरे से कही भी भिन्न नहीं है। अब हम अपने इस निबंध के विशेष तथ्य की तरफ आते है प्रेम और वियोग। प्रेम और वियोग उत्पन्न कैसे हुआ ? क्या किसी प्रेमी के जो सदा अपनी प्रेमिका के साथ सहचर्य, प्रेम, वार्तालाप करता रहा होगा और अचानक से अपनी सहचरी (प्रेमिका) से यह कह दिया होगा कि तुम मुझे भुल जाओ क्योंकि मुझे अब तुम्हारा साथ प्रिय नहीं है। और तुरन्त ही उस प्रेमिका के अन्दर वियोग कि स्थिति उत्पन्न हो गयी होगी। क्या ऐसे ही वियोग उत्पन्न हो गया होगा ? नहीं प्रेमिका तो अभी उस वियोग शब्द से अनभिज्ञ है।

प्रेमिका को शायद यह आभास हुआ होगा कि वह अब पहले जैसी स्थिति में नहीं है। तब वह कितनी खुश थी।उसे कुछ खालीपन लग रहा होगा, कुछ ऐसी स्थितियां स्मरण आ रही होगी जो उसने अपने प्रेमी के साथ बिताये थे। उसे सदैव अपने प्रेमी का ही स्मरण हो रहा होगा। जो उसे पीड़ादायक लग रहा होगा। और इतने अनुभवों के बाद शायद उस प्रेमिका को ये आभास हो गया होगा कि वह अब वियोग के दुःख में है। और तभी से शायद इस वियोग का और तभी से इस वियोग शब्द का अर्थ स्पष्ट हुआ होगा और उसे एक नाम दे दिया गया होगा वियोग जिसका मूल अर्थ ये भी हो सकता है वि+योग यानि विषम योग जो दूसरा है जिसका अर्थ सिर्फ दुःख ही है। इस वियोग शब्द का अर्थ स्पष्ट करने में उस प्रेमी के मन में न जाने कहाँ से यह विचार आया होगा कि उसे अब अपनी प्रेमिका का स्नेह नहीं चाहिए। और इस स्थिति के बाद एक नयी स्थिति का जन्म हुआ। तब जाके प्रेमिका ने जाना होगा कि कोई स्थिति वियोग भी है। नहीं तो आज भी यह सपूर्ण संसार वियोग शब्द से वंचित ही रहता। 

एक समय था जब सम्पूर्ण संसार प्रलय की स्थिति के निकट था। सम्पूर्ण संसार जल मग्न हो गया। सारा संसार एक सार हो गया। सृष्टि का निर्माण फिर से निश्चित था। सृष्टि फिर से निर्मित हुआ। प्रथम पुरूष मनु इस सृष्टि निर्माण का पहला प्रतिनिधित्व करता नजर आया।  शान्त तट पर निश्चिन्त बैठा मनु खुद में लीन था। और एक अद्भुत सुंदरी श्रद्धा को देखकर मनु के ह्दय में प्रेम उत्पन्न हुआ। यह सृष्टि का नवीनिकरण था। मनु और श्रद्धा प्रेम के वशिभूत हुये। किन्तु उन्हे अभी उस वियोग शब्द का पता नही था। उन्हें उस वियोग का दुःख नही था क्योंकि वे अभी इससे अभी अनभिज्ञ थे। यह अभी वियोग की उत्पत्ति का समय था। मनु और श्रद्धा उस प्रेम क्रिड़ा से धीरे -धीरे उस वियोग के निकट जा रहे थे। क्योंकि प्रेम की उत्पत्ति हो चुकी थी। जिसको पूर्ण करने के लिए वियोग ऊपजा। तभी कही से इड़ा की उपस्थिति हुयी । और मनु इड़ा के प्रेम में लिप्त हो गया। प्रेम तो मनु को श्रद्धा से भी था किन्तु इस वियोग को उत्पन्न करने के लिए मनु और श्रद्धा का विक्षोभ हुआ। क्योंकि यह निश्चित था वियोग को उत्पन्न करने के लिए।

मनु और श्रद्धा दोनो अनभिज्ञ थे इस वियोग से उन्होने प्रारम्भ किया इस प्रेम और वियोग का। क्योंकि सृष्टि अभी निर्मित हुयी है। और प्रथम तो अवतरित हुआ प्रेम जिसे वियोग के लिए होना ही था । 

यही सत्य है।

By: Sunita Gond

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