स्नेह की दीवार

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इस दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं रहता,ना तो यह बादल ,ना ही नदियां,ना तो यह धरती और ना हम । परन्तु मनुष्य के हृदय में बुनी हुई यादें उसे पूरी तरह बांध कर रख देती है ,कुछ ऐसे स्थानों की यादों से जो उसके बेरंग जीवन को सुनहरा रंग देती है। हर किसी के जीवन में एक ऐसा स्थान होता है जो उसके नयन में नहीं अपितु उसके हृदय में बसता है। मेरे लिए तो ‘ मेरा घर ‘ ही ऐसा स्थान है जो मेरे होठों को मुस्कान के रंग से रंग देता है। ‘ मेरा घर’ , जब यह दो शब्दों की वाणी मेरे कंठ से निकलती है तो लोग कहते-” है इसमें कौन सी नई बात है,हर किसी को अपने घर से लगाव होता है”। परन्तु यह कोई साधारण घर नहीं है ,यह तो ऐसा घर है जो मासूम बच्चों के सपनों की दीवारों से बना होता है । भले ही सजावट के वस्तु ना हो परंतु मुस्कुराहट की चमक किसी जेवर की चमक को भी फीका कर देती है। ‘मेरा घर’ एक अनाथालय है या फिर कह सकते यह एक ऐसा आलय है जहां अनाथ अपनों से भी बढ़कर रहते हैं। जिस चादर को लोग छेद होने के कारण फेंक देते हैं शायद वही फटी चादर किसी मुसाफिर का जीवन दाता बन जाए। लोग तो अपने बच्चों को घर का वही चादर समझकर कहीं सरने छोड़ देते हैं परंतु यह नहीं समझ पाते हैं कि उस चादर की भी अपनी जिंदगी होती है। 

मैं बचपन से ही पटना में रहते आई हूं परंतु फिर भी यहां की ज्यादा प्रसिद्ध स्थानों के बारे में मुझे ज्ञात नहीं था। एक बार अपने विद्यालय में कुछ मासूम बच्चों को एक महोत्सव में बड़े उल्लास एवं श्रद्धा की से नाचते देख मैं खुद को रोक नहीं पाई और पूछ ही बैठी -” यह बच्चें कौन है? ” जब पता चला कि यह बिन मां की वह बालक है जो हर पल अपने आंखों में अास लेकर घूमते हैं कि कभी ना कभी उन्हें वह प्यार जरूर मिलेगा जो उनके  किस्मत के पन्नों में ईश्वर ने कभी लिखा ही नहीं। मैंने तय कर लिया कि मैं उस अनाथालय में जाकर उन्हें उनके हिस्से का प्यार जरूर दूंगी। जब मैं वहां पहुंची तो ऐसा लगा मानो मैं उन्हें प्यार करने नहीं अपितु वहीं मुझे प्यार से लिपटने आ गए हैं। और उस प्यार में इतना प्रकाश था कि शायद वह रात को भी निगल जाता। सचमुच ‘मेरा घर’, घर से भी बढ़कर था।

घर सा माहौल-‘मेरा घर’ में करीब 150 बच्चों के रहने की व्यवस्था है। यह ऐसा अनाथ आश्रम है जहां रहने तथा पढ़ने- लिखने दोनों की उत्तम सुविधा की गई है। इसकी संचालक अत्यंत ही निर्मल हृदय वाले व्यक्ति है जो उन बच्चों को अपने ही जीवन का भाग समझते हैं। शायद इसलिए ही उन्हें परिवार की कमी हर वक्त महसूस नहीं होती।जो प्यार मैंने उस छोटे से घर में महसूस किया शायद उसी प्यार की कमी आज-कल हर घर में होती है।लोगों के पास परिवार तो होता है पर उनके लिए समय नहीं, मां तो होती है पर उनके लिए इज्ज़त नहीं और घर तो होता है परंतु खुशियां नहीं। इन बच्चों के पास समय है और हृदय में इज्जत भी पर ना तो परिवार है ,ना ही मां और ना अपनाघर। पर शायद ‘मेरा घर ‘में इनकी एक कमी तो पूरी कर दी।

पर्यटकों का खुले दिल से स्वागत-आज की दुनिया में लोग पूरी तरह व्यस्तता से इस कदर लिपटे हुए हैं कि शायद उन बच्चों से मिलने का वक्त ही नहीं है लोगों के पास।परंतु फिर भी कुछ ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जिन्हें उनकी आंखों में सुनहरा कल दिखाई देता है। इसलिए उन पर्यटकों के ठहरने के लिए भी प्रबंध होता है।और लोगों का उनके प्रति प्यार समय की सुई के साथ- साथ बढ़ता ही जाता है।

स्नेह की आस- यूं तो ‘मेरा घर’ एक अनाथालय है कोई पर्यटक स्थल नहीं परंतु मैं चाहती हूं लोग उसे अनाथालय के रूप में नहीं एक आलय के रूप में देखे जहां रिश्ते खून से नहीं प्यार से बनते हैं। भले ही वे बच्चे इस भीड़ -भाड़ वाली दुनिया में पूरी तरह अकेले हैं परंतु लोग अगर उनसे मिलने आए तो शायद उन्हें एक परिवार मिल जाए और उनका अकेलापन काफूर हो जाए। लोग जब उनकी आंखों में देखेंगे तो उन्हें सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूख ही मिलेगी। वह प्यार जो उन्हें जीने की शक्ति दे और वही जिसकी कमी उन्हें कमजोर कर दे। उनकी आंखें उस गहरी नदी जैसी है जिसका बहाव हर नफरत, हर बुराई को धो डालें।

भले ही मैं इस प्रतियोगिता को जीत सकूं या नहीं जीतू परंतु यह निवेदन है कि उन्हें भी हार ना नसीब हो, उनके सपनों के टूटने की हार ।जब उन्हें लोग जानेंगे और उन्हें परिवार मिल जाएगा तो सच में वे जीत का स्वाद चख लेंगे और प्यार का भी। हो सकता हैं यहां तस्वीरों को एक खूबसूरत नजारा ना मिले परंतु लोगों के दिलों में एक सुंदर तस्वीर जरूर छप जाएगी।

By Shubhangi Sinha , Patna

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