। हे वृष वाहन नंदी।
| आपके द्वारे ही होते हैं महादेव के शृंगदर्शन |
| और आपके कानों से ही हमारे तृष्णाओं के होते हैं शिवजी को अर्पण |
| आप दिखाएं हमें शिवजी के लीलाओं का दर्पण |
| आकाश है आपकी घर कैलाश की मंडप |
| और धरती है आपकी पैरों के गान की कंदर्प |