आज मैं तुम्हें लिखने बैठा हूं

By: Brijlala Rohan

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आज मैं तुम्हें लिखने बैठा हूं

हां!आज मैं तुम्हें ही लिखने बैठा हूं,

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारे साथ बिताए गए सुकून के पलों को,

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारे बाहों से लिपटकर पाये 

अपनेपन की असीम अनुभूति को !

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारी पलकों की छांव को ,

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारी मधुर मुस्कान को,

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारी खिलखिलाहट भरी हंसी को,

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारी नटखट भरी शरारती अदाओं को,

मैं लिखना चाहता हूं मुझसे बिछड़ने के बाद तुम्हारे आर्द्र नयन की नमी को !

मैं लिखना चाहता हूं प्रतीक्षारत राह तकते तुम्हारे बेसब्री को,

मैं लिखना चाहता हूं मेरे लिए तुम्हारी आंखों में भरे प्रेम की अनंत गहराई को,

मैं लिखना चाहता हूं उन पलों को जिस पल में मैं तुम्हारे पीड़ा को अपना बनाता हूं,

और तुम्हारा ख्याल रखकर तुम्हें राहत पहुंचाता हूं।

साथ ही साथ मैं लिखना चाहता हूं उन पलों को भी

जिन पलों में तुम मेरी पीड़ा को अपना बनाती हो,

और मेरा ख्याल रख कर अपनेपन की अनुभूति कराती हो।

मैं लिखना चाहता हूं तेरे ख्यालों को, तेरे ख्वाबों को 

मैं लिखना चाहता हूं तेरी अनसुलझी- सी सवालों को !

मैं लिखना चाहता हूं मुझे खुश देखने के तुम्हारे द्वारा किये हर वह सफल प्रयास को ।

मैं लिखना चाहता हूं तुम्हारे रचनात्मकता से मिली

मकाम के बाद तुम्हारे चेहरे की रौनक को ,

मैं लिखना चाहता हूं एक -दूसरे के साथ से कुछ अच्छा कर जाने के संकल्प को।

इन सबसे इतर मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण को लिखना चाहता हूं ;

सच्चे दिल से किए गए तुम्हारे निश्चल प्रेम को मैं लिखना चाहता हूं।

तभी मेरी अंतरात्मा मुझे पुकारती है की इन्हें लिखा नहीं जा सकता !

सिर्फ इन्हें महसूस किया जा सकता है।

 फिर भी मेरी लेखनी तुझे अपनी स्याही में

भरकर तुझे महसूस करते हुए लिखना चाहता है !

क्योंकि आज मैं तुम्हें लिखने बैठा हूं।

By: Brijlala Rohan

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