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काश तब कैमरा होता
काश तब कैमरा होता
पहले न जाने हम दिन में अनगिनत बार हंसते थे।
खुश हम बेवजह भी रहते थे, थोड़े से में खुश रहते थे। नाराज़गी और दुश्मनी को कभी न निगलते थे।
काश तब खुश रहने के कारणों को सहजने कैमरा होता।
चारपाई जब आंगन में सजती थी ,बत्तीगुल होने पर पड़ोसियों की आंगन में महफिल सजती थी। बच्चो की धमाचौकड़ी मचती थी और हंसी ठिठोली खुब होती थी।