मंजिल

By: Raunak Jha

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मंजिल DESTINED Ooty Destination
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मंजिल


ख्वाबों का मंजर अभी दूर था,
शायद किस्मत के लकीरों में थोड़ा और परिश्रम लिखा था |


मैंने कोशिश तो बहुत की ,
मगर मंजिल नामुमकिन सी लगने लगी |


शायद आज यकीन थोड़ा डगमगा गया,
पहले की नाकामयाबी का डर मन को सताने आ गया |


तभी अचानक मेरी मंजिल मेरी आँखों के सामने आके बोली,
अब थोड़ी दूर और बस थोड़ी दूर और |


मैं उठा और फिर जोश के साथ चलने लगा,
शायद मंजिल तक पहुंचने का जोश फिर जागने लगा |


मेहनत अब रंग लाने लगी,
बस कुछ लम्हों में मंजिल भी पास आने लगी |

By: Raunak Jha

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